/topics/conservation-reducing-water-usage
संरक्षण - जल उपयोग को कम करना
नहीं रख पाये मान, मानसरोवर का सो अब प्यासे हैं
Posted on 02 Jan, 2016 11:34 AMविदिशा में ही विजय मन्दिर और उदयगिरि की गुफाएँ आंशिक रूप से ही सही, पर सुरक्षित तो हैं, ल
बंजारों ने बनाया था इसे
Posted on 02 Jan, 2016 11:29 AMअकेले घटेरा में ही नहीं, जहाँ-जहाँ तालाब नष्ट किये गए हैं, वहाँ-वहाँ उन पर निर्भर भोइयों
चुल्लू भर पानी ही बचता है, पठारी तालाब में
Posted on 02 Jan, 2016 11:24 AMपहला पानी बरसते ही मंगला सिलावट पठारी में डोंडी पीटकर ऐलान करता- ‘खलक खुदा का मुलक बाश्शा
पूरा कुनबा बलिदान किया था तब भरा था बड़ोह का तालाब
Posted on 02 Jan, 2016 11:06 AMपानी के लिये समर्पित लोगों का यह कीर्ति-स्मारक बस अब खत्म होने ही वाला है। अगली सदी में स
तालाब तो कई थे पर
Posted on 01 Jan, 2016 02:46 PMविदिशा में जहाँ ज्यादातर नलकूप सूखे निकलते हैं वहीं इन पौधों को पानी देने के लिये सूखे ता
बूँद-बूँद पानी बचाने का विशेष प्रयास
Posted on 28 Dec, 2015 04:40 PMएक जमाने की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग में कार्टून कोना डब्बूजी के रचनाकार एवं कई लोकप्रिय साहित्यिक कृतियों के रचियता आबिद सुरती पिछले तीन साल से हर रविवार को सुबह नौ बजे अपने साथ एक प्लम्बर (नल ठीक करने वाला) एवं एक महिला सहायक (चूँकि घरों में अक्सर महिलाएँ ही दरवाज़ा खोलती हैं) लेकर निकलते हैं और तब तक घर नहीं लौटते, जब तक किसी एक बहुमंजिला इमारत के सभी घरों के टपकते नलों की मरम्मत क
चश्मों और नागों की घाटी (Water Springs of Jammu & Kashmir)
Posted on 22 Dec, 2015 03:14 PM
जिसकी फ़िजा में घुली मुहब्बत और केसर की खुशबू है। जिसके जिस्मों पर बर्फ की चादर लपेटे पहाड़ हैं। जिसकी हसीं वादियों में चश्में, नाग और धाराओँ से कल-कल, छल-छल करता पानी सरगम गाता फिरता है। जहाँ चिनार के विशाल पेड़, घने जंगल जन्नत का मंज़र पेश करते हैं। तभी तो इसे पृथ्वी का स्वर्ग कहते हैं। हम कश्मीर की ही बात कर रहे हैं। जिसके खूबसूरत नजारों को देखते ही अनायास जहाँगीर ने फारसी में कह डाला - ‘गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त’ अर्थात अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और केवल यहीं पर है और निश्चित रूप से यहाँ पर है ही। भारत का कोहिनूर कश्मीर देखने को किसका मन नहीं ललचाता है।
पिछले दिनों एक कार्यक्रम के बहाने हमें भी इस जीते जागते स्वर्ग को देखने का मौका मिला। मन उत्सुक था कश्मीर के बारे में जानने को। श्रीनगर से सोनमर्ग के रास्ते पर जाते हुए कारचालक हमारे सबसे पहले गुरू बने। श्रीनगर से निकले भी नहीं थे कि उनसे हमारा पहला ही सवाल था ‘क्या आप स्प्रिंग के बारे में बता सकते हैं’? ‘उसे उत्तराखण्ड में धारे, मगरे, पंदेरों के नाम से जाना जाता है’ हमने सवाल को आसान करते हुए कहा।
सूखती जल धाराओं पर गहरी चिन्ता : पुनर्जीवन के लिये कार्ययोजना
Posted on 22 Dec, 2015 11:16 AMपिघलते गलेशियर और व्यावसायिक वनों के कटान सहित बढ़ते प्रदूषण