रेन वाटर हार्वेस्टिंग | Rainwater Harvesting in Hindi

रेन वाटर हार्वेस्टिंग
रेन वाटर हार्वेस्टिंग


रेन वाटर यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि भारत में वर्षा के मौसम में एक क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति होती है जबकि दूसरे क्षेत्रों में भयंकर सूखा होता है। पर्याप्त वर्षा के बावजूद लोग पानी की एक-एक बूँद के लिये तरसते हैं तथा कई जगह संघर्ष की स्थिति भी पैदा हो जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमने प्रकृति प्रदत्त अनमोल वर्षा जल का संचय नहीं किया और वह व्यर्थ में बहकर दूषित जल बन गया। वहीं दूसरी ओर मानवीय लालसा के परिणामस्वरूप भूजल का अंधाधुंध दोहन किया गया परन्तु धरती से निकाले गए इस जल को वापस धरती को नहीं लौटाया। इससे भूजल स्तर गिरा तथा भीषण जलसंकट पैदा हुआ। एक अनुमान के अनुसार विश्व के लगभग 1.4 अरब लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। प्रकृति ने अनमोल जीवनदायी सम्पदा ‘जल’ को हमें एक चक्र के रूप में दिया है। मानव इस जल चक्र का अभिन्न अंग है। इस जल चक्र का निरन्तर गतिमान रहना अनिवार्य है। अतः प्रकृति के खजाने से जो जल हमने लिया है उसे वापस भी हमें ही लौटाना होगा, क्योंकि हम स्वयं जल नहीं बना सकते। अतः हमारा दायित्त्व है कि हम वर्षाजल का संरक्षण करें तथा प्राकृतिक जलस्रोतों को प्रदूषण से बचाएँ और किसी भी कीमत पर पानी को बर्बाद न होने दें।

जल संकट को लेकर पूरा विश्व समुदाय चिन्तित है। परन्तु इस समस्या के हल के लिये सभी स्तरों पर पूरी ज़िम्मेदारी व ईमानदारी के साथ एकीकृत प्रयास की आवश्यकता है। जलसंकट को लेकर हमें हाथ-पर-हाथ धरकर नहीं बैठ जाना चाहिए। इससे निपटना जरूरी है तभी हमारा आज और कल (वर्तमान एवं भविष्य) सुरक्षित रहेगा। इसके लिये कई वैज्ञानिक तरीके हैं जिनमें सबसे कारगर तरीका है-रेन वाटर हार्वेस्टिंग-अर्थात् वर्षाजल का संचय एवं संग्रह करके इसका समुचित प्रबन्धन एवं आवश्यकतानुसार आपूर्ति। इस प्रक्रिया में सम्पूर्ण सृष्टि का हित है क्योंकि जमीन के भीतर जो पानी संचित किया जाएगा उसका इस्तेमाल हम भविष्य में कर सकेंगे। दूसरे शब्दों में हमने जो प्रकृति से लिया है वह प्रकृति को ही वापस लौटाना भी है।

निसन्देह, वर्षाजल एक अनमोल प्राकृतिक उपहार है जो प्रतिवर्ष लगभग पूरी पृथ्वी को बिना किसी भेदभाव के मिलता रहता है। परन्तु समुचित प्रबन्धन के अभाव में वर्षाजल व्यर्थ में बहता हुआ नदी, नालों से होता हुआ समुद्र के खारे पानी में मिलकर खारा बन जाता है। अतः वर्तमान जल संकट को दूर करने के लिये वर्षाजल संचय ही एक मात्र विकल्प है। यदि वर्षाजल के संग्रहण की समुचित व्यवस्था हो तो न केवल जल संकट से जूझते शहर अपनी तत्कालीन ज़रूरतों के लिये पानी जुटा पाएँगे बल्कि इससे भूजल भी रिचार्ज हो सकेगा। अतः शहरों के जल प्रबन्धन में वर्षाजल की हर बूँद को सहेजकर रखना जरूरी है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही जल संचय की परम्परा थी तथा वर्षाजल का संग्रहण करने के लिये लोग प्रयास करते थे। इसीलिये कुएँ, बावड़ी, तालाब, नदियाँ आदि पानी से भरे रहते थे। इससे भूजल स्तर भी ऊपर हो जाता था तथा सभी जलस्रोत रिचार्ज हो जाते थे। परन्तु मानवीय उपेक्षा, लापरवाही, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के कारण ये जलस्रोत मृत प्रायः हो गए। कई जलस्रोत तो कचरे के गड्ढे के रूप में बदल गए। कई जलस्रोतों पर अवैध कब्जे हो गए। मिट्टी और गाद भर जाने से उनकी जल ग्रहण क्षमता समाप्त हो गई और समय के साथ वे टूट-फूट गए। अभी भी समय है कि इनमें से कई परम्परागत जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करके उन्हें बचाया जा सकता है। वर्षाजल के संचय से इन जलस्रोतों को सजीव बनाया जा सकता है।

वर्षाजल संरक्षण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) का इतिहास काफी पुराना है। विश्व विरासत में सम्मिलित जार्डन के पेट्रा में की गई पुरातात्विक खुदाई में ईसा पूर्व सातवीं सदी में बनाए गए ऐसे हौज निकले जिनका इस्तेमाल वर्षाजल को एकत्र करने में किया जाता था। इसी प्रकार श्रीलंका स्थित सिजिरिया में बारिश के पानी को एकत्र करने के लिये राॅक कैचमेंट सिस्टम बना हुआ था। यह सिस्टम ईसा पूर्व 425 में बनाया गया था। इसे भी विश्व विरासत में सम्मिलित किया गया है। भारत में राजस्थान प्रदेश के थार क्षेत्र में 4500 वर्ष पूर्व बारिश के पानी को एकत्र करने के प्रमाण हड़प्पा में की गई खुदाई के दौरान पाए गए।

. इजराइल, सिंगापुर, चीन, आस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर काफी समय से काम हो रहा है। अब समय आ चुका है जबकि भारत में भी इस तकनीक को अनिवार्यतः लागू करने के लिये जन-जागरण को प्रोत्साहन दिया जाये। यह अत्यन्त आसान तकनीक है। इसके अन्तर्गत वर्षाजल को व्यर्थ बहने से रोककर इसे नालियों/पाइप लाइनों के माध्यम से इस प्रकार संग्रहीत किया जाता है ताकि इसका उपयोग फिर से किया जा सके। भूजल भण्डारों में वर्षाजल के द्वारा भण्डारण बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान जलसंकट में यह न केवल जरूरी है, बल्कि बेहद सस्ता व फायदेमन्द भी है। कुछ दशक पूर्व तक लोग यह मानते थे कि पानी के भण्डार असीमित हैं और हमें किसी-न-किसी तरीके से मनचाहा पानी हमेशा मिलता रहेगा। परन्तु पानी के लगातार दोहन से भूजल भण्डार खाली हो गए तथा भूजल स्तर निरन्तर नीचे खिसकता रहा। यदि यही स्थिति रही तो जल्दी ही धरती भूगर्भीय जल भण्डारों से खाली हो जाएगी। अतः अब समय आ गया है कि हम जितना पानी धरती से लेते हैं उतना ही पानी धरती को किसी-न-किसी रूप में लौटाएँ। यह रेनवाटर हार्वेस्टिंग से ही सम्भव है। हमारा दायित्त्व है कि हम पानी की एक बूँद भी बेकार न जाने दें। इससे हमारे जल भण्डार भर जाएँगे तथा जलस्तर भी ऊपर पहुँच जाएगा।

वर्षाजल संग्रहण क्या है?

वर्षा के बाद इस पानी को उत्पादक कार्यों के लिये उपयोग हेतु एकत्र करने की प्रक्रिया को वर्षाजल संग्रहण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में आपकी छत पर गिर रहे वर्षाजल को सामान्य तरीके से एकत्र कर उसे शुद्ध बनाने के काम को वर्षाजल संग्रहण कहते हैं।

 

 

आवश्यकता

आज उत्तम गुणवत्ता वाले पानी की कमी चिन्ता का कारण बन चुकी है। यद्यपि शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाला वर्षाजल शीघ्र ही बह जाता है। परन्तु यदि इसे एकत्र किया जाये तो जलसंकट पर नियंत्रण पाया जा सकता है। वर्तमान जलसंकट को देखते हुए यही एक मात्र विकल्प बचा है जिसके द्वारा हम जल संकट का समाधान प्राप्त कर सकते हैं।

 

 

उपयुक्त स्थान

सामान्यतया वर्षाजल संग्रहण कहीं भी किया जा सकता है, परन्तु इसके लिये वे स्थल सर्वथा उपयुक्त होते हैं जहाँ पर जल का बहाव तेज होता है और वर्षाजल शीघ्रता से बह जाता है। इस प्रकार वर्षाजल संग्रहण निम्नलिखित स्थानों के लिये सर्वथा उपयुक्त होता है: 1. कम भूजल वाले स्थल, 2. दूषित भूजल वाले स्थल, 3. पर्वतीय/विषम जल वाले स्थल, 4. सूखा या बाढ़ प्रभावित स्थल, 5. प्रदूषित जल वाले स्थल, 6. कम जनसंख्या घनत्त्व वाले स्थल, 7. अधिक खनिज व खारा पानी वाले स्थल, एवं 8. महंगे पानी व विद्युत वाले स्थल,

 

 

उपयोग

सामान्यतः वर्षाजल शुद्ध जल होता है तथा इसका उपयोग सभी कार्याें के लिये किया जा सकता है तथापि निम्नलिखित कार्यों के लिये इसका उपयोग सर्वथा उपयुक्त है: 1. बर्तनों की साफ-सफाई, 2. नहाना व कपड़ा धोना, 3. शौच आदि कार्य, 4. सिंचाई के लिये, 5. मवेशियों के पीने, नहाने आदि के लिये, एवं 6. औद्योगिक कार्य, वर्षाजल की गुणवत्ता जाँचने के उपरान्त यदि वह उपयुक्त पाई जाती है तो इसका उपयोग पेयजल एवं खाना बनाने के लिये भी किया जा सकता है।

 

 

लाभ

विश्वव्यापी जलसंकट की समस्या का समाधान इसी विधि से सम्भव है। तभी हमारा वर्तमान व भविष्य सुरक्षित रहेगा। इस विधि का एक फायदा है कि जो पानी ज़मीन के अन्दर जाएगा उसका इस्तेमाल हमारा परिवार/समाज ही तो करेगा। रेनवाटर हार्वेस्टिंग में वर्षाजल को ही संचित किया जाता है तथा बाद में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है। इस तकनीक के कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ हैं जिनका विवरण निम्नवत है: 1. भूजल/सरकारी जलापूर्ति पर निर्भरता कम, 2. जहाँ जलस्रोत नहीं हैं वहाँ पर कृषि कार्य भी सम्भव, 3. जल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, 4. उच्च गुणवत्ता एवं रसायनमुक्त शुद्ध जल की प्राप्ति, 5. जलापूर्ति की न्यूनतम लागत, 6 बाढ़ के वेग पर नियंत्रण से मृदा अपरदन कम से कम, 7. सभी को समुचित मात्रा में जल उपलब्धता, 8. गिरते भूजल स्तर को ऊपर उठाया जा सकता है, 9. यह पानी के मुख्य स्रोत का काम करता है, 10. यह जल हर प्रकार के घातक लवणों आदि से मुक्त होता है। 11. घनी आबादी वाले क्षेत्रों में वर्षा का जल छतों से बहकर नालों में जाकर गन्दगी पैदा करता है जबकि इसको संग्रहीत करके इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है। 12. ज़मीन के अन्दर संग्रहीत जल का वाष्पीकरण नहीं होता है अतः पानी के समाप्त होने की सम्भावना कम ही रहती है। 13. ज़मीन के अन्दर संचित पानी में लवणों की तीव्रता कम रहती है। 14. अन्य स्रोतों पर निर्भरता नहीं रहती है।

 

 

आश्चर्यजनक सत्य

अन्तरराष्ट्रीय जल संस्थान ने छत से प्राप्त होने वाले वर्षाजल को अन्य स्रोतों से प्राप्त होने वाले जल की तुलना में श्रेष्ठ बताया है। केमिकल लैब की रिपोर्ट के अनुसार यह जल हर तरह के घातक लवणों से मुक्त होता है। इसमें हानिकारक बैक्टीरिया भी नहीं होते हैं और इसका पी.एच. मान भी आदर्श 6.95 होता है। पी. एच. मान से यह पता चलता है कि पानी कितना प्राकृतिक व सामान्य है। 6.5 से 8.5 के बीच के पी. एच. मान वाले पानी को सामान्य उपयोग के लायक माना जाता है।

 

 

वर्षाजल संरक्षण के उपाय


वर्षाजल संरक्षण वर्षाजल को संचित करने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं। इन उपायों के द्वारा ज़मीन के अन्दर गिरते जलस्तर को ऊपर उठाया जा सकता है।

1. सीधे ज़मीन के अन्दर : इस विधि के अन्तर्गत वर्षाजल को एक गड्ढे के माध्यम से सीधे भूजल भण्डार में उतार दिया जाता है।

2. खाई बनाकर रिचार्जिंग : इस विधि से बड़े संस्थान के परिसरों में बाउन्ड्री वाल के साथ-साथ बड़ी-बड़ी नालियाँ (रिचार्ज ट्रेंच) बनाकर पानी को ज़मीन के भीतर उतारा जाता है। यह पानी ज़मीन में नीचे चला जाता है और भूजल स्तर में सन्तुलन बनाए रखने में मदद करता है।

3. कुओं में पानी उतारना : वर्षाजल को मकानों के ऊपर की छतों से पाइप के द्वारा घर के या पास के किसी कुएँ में उतारा जाता है। इस ढंग से न केवल कुआॅं रिचार्ज होता है, बल्कि कुएँ से पानी ज़मीन के भीतर भी चला जाता है। यह पानी ज़मीन के अन्दर के भूजल स्तर को ऊपर उठाता है।

4. ट्यूबवेल में पानी उतारना : भवनों की छत पर बरसाती पानी को संचित करके एक पाइप के माध्यम से सीधे ट्यूबवेल में उतारा जाता है। इसमें छत से ट्यूबवेल को जोड़ने वाले पाइप के बीच फिल्टर लगाना आवश्यक हो जाता है। इससे ट्यूबवेल का जल हमेशा एक समान बना रहता है।

5. टैंक में जमा करना : भूजल भण्डार को रिचार्ज करने के अलावा बरसाती पानी को टैंक में जमा करके अपनी रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। इस विधि से बरसाती पानी का लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है।

 

 

अन्य आसान उपाय

वर्षा ऋतु में बरसाती पानी को हैण्डपम्प, बोरवेल या कुएँ के माध्यम से भूगर्भ में डाला जा सकता है। वर्षाजल संचित करने (वाटर हार्वेस्टिंग) के निम्नलिखित दो तरीके हैं: 1. छत के बरसाती पानी को गड्ढे या खाई के जरिए सीधे ज़मीन के भीतर उतारना, 2. छत के पानी को किसी टैंक में एकत्र करके सीधा उपयोग में लेना। एक हजार वर्ग फुट की छत वाले छोटे मकानों के लिये यह तरीका बहुत ही उपयुक्त है।

एक बरसाती मौसम में छोटी छत से लगभग एक लाख लीटर पानी ज़मीन के अन्दर उतारा जा सकता है। इसके लिये सबसे पहले ज़मीन में 3 से 5 फुट चौड़ा और 5 से 10 फुट गहरा गड्ढा बनाना होता है। छत से पानी एक पाइप के जरिए इस गड्ढे में उतारा जाता है। खुदाई के बाद इस गड्ढे में सबसे नीचे मोटे पत्थर (कंकड़), बीच में मध्यम आकार के पत्थर (रोड़ी) और सबसे ऊपर बारीक़ रेत या बजरी डाल दी जाती है। यह विधि पानी को छानने (फिल्टर करने) की सबसे आसान विधि है। यह सिस्टम फिल्टर का काम करता है।

 

 

वर्षाजल संरक्षण ही एकमात्र विकल्प


Fig 2. Rain water harvesting जल संकट देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की एक गम्भीर समस्या है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्षाजल संरक्षण को प्रोत्साहन देकर ही गिरते भूजल स्तर को रोका जा सकता है। यही एकमात्र विकल्प है। इसके अतिरिक्त जल प्रबन्धन के द्वारा शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है। यही एक स्थायी विकल्प माना जा सकता है। 

भूगर्भ विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में भूजल के अंधाधुंध दोहन, उसके रिचार्ज न हो पाने के कारण ज़मीन की नमी खत्म होने, उसमें अधिक सूखापन आने, भूगर्भीय हलचल आदि के कारण ज़मीन की सतह पर अचानक गर्मी आने का प्रमुख कारण भूजल की कमी ही है। यह भयावह स्थिति खतरे का संकेत है, क्योंकि जब-जब पानी का अधिक दोहन होता है, तब-तब जमीन के अन्दर के पानी का उत्प्लावन बल कम होने या समाप्त होने पर ज़मीन धँस जाती है तथा उसमें दरारें पड़ जाती हैं। इसे उसी स्थिति में रोका जा सकता है जब भूजल के उत्प्लावन बल को बरकरार रखा जाये तथा पानी समुचित मात्रा में रिचार्ज होता रहे। यह तभी सम्भव है जब ग्रामीण-शहरी, दोनों जगह पानी का दोहन नियंत्रित हो, जल संरक्षण व भण्डारण की समुचित व्यवस्था हो ताकि पानी ज़मीन के अन्दर प्रवेश कर सके।

विश्व बैंक के अनुसार भूजल का सर्वाधिक उपयोग (लगभग 92 प्रतिशत) तथा सतही जल का (लगभग 89 प्रतिशत) कृषि कार्यों के लिये किया जाता है। इसी प्रकार लगभग 5 प्रतिशत भूजल एवं 2 प्रतिशत सतही जल उद्योगों में उपयोग होता है। जबकि घरेलू उपयोग के लिये 3 प्रतिशत भूजल एवं 9 प्रतिशत सतही जल का उपयोग होता है। आज़ादी के समय देश में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपयोगिता 5 हजार क्यूबिक मीटर थी तथा देश की आबादी लगभग 40 करोड़ थी। वर्ष 2000 में यह उपयोगिता कम होकर 2 हजार क्यूबिक मीटर रह गई जबकि देश की आबादी 100 करोड़ को पार कर गई। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 तक यह उपयोगिता 1500 क्यूबिक मीटर रह जाएगी जबकि देश की आबादी 1.40 करोड़ हो जाएगी। इस प्रकार धीरे-धीरे प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपयोगिता कम होती जा रही है।

यह सत्य है कि जल संकट गहराने का प्रमुख कारण देश में बढ़ता हुआ औद्योगीकरण व नगरीकरण है। विश्व बैंक के अनुसार फैक्टरियाँ एक ही बार में उतना पानी ज़मीन से खींच लेती हैं, जितना एक गाँव पूरे महीने में भी नहीं खींच पाता है। वास्तविकता की बात करें तो देश में, भूजल एवं सतही, विभिन्न स्रोतों से लगभग 2300 अरब घनमीटर जल उपलब्ध होता है। देश में सदानीरा नदियों का जाल है। देश में वार्षिक औसत वर्षा 100 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है जिससे लगभग 4000 अरब घनमीटर पानी मिलता है। इस सबके बावजूद भी देश में पानी का अकाल है। वास्तव में वर्षाजल का 47 प्रतिशत जल नदियों में चला जाता है। इसका आधा पानी तो उपयोग में आता जाता है परन्तु उचित भण्डारण के अभाव में समुद्र में चला जाता है। यदि वर्षाजल का संचय, संरक्षण, भण्डारण तथा उचित प्रबन्धन किया जाये तो काफी हद तक जलसंकट समस्या का समाधान हो सकता है।

 

 

भारत में वर्षाजल संरक्षण की स्थिति

. भारत के हिस्से में दुनिया का 5 प्रतिशत पानी आता है। परन्तु हम लगभग 13 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल करते हैं। वहीं चीन में 12 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका में 9 प्रतिशत पानी का उपयोग किया जाता है। परन्तु वर्षाजल संचय के मामले में भारत काफी पीछे है।

वर्षाजल संग्रहण क्षमता में आस्ट्रेलिया, चीन, मोरक्को, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन और संयुक्त राज्य अमरीका जैसे देश हमसे अधिक वर्षाजल संग्रहीत करते हैं क्योंकि उन्हें पानी की वास्तविक कीमत का अन्दाजा हमसे अधिक है। भारत में हर वर्ष बर्फ पिघलने और वर्षाजल के रूप में औसतन 4000 अरब घनमीटर पानी प्राप्त होता है। इसमें भूजल और नदियों में करीब 1869 खरब घनमीटर पानी मिलता है। भारत को मिलने वाले कुल पानी का प्रतिवर्ष लगभग 60 प्रतिशत ही उपयोग हो पाता है। बाकी बचा हुआ पानी नदियों और सागरों में मिल जाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में पानी की वास्तविक खपत 690 अरब घनमीटर सतही पानी तथा 432 अरब घनमीटर भूजल का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार भारत दुनिया का सबसे बड़ा जल उपभोक्ता बन रहा है। बढ़ती जनसंख्या के साथ प्रति व्यक्ति पानी की माँग बढ़ती जा रही है। योजना आयोग के अनुसार आज भारत को लगभग 82 लाख करोड़ लीटर पानी की जरूरत है, इसमें वर्ष 2025 तक सर्वाधिक माँग सिंचाई में बढ़ेगी। इस समय सिंचाई के लिये लगभग 700 अरब घन मीटर पानी की आवश्यकता है जिसकी वर्ष 2025 तक बढ़कर 1000 अरब घनमीटर तक हो जाने की सम्भावना है।

सरकारी पहल

देश में जलसंकट से उबरने के लिये जल संचय आवश्यक है। वर्षाजल को संचित करना हमारे लिये अनिवार्य हो गया है। सरकार ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल की है। देश के कई राज्यों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बना दिया गया है। लेकिन इसका पालन कड़ाई से न होने के कारण फायदा नहीं हुआ तथा अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं। मध्य प्रदेश में 140 वर्गमीटर या उससे अधिक क्षेत्रफल पर निर्मित होने वाले सभी भवनों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बना दिया गया है। ऐसा करने वालों को पहले साल सम्पत्तिकर में 6 फीसदी की छूट मिलने का भी प्रावधान है।

इसी प्रकार राजस्थान में सभी सरकारी भवनों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग करवाना अनिवार्य कर दिया गया है। दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में भी नई इमारतों में क़ानूनन, रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बना दिया गया है । कर्नाटक में रेनवाटर हार्वेस्टिंग करवाने पर सम्पत्ति कर में 5 वर्ष तक के लिये 20 प्रतिशत की छूट मिलती है। पंजाब में लुधियाना और जालंधर नगर निगमों ने इसे जरूरी किया है। छत्तीसगढ़ जल्दी ही रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य करने जा रहा है। गुजरात राज्य में यह नियम पहले से ही लागू है। सूरत महानगर पलिका ने तो रेनवाटर हार्वेस्टिंग के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने के लिये इसमें आने वाले खर्च पर 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की योजना बनाई है। उत्तर प्रदेश के 54 जिलों में भूजल स्तर ज़मीनी सतह से 10 मीटर नीचे पाया गया है तथा 40 से 50 से.मी. प्रतिवर्ष की औसत गिरावट पाई गई है। प्रदेश की सरकार ने भवनों में वर्षाजल संचयन योजना (रूफ टाॅप रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को अनिवार्य रूप से लागू किया था। इसके साथ-ही-साथ सभी ग्रुप हाउसिंग योजनाओं में छतों तथा खुले स्थानों से प्राप्त बरसाती जल को परकोलेशन पिट्स (जिन गड्ढों से पानी रिसकर ज़मीन के नीचे चला जाता है) के जरिए भूजल रिचार्जिंग को अनिवार्य कर दिया गया।

यह भी जानिए

1. संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा करीब 1400 मिलियन क्यूबिक मीटर है। इतने पानी में धरती करीब तीन हजार गहराई तक समा सकती है।
2. पृथ्वी पर उपलब्ध सम्पूर्ण जल का केवल 2.7 प्रतिशत भाग स्वच्छ जल है जिसका 75.2 प्रतिशत ध्रुव प्रदेशों में जमा है। तथा 22.6 प्रतिशत भूजल के रूप में उपस्थित है।
3. आज भी 2.17 लाख ग्रामीण घरों में शुद्ध जल नहीं पहुँच पाता।
4. 1560 मील लम्बी गंगा नदी से देश के चालीस करोड़ लोगों का भाग्य जुड़ा है।
5. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश में केवल 31 प्रतिशत म्युनिसिपल सीवेज का शोधन होता है। बाकि अशोधित सीवेज नदियों, तालाबों में डाल दिया जाता है।

जल कैसे बचाएँ

1. जितने जल की जरूरत हो केवल उतना ही इस्तेमाल करें।
2. पानी के इस्तेमाल के बाद नल को कस कर बंद कर दें।
3. ब्रश करते समय, बर्तन और कपड़े धोते समय नल को चलते रहने न दें। जरूरत के मुताबिक ही नल को खोलें।
4. नल लीक करने की स्थिति में मिस्त्री को तुरन्त बुलाकर ठीक कराएँ।
5. ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें जिससे पानी की बचत हो।
6. बाल्टी या बोतल में पानी बचने की स्थिति में उसको फेंकने के बजाय पौधों में डाल दें।
7. फलों या सब्जियों को धोने के बाद उस पानी को क्यारियों व पौधों में डाल दें।

श्याम नारायण मिश्र
वरिष्ठ हिन्दी अधिकारी
केन्द्रीय इलेक्ट्राॅनिकी अभियांत्रिकी अनुसन्धान संस्थान (सीरी)
पिलानी (राजस्थान)

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