बूँद-बूँद पानी बचाने का विशेष प्रयास


एक जमाने की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग में कार्टून कोना डब्बूजी के रचनाकार एवं कई लोकप्रिय साहित्यिक कृतियों के रचियता आबिद सुरती पिछले तीन साल से हर रविवार को सुबह नौ बजे अपने साथ एक प्लम्बर (नल ठीक करने वाला) एवं एक महिला सहायक (चूँकि घरों में अक्सर महिलाएँ ही दरवाज़ा खोलती हैं) लेकर निकलते हैं और तब तक घर नहीं लौटते, जब तक किसी एक बहुमंजिला इमारत के सभी घरों के टपकते नलों की मरम्मत करवाकर उनका टपकना बन्द नहीं करवा देते।

खुद को सिर्फ 75 वर्ष का नौजवान कहने वाले आबिद सुरती इस मुहिम के पहले साल में ही एक अनुमान के मुताबिक 4,14,000 लीटर पानी बर्बाद होने से बचा चुके हैं। तब से अब तक दो वर्ष और बीत चुके हैं।

जिसके अनुसार पानी की बचत का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। सुरती का मानना है कि इस प्रकार के प्रयासों से यदि बूँद बचेगी तो गंगा भी बच जाएगी। इसलिये पहले एक-एक बूँद बचाने का प्रयास करना चाहिए।

मुम्बई के डोंगरी इलाके में बचपन गुजार चुके आबिद सुरती को उन दिनों किसी-किसी दिन 20 लीटर पानी में ही पूरे दिन का गुजारा करना पड़ता था। क्योंकि साझे नल में इससे ज्यादा पानी मारामारी करके भी नहीं मिल पाता था।

पानी की यह तंगी राजस्थान में एक कलश पानी के लिये मीलों का सफर तय करने वाली महिलाओं की जिन्दगी का अनुभव कराने जैसी थी। इसलिये मुम्बई में आये-दिन फटने वाले पानी के पाइपों एवं टैंकरों से गिरते पानी को रोक पाना उनके वश में नहीं था।

लेकिन एक दिन किसी मित्र के घर गए सुरती को जब वहाँ नल से टपकता पानी दिखाई दिया तो उन्होंने सोच लिया कि इसे तो हम ठीक कर ही सकते हैं। और यहीं से हुआ उनकी - हर एक बूँद बचाओे - मुहिम का आगाज।

मुम्बई से सटे ठाणे जिले के मीरा रोड निवासी सुरती अब अपने क्षेत्र की बहुमंजिला इमारतों के सेक्रेटरियों से मिलकर उनकी बिल्डिंग के सभी फ्लैटों में जाने की अनुमति लेते हैं और सोसायटी के प्रवेशद्वार पर अपनी मुहिम का एक पोस्टर चिपका देते हैं।

अगले रविवार की सुबह एक प्लम्बर और एक महिला सहायक के साथ (ताकि घरों में पुरूषों की अनुपस्थिति में भी जाया जा सके) जा पहुँचते हैं। हर फ्लैट में जाकर रसोई, बाथरूम एवं अन्य स्थानों पर लगेे नलों की जाँच करते हैं।

वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से उन्हें गुजराती साहित्य के हिन्दी अनुवाद के लिये एक लाख रुपए का पुरस्कार मिला। संयोग से वह वर्ष अन्तरराष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष के रूप में मनाया जा रहा था।

उन्हीं दिनों उन्होंने किसी अखबार में यह खबर पढ़ी कि किसी नल से एक सेकेंड में यदि एक बूँद पानी टपक रहा है तो एक माह में 1000 लीटर, अर्थात बिसलरी की एक हजार बोतलों की बर्बादी हो जाती है।

बस यहीं से उन्होंने एक-एक बूँद बचाने का संकल्प ले लिया और हिन्दी संस्थान से पुरस्कार में मिले एक लाख रुपए इस संकल्प की भेंट चढ़ा दिये। सेव एवरी ड्राॅप और ड्राॅप डेड लिखे हुए पोस्टर, पर्चे और टी शर्ट्स छपवाई और निकल पड़े एक-एक बूँद बचाने।

स्रोत : www.hindimedia.in

गर्विता
आल इण्डिया इंस्टीट्यूट आॅफ स्पीच एंड हियरिंग, मैसूर, कर्नाटक

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