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पारिस्थितिकी और पर्यावरण
वैज्ञानिक वन-प्रबंध की विडम्बना
Posted on 09 Mar, 2024 04:21 PMभारत में प्राकृतिक वनों के विनाश के लिए पिछले सवा सौ वर्षों का वैज्ञानिक वन-प्रबन्ध उत्तरदायी है, जो अंग्रेजों की देन है। अपनी व्यापारिक दृष्टि के साथ जब भारत का राज ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों में आया, तो उन्होंने खोज-खोजकर व्यापारिक प्रयोजन में आने वाली वृक्ष प्रजातियों पर प्रहार किया। सबसे पहला प्रहार मालाबार के सागीन वनों पर सन् 1800 के आस-पास जहाज बनाने के लिए हुआ। उसके बाद रेलवे स्लीपरों
बिजली की रोशनी से जगमगाया नैनीताल
Posted on 07 Mar, 2024 05:17 PM1920 में जल विद्युत परियोजना का काम प्रारंभ हो गया। पहले साल इस काम में 4,13,948 रुपये खर्च हुए। नगर पालिका ने 1650 रुपये खर्च कर मनोरा के संक्रामक अस्पताल तक पानी की लाइन डाली। तीन हजार रुपये की लागत से खुर्पाताल तक पानी की लाइन बिछा दी गई। इस साल वाटर वर्क्स को चलाने के लिए नगर पालिका के कोयले का भण्डार समाप्ति की ओर था गोदाम में सिर्फ 24 टन कोयला बचा था। नगर में पानी की आपूर्ति बाधित होने का
नैनीताल में यातायात और पर्यावरणीय समस्याएँ
Posted on 07 Mar, 2024 03:32 PM1915 में काठगोदाम-नैनीताल मोटर सड़क बनकर तैयार हो गई थी। लेफ्टिनेंट राइडर ने जिला इंजीनियर होल्मस के निर्देशन में इस सड़क का निर्माण कार्य सम्पन्न कराया। उस दौर में इस सड़क की वार्षिक मरम्मत में 29 हजार रुपये खर्च किए जाते थे। अब नैनीताल में गाडियां आने लगी थी। ताँगा अब यातायात का मुख्य साधन नहीं रह गया था। ताँगे को जल्दी ही टा-टा कह दिया गया। बेबरी से कार्ट रोड द्वारा कुलियों के सामान ढोने पर
कैलाखान भूस्खलन की जांच में कई कारण आए सामने
Posted on 05 Mar, 2024 12:31 PM17 अगस्त 1898, नैनीताल।
1.उपरोक्त विषय पर मेरी प्रारंभिक आख्या जो उत्तर, पश्चिम प्रान्त और अवध के शासन को मैंने मुख्य आंकलन के बाद भेजी। मेरे नैनीताल में कुछ समय रहने के बाद यह आख्या मेरे द्वारा स्वयं देखी गई और रखी गई।
नैनीताल में बसावट शुरु होते ही भू-स्खलन
Posted on 01 Mar, 2024 05:19 PMब्रिटिश हुक्मरान नैनीताल में अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के प्रबंध में जुटे ही थे कि बसावट शुरु होने के महज 25 साल बाद अगस्त 1867 में मल्लीताल के पॉपुलर स्टेट में भू-स्खलन हो गया। इस भू-स्खलन में विक्टोरिया होटल का नव निर्मित एक कॉटेज दब गया था। विक्टोरिया होटल के पास स्थित पुलिया में एक हिन्दुस्तानी की मृत्यु हो गई थी। इस भू-स्खलन ने अंग्रेजों को नैनीताल की क्षण भंगुर पारिस्थितिक तंत्र की इत्तला दे
नैनीताल उत्तराखण्ड के लिए एक धरोहर के रूप में
Posted on 01 Mar, 2024 12:16 PMनैनीताल की झील बाहरी हिमालय में मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट के करीब स्थित प्रकृति की दुर्लभ रचना है। सात ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे नैनीताल की भू-आकृति कटोरानुमा है। नैनीताल, पट्टी / परगना छःखाता के अन्तर्गत आता है। छःखाता शब्द संस्कृत का अपभ्रंश है। छःखाता का भावार्थ है- 60 झीलों वाला क्षेत्र। जिसमें से नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, मलुवाताल, खुर्पाताल, सरियाताल और बरसाती झील सूखाताल आदि श
साम्राज्यवाद और प्राकृतिक संसाधन
Posted on 24 Feb, 2024 12:42 PMइस दुनिया में विभिन्न देशों के बीच, उनके 'विकास' के स्तर और उनके पास प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के स्तर के बीच, बहुत भारी असंतुलन है। सबसे विकसित देशों के समूह, जी-7 को ही ले लीजिए जिसमें अमेरिका, यूके, जर्मनी, फ्रांस, इटली, जापान तथा कनाडा शामिल हैं। इस ग्रुप में दुनिया की कुल आबादी का सिर्फ 10 फीसद हिस्सा रहता है, लेकिन 2020 में दुनिया भर की कुल संपदा का आधे से ज्यादा हिस्सा, इसी ग्रुप के
खुलाखत : जहाँगीराबाद (बुलन्दशहर) के मोहल्ला आहनग्रान पथवारी आश्रम के तालाब का सौंदर्यीकरण
Posted on 23 Feb, 2024 04:58 PMसेवा में,
श्रीमान नगर अधिशासी अधिकारी महोदय, नगर पालिका परिषद, जहाँगीराबाद (बुलन्दशहर)
विषयः- नगर के मोहल्ला आहनग्रान पथवारी आश्रम के पास स्थित तालाब का सौंदर्यीकरण करवाने के संदर्भ में।
महोदय,
उत्तराखंड में बंदरों के आतंक से प्रभावित होती कृषि
Posted on 19 Feb, 2024 02:52 PM“बंदरों की बढ़ती संख्या से हमारे खेती सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। कहा जाए तो बिल्कुल नष्ट होने की कगार पर है। हम जो भी सब्जियां लगाते हैं बंदर आकर सब कुछ नष्ट कर देते हैं। कई बार अगर आंगन में मैं अपने बच्चों को अकेले छोड़ देती हूं तो बंदर आ कर उन्हें काट लेते हैं। हम सभी खौफ की ज़िंदगी गुजार रहे हैं। हमारी आय का एकमात्र साधन सब्जियां उगाकर बेचना होता है। लेकिन अब लगता है कि इन बंदरों की वजह स
सृष्टि की सुरक्षा के लिए अपरिहार्य प्रकृति रूपी परमात्मा की व्यवस्थाओं का संरक्षण
Posted on 15 Feb, 2024 01:15 PMकोई ऐसी शक्ति ब्रह्माण्ड में अवशय है जो समस्त व्यवस्थाओं का संचालन करती है। इसी अदृश्य शक्ति को आस्तिक मनुष्य परमात्मा या ईश्वर कहते हैं। वैज्ञानिक लोग अधिकतर इसे प्रकृति की शक्ति मानते है अर्थात प्रकृति को ही ईश्वर मानते हैं। ब्रम्हांड की भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं को चलाने के लिए विभिन्न विभाग हैं और उन विभागों को चलाने वाले उनके देवता है जो परमात्मा की कैबिनेट के सदस्य कहे जा सकते