कैलाखान भूस्खलन की जांच में कई कारण आए सामने

कैलाखान भू-स्खलन की जाँच 
कैलाखान भू-स्खलन की जाँच 

17 अगस्त 1898, नैनीताल।

1.उपरोक्त विषय पर मेरी प्रारंभिक आख्या जो उत्तर, पश्चिम प्रान्त और अवध के शासन को मैंने मुख्य आंकलन के बाद भेजी। मेरे नैनीताल में कुछ समय रहने के बाद यह आख्या मेरे द्वारा स्वयं देखी गई और रखी गई।

2. 17 अगस्त को दोपहर बाद कैलाखान पहाड़ी से बलियानाले की ओर बड़ी मात्रा में पहाड़ी का मलबा ब्रेबरी की ओर गिरा। इसने बलियानाले की तल को भर दिया। इसने दुर्गापुर और मोटा पानी में तीन तालाब बना दिए। यद्यपि यह लम्बे समय तक नहीं रहे, फिर भी इसने ब्रेबरी और दुर्गापुर से नैनीताल के पैदल मार्ग को रोक दिया। ब्रेबरी के पास एक बनिये की दुकान और टोलघर को तोड़ दिया। ब्रेबरी के पास कुछ मकानों को जहाँ बीयर और आसुत व्हिस्की ले जाने वाले 27 भारतीयों और ब्रेबरी के यूरोपियन सहायक मिस्टर बैच्ची को मार दिया।

कुछ प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताया गया कि यह भू-स्खलन बड़ी तेजी से एक साथ तेज आवाज के साथ गिरा, लेकिन देखने वालों ने इससे पहले के भू-स्खलन के क्षण को नहीं देखा।करीब 4.00 बजे इस विपदा की खबर नैनीताल पहुँची। तब सभी संबंधित अधिकारी, लेफ्टिनेंट गवर्नर (मिस्टर लान्ची), कुमाऊँ कमिश्नर, डिप्टी कमिश्नर, नैनीताल और इंजीनियर्स ने घटना स्थल का दौरा किया। भू-स्खलन और पानी की निकासी के बारे में आंकलन किया।बाद के आंकलन से मालूम हुआ कि पहले छोटे भू-कटाव हुए, फिर मुख्य भू-स्खलन हुआ। 10 अगस्त को ही बलियानाले के ऊपर ब्रेबरी के पास 1891 मैं बने झूला पुल के ऊपर की पहाड़ियों में झुकाव आ गया था। 15 अगस्त को ही दो छोटे भू-कटाव पहाड़ी से गिरे, जैसा लेफ्टिनेंट कुकसेनक, आरई. ने मुझसे कहा और पहाड़ी के मध्य से निकलते पानी के स्रोतों को दिखाया। मुख्य भू-स्खलन के बाद 17 अगस्त की रात बलियानाले में तीन नए तालाब बन गए, जो बाद में रिसाव के कारण और भर जाने पर पानी निकल जाने के बाद बिना निचले हिस्सों के नुकसान पहुँचाए खाली हो गए।इतना सब देखने के बाद मैं अपने आंकलन में मुख्य स्थल पर स्थिति के चीफ इंजीनियर मिस्टर ओल्डिग, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर लेफ्टिनेंट कर्नल पुलफोर्ड, आर.ई. और अधिशासी अभियन्ता, कुमाऊँ डिवीजन और अन्य लोगों को धन्यवाद देता हूँ। मिस्टर पोलव्हील
3. भू-स्खलन के बाद मैंने उस स्थान के नक्शे, चित्र और रेखा चित्र बनाए । शिखर में एक त्रिभुजाकार आकार का दिखाई दे रहा था। इस भू-स्खलन की मोटाई करीब 200 फीट और ऊपरी सतह से नीचे नाले के पास तक आया था। इसका क्षेत्रफल करीब 1/9 वर्ग मील था। यह सन् 1880 में नैनीताल में आए भू-स्खलन से बड़ा दिखाई दे रहा है। यह ऊपर ठोस पहाड़ी से निकलकर नीचे बहते हुए गीली अवस्था में है। यह 1893 में आए गोहना भू-स्खलन से छोटा है।

4. भू-स्खलन का ऊपरी हिस्सा जो पहाड़ी से अलग हुआ, वहाँ 45°-48° के ढलान पर है। वहाँ कुछ और भू-स्खलन के हिस्से हैं। यह पहाड़ी के शिखर से 100 फीट ऊँचाई पर 50-60 फीट का हिस्सा है।
5.  भू-स्खलन की लंबाई करीब 300 गज और 37° से 32° के ढलान पर है। ऊपर की अपेक्षा नीचे का हिस्सा एकदम फैला हुआ है। एक स्थान पर 150 गज की दूरी पर जंगल अभी भी खड़ा है। ऊपर के भू-स्खलन और नीचे फैले मलबे के बीच कोई लाइन नहीं है।
6.  मलबे का बिखराव तली में 15° से कम होकर अन्त में 5° पर खत्म हो गया। जब यह बलियानाले के पास जाकर उसे और अन्य गधेरों को रोक गया। बलियानाला अब नए स्थान से बह रहा है। जैसा 23 अगस्त के नक्शे में जो अधिशासी अभियंता ने बनाया, जो 60-100 फीट गहराई पर है। यह कुछ हफ्ते बाद के चित्रों और नक्शों में बनाया गया। वहाँ औसत गहराई 50 फीट दिखाई गई।यह सभी बिखराव जंगल के नीचे छोटे टुकड़ों में और झरने के नीचे छोटे और महीन परतों में फैल गया। यह सभी बिखराव काले रंग की मिट्टी का है। बलियानाले में यह मलबा तीन सप्ताह बाद छोटी-छोटी धाराओं में स्लेटी रंग और फिर मटमैले रंग का हो गया। वहाँ मलबे के कुछ हिस्से और टूटे हुए पेड़ों के टुकड़े पड़े हैं। मैं सोचता हूँ वहाँ जंगल कम था। बलियानाले के मलबे के दाहिनी ओर की पहाडी सीधे ब्रेबरी तक आई है। इस ओर कुछ मकान पहाड़ी काट-काट कर बने हैं। मलबे का निचला हिस्सा किसी पुराने ग्लेशियर के मलबे के समान है। दाहिने किनारे का ढलान 38°-40° का है। नीचे तली में  इसका बहाव बहुत कम है। पश्चिमी किनारे में इसकी मोटाई करीब 20 से 50 फीट है। मिस्टर ई. आई. मार्डन, डिप्टी कमिश्नर, नैनीताल ने कमिश्नर को लिखे पत्र में कहा नीचे जाने पर मलबा पूरे बलियानाले में भरा हुआ है।

7. अगर नक्शे और रेखाचित्र को देखा जाय तो मैंने एक अलग से कटाव स्थल को देखा। यह हिस्सा कमजोर और टूटने की स्थिति में है। यह पहाड़ी की दोनों ओर करीब 1/6 वर्ग मील का क्षेत्रफल था। पुराने भू-कटाव और इस कटाव के कारण पैदल रास्ता बन्द हो गया। यह कैलाखान पहाड़ी के दक्षिण में है। यह बैलगाड़ी के टेड़े-मेड़े रास्ते आलूखेत से ब्रेबरी तक गया है। कुछ छोटे कटाव भी देखे जा सकते हैं। यह समुद्र के किनारे के चट्टानों के सीधे कटाव जैसे हैं। यहाँ पड़ी सभी दरारें ग्लेशियरों के ऊपर पड़ी दरारें जैसी है। पी.डब्ल्यूडी. द्वारा अध्ययन से पता चला कि यह उसी तरह की दरारें बनी है. जैसे ग्लेशियर की बनती हैं। जिसमें पहाड़ी की मिट्टी खिसकने से सीधे नीचे गिरती है। 1 सितंबर से 12 सितंबर तक बैलगाड़ी रोड के रास्ते में 8 उध्वाधर गति निम्न प्रकार थी :-

8.  अब इस भू-स्खलन के कारणों को जानना आवश्यक है। इसके दो कारण हो सकते हैं। एक यह 1880 के भू-स्खलन की तरह हो सकता है, जिसमें वह एक भिन्न-भिन्न पत्थर के टुकड़ों से बने हों। दूर से देखने पर यह पृथ्वी की मिट्टी की और टुकड़े की तरह दिखते हैं। लेकिन नीचे जाने पर पहुत बड़े टुकड़ो में दिखाई देते हैं और इतने बड़े ठोस कि उपयोग में नहीं लाए जा सकते हैं। इसी तरह यदि टूटे पहाड़ के ऊपरी हिस्से को देखें तो वह छोटे-छोटे टुकड़ों के पत्थर की तरह है। कहीं पर यह चट्टानों की तरह है। कुछ स्थानों पर यह मलबे के साथ आए पत्थरों और मिट्टी के बने हैं और कहीं पर चट्टानों से पानी के स्रोत बरसात के बाद निकल रहे हैं। 

रणों को एक साथ देखें तो ऊपर की सतह पानी के साथ मिलकर नीचे को बहती है। इस तरह सालों से यह पहाड़ी नीचे को खिसकती रही है, जबकि 37° से ऊपर यह शुष्क अवस्था में है। नीचे तल में आकर यह रुक जाती है। इस प्रकार सभी द्रव्यमान नीचे बह कर आ जाता है। पहले तेजी से आता है गुरुत्वाकर्षण के नियम से। इसको हम पानी-पत्थर का भू-स्खलन कह सकते हैं और अन्त में यह क्षैतिज में आकर रुक जाता है।इस प्रकार देखा जा सकता है कि 1 अगस्त से 17 अगस्त के बीच 36.37 इंच वर्षा हुई।

9.  अगर हम भू-स्खलन के इतिहास को देखें तो यह दो प्रकार का होता है। पहली अवस्था में यह धीरे-धीरे सतह के कई वर्षों की गति के कारण है। सकता है। दूसरी यह बहुत बड़े हिस्से का एक साथ ढलान में पानी की अधिकता के कारण बहाव हो सकता है। दोनों अवस्थाओं में यह गति चट्टान में उपस्थित पानी पर निर्भर है। साथ ही कुछ भौगोलिक कारण। इसके भी दो सिद्धांत हैं।
(अ) चट्टान की संरचना ।
(ब) चट्टान की दिशा और झुकाव ।

(1) कैलाखान पहाड़ी की संरचना स्लेटी श्रृंखला की चिकनी मिट्टी की तरह है। जैसा कि मिस्टर हॉलैण्ड ने कहा। यह स्लेटी पहाड़ी पानी को सोखने के कारण निम्न गुरुत्व की हाईड्रो सिलीकेट बना देती है। प्रारम्भ में यह कीचड़ बना देती है। जिससे पहले पानी निकलता है और अपने झुकाव के कारण यह पानी सोख लेती है। दूसरा स्लेट में रसायनिक परिर्वतन होता है। मिस्टर हॉलैण्ड ने अपनी आख्या में लिखा है कि स्लेट में उपस्थित पायराइड (लौह अयस्क) और हाइड्रो कार्बन लौह अयस्क में स्थित गंधक के साथ हाईड्रोजन मिल कर सलयूरिक अम्ल बना कर बाद में चूने के कार्बोनेट और मैग्नीशियम के साथ सल्फेट्स बनाते हैं जो अपने साथ द्रव्य को बहा देते हैं।

(2) स्लेट की दिशा और झुकाव भी इसमें महत्वपूर्ण है।
(अ)  इस सतह की प्रारम्भिक तली का झुकाव और कटाव भी महत्वपूर्ण है। शेर-का-डांडा का झुकाव सीधी पहाड़ी का है। यह सतह की मिट्टी को पानी के साथ बहा ले जाते हैं। समय के साथ यह सतह चौड़ी हो जाती है।
(कैलाखान की पहाड़ी में यह सभी अवस्थाएं हैं, जो भारी वर्षा के कारण बह जाती है।)
इस प्रकार पहाड़ी ढलान की सभी भौगोलिक अवस्थाएं भू-स्खलन के अनुकूल हैं। पहली पहाड़ी का नीचे को गति, जो उसमें बड़ी दरारें पैदा करता है और फिर पहाड़ी का पानी जो बहाव में सहायता प्रदान करता है।

10. भू-स्खलन अकस्मात एक साथ आ जाता है। बिना किसी जानकारी के। इस सभी के बारे में उन इंजीनियरों ने, जिन्होंने इसके पास नैनीताल की पहाड़ी। का अध्ययन किया, इस पहाड़ी को भी अस्थिर करार दिया 21 सितंबर, 1889 को मिस्टर आर.डी. ओल्डहम ने लिखा है 'मैंने टेड़े-मेड़े बैल गाड़ी के पहाड़ी रास्ते का अध्ययन किया है। मैं इस निष्कर्ष में पहुँचा हूँ कि 4-6 मील के पत्थरों में नैनीताल रोड में अकस्मात भू-स्खलन आ सकता है। पहाड़ी बहुत खतरनाक है। स्लेटें बाहर को आ रही हैं, जो सीधे बलियानाले को जा सकती हैं। पश्चिमी किनारे के चौथे और पाँचवे माईल स्टोन तथा सभी टेड़े-मेड़े रास्तों, जो पाँचवे और छठे माईल स्टोन में हैं, मौत को बुलावा है'।

मैंने नैनीताल के भौगोलिक नक्शे में लिखा है 'यह चट्टान इस लाइन के इतने नजदीक है, जो छोटे-छोटे टुकड़ों और पाउडर में मिल जाएगा। यह पानी द्वारा कीचड़ बालू में बदल जाएगा। यह बगल में आए नैनीताल के भू-स्खलन की तरह है। इस बात के गवाह मैदान के नीचे कार्ट रोड के पास बलिक हाउस के हैं। समगलर रौक के पास चूने के पत्थरों से भू-स्खलन आया मंदिर के पास, जो 1889 में आया, इसको देखते हुए इंजीनियरों एवं भू-गर्भ शास्त्री ने सुरक्षा के निर्देश दिए। जिसे नैनीताल के अधिकारियों ने सराहा और माना। लेकिन यह दूर से दिखने वाले चट्टानी टुकड़े हैं। जैसा नैनीताल में 1880 में आए भू-स्खलन से हुआ। फिर भी किसी ने नहीं सोचा की बलियानाले के पास और पुल रोड पर बनिये की दुकान, टोल घर और ब्रेबरी खतरे में है। लेकिन मैं आश्चर्य चकित हूँ। पब्लिक रोड, टोलगेट और दुकान, जो प्राइवेट है, असुरक्षित है।

1880 में नैनीताल में आए भू-स्खलन को क्या दिल से लिया गया (1) जैसा अनुमान था अगर कैलाखान में भू-स्खलन आया तो यह एक साथ बहुत तीव्रता से आएगा। (2) यह चारों ओर फैल जाएगा। बड़ी पहाड़ी नीचे आ जाएगी। जैसा मिस्टर एच.सी. कोनिबीयरे, सी.एस. ने कहा 1880 स्लिप के लिए लिखा है-'आधे मिनट से भी कम समय में आखिरी पत्थर तालाब में आ गिरा। उन्होंने आर.एन. चैनी का लेख भी लिखा कि यह 8 सेकेंड से भी कम समय में हो गया। जिसमें 151 लोग तुरन्त ही मारे गए।
यहाँ मैं, 1880 में आए पुराने भू-स्खलन और इस वर्ष आए कैलाखान की तुलना करूं। यह भी बहुत दूर तक बिखर गया। जैसा 1880 में आए भू-स्खलन में था। 1880 में भू-स्खलन के शिखर में पुराने असेम्बली रुम्स के पास 17° का ढलान था। कैलाखान भू-स्लखन में बेबरी के शिखर पर 19" का ढलान था।

11.  तुरन्त ही भू-स्खलन के स्थान को खतरनाक और टूटने वाला बताया। यह हल्की और तेज वर्षा में लगातार पहाड़ी के नीचे आने वाला हो गया। धीरे-धीरे लेकिन अवश्य ही सतह पर दरारें आएंगी और समय के साथ वे चौड़ी। और गहरी हो जाएंगी। इधर-उधर का जंगल का हिस्सा बरसात के पानी के बाद ही ठीक होगा। अगली मानसून और आगे जब छिद्रों से नीचे जाएगा और अगले भू-स्खलन की तैयारी करेगा। इस भू-स्खलन का उत्तरी हिस्सा एक साथ या धीरे-धीरे नीचे गिर कर बलियानाले को रोक सकता है। जबकि दक्षिणी हिस्सा ब्रेबरी, टोंगा रेस्टोरेन्ट और साथ के हिस्सों को तोड़ सकता है। जबकि यह नीचे घाटी में डगलसडेल और अन्य की जायजाद को प्रभावित कर सकता है। ऐसे मैं सोचता हूँ। यह अस्थिर है।

12. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने सुझाव भी इस भू-स्खलन के लिए काफी नहीं हैं। सभी नाप-जोख भी किसी समय सम्पत्ति को नष्ट कर सकती है।

13.  प्रश्न उठता है कि अब क्या किया जाये  मैं केवल स्वयं महसूस करता हूँ। यहाँ एक सलाह देता हूँ, एक सावधानी रखी जाय। मैं, पहाड़ी को शेर-का-डांडा की पहाड़ी की तरह ही देखते रहने की सलाह देता हूँ। यह समय-समय पर लगातार हमेशा होना चाहिए। अधिक वर्षा में और अधिक गति में देखा जाये । इस सभी का लेखा-जोखा देख कर रखा जाय, चाहे वह क्षैतिज में हिले या उर्ध्वाधर नीचे को गिरे।
मैं फिर सलाह देता हूँ कि इस सब का एक नक्शा दरारों का भी रखा जाये । इस सब का सावधानी पूर्वक जाड़ों में भी समय-समय पर अध्ययन किया जाये ।
14. भविष्य में भी इस पहाड़ी को भारी वर्षा में देखते रहने की सलाह देता हूँ। यह बिखरी पहाड़ी धीरे-धीरे पूरी होगी और बिना नुकसान के छोटे-छोटे टुकड़े नीचे गिरेंगे। सावधानीपूर्वक निरीक्षण से यह पहाड़ी जल्दी ही स्थिर हो जाएगी।
दिनांक 18.11.1898
सी. एस. मिडिलमिस

अधीक्षक, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण 
स्रोत - नैनीताल एक धरोहर 

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Post By: Shivendra
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