पारिस्थितिकी और पर्यावरण

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मानव- पर्यावरण संबंध का मानव स्वास्थ्य पर प्रभावः एक भौगोलिक अध्ययन
मानव अपनी जीवन की उत्पत्ति से ही पर्यावरण से संबंधित रहा है। मानव पर्यावरण का संबंध मनुष्य के लिए अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी रहा है। पिछली चार शताब्दियों में मानव की गतिविधियों के कारण पृथ्वी के मूल तत्वों हवा, पानी, मिट्टी तथा रासायनिक संगठन में परिवर्तन हुआ है
Posted on 06 May, 2023 05:34 PM
सारांश-

मानव अपनी जीवन की उत्पत्ति से ही पर्यावरण से संबंधित रहा है। मानव पर्यावरण का संबंध मनुष्य के लिए अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी रहा है। पिछली चार शताब्दियों में मानव की गतिविधियों के कारण पृथ्वी के मूल तत्वों हवा, पानी, मिट्टी तथा रासायनिक संगठन में परिवर्तन हुआ है, जिसके कारण पृथ्वी के भौतिक और रासायनिक विशेषताओं में तेजी से रूपांतरण हुआ है इस रूपांतरण के का

मानव- पर्यावरण संबंध का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव,PC-H&F
झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम
देश की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में पिछले दिनों एक दृश्य ने शहरवासियों समेत पूरे देश को चिंता में डाला है। यहाँ की बेल्लनदर (बेलंदूर) झील में आग लगने की घटनाएं हुईं। ऐसा नजारा इस झील में कई बार हो चुका है। Posted on 28 Apr, 2023 10:47 AM

झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम

झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम,Pc-elephango
प्रकृति तटस्थ होती है
विज्ञान ने इतने सालों की खोज और शोध से यह तो संभव बना दिया है कि हम ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की आहट पहले से जान जाते हैं और किस्म किस्म की छतरियां तानकर अपनी जान बचा लेते है। Posted on 27 Apr, 2023 05:01 PM

प्रकृति तथ्य होती है- तब "अम्फान" आकर गुजर गया था, अब "निसर्ग " आकर गुजर गया है। राहत की आवाज सुनाई दे रही है कि चलो गुजर गया! हिसाब यह लगाया जा रहा है कि "अम्फान " उड़ीसा से कटकर निकल गया, "निसर्ग" ने मुम्बई के चेहरे पर कोई गहरी खरोंच नहीं डाली तूफान कमजोर पड़ गया ! कैसे इसका हिसाब लगाया आपने कि तूफान कमजोर पड़ गया?

प्रकृति तटस्थ होती है,PC-Fzilla
गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन
लखनऊ के आस-पास गोमती नदी के कई महत्वपूर्ण स्थलों से शैवाल विविधता का अध्ययन करने के लिए एकत्रित नमूनों का विश्लेषण करने पर कुल तेईस शवालों की प्रजातियां पाई गई। इन तेईस प्रजातियों में सोलह सुनहरे भूरे (diatoms) शैवाल के अतिरिक्ति चार हरे शैवाल (green algae) तथा तीन नीलहरित शैवाल (blue-green algae) उपस्थित थे। हरित शैवाल प्रदूषण संवेदनशील होने के कारण केवल स्थल 'क' में जहाँ पानी प्रदूषण रहित था। Posted on 26 Apr, 2023 02:08 PM

 

गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन, PC-TWP
समुद्री शैवाल की खेती और प्रसंस्करण क्षेत्र असंख्य संभावनाएं
वैश्विक दृष्टि से समुद्री शैवाल का उत्पादन लगभग 32.59 मिलियन टन के नए शिखर पर पहुंच गया है, जिसकी कीमत लगभग 13.3 बिलियन अमेरीकी डॉलर है। इसमें से तकरीबन 97.1% (91.5 मिलियन टन) पूरी तरह से समुद्री शैवाल की खेती द्वारा उत्पन्न किया जाता है Posted on 24 Apr, 2023 11:00 AM

समुद्री शैवाल खारे पानी में पाया जाने वाला एक वृहद शैवाल है विविध वंशावली के अंतर्गत इन्हें मूलतः तीन वर्गों जैसे क्लोरोफाइटा, फियोफाइटा और रोडोफाइटा में विभाजित किया गया है। आगार, कैरेजेनन और एल्गिनेट प्राथमिक हाइड्रोकार्बन हैं जिनकी उत्पत्ति समुद्री शैवाल से ही होती है। इन हाइड्रोकार्बन में उच्च व्यावसायिक क्षमता होती है, जिनका उपयोग दैनिक जरूरतों के उत्पादों में नियमित रूप से किया जाता है।

समुद्री शैवाल की खेती,Pc-Forbes india
एक जिंदगी वृक्षों के नाम प्रकृति सहचरी वंगारी मथाई
नोबल शांति पुरस्कारों को कोटि में पर्यावरण संरक्षण को भी अहमियत दी जाने लगी, कदाचित पर्यावरण की बदहाली से भयाक्रांत मानवता की चीख-पुकार ने नोबल समिति को उद्वेलित किया हो तभी तो एक साधारण सी कीनियाई महिला, जो कभी पौधरोपण के लिए महिलाओं को कुछ शिलिंग देती थी, ने कालांतर में (वर्ष 2004) नोवल की बुलंदियों का संस्पर्श किया। उस साधारण सी महिला ने वस्तुतः पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में, अपनी धरती की हरीतिमा बचाने के उपक्रम में असाधारण कार्य किए थे Posted on 22 Apr, 2023 11:15 AM

नोबल पुरस्कारों के साथ एक विसंगति है। वर्ष 1901 से आरंभ नोबेल पुरस्कार भौतिकी  रसायन, कार्यिकी (चिकित्सा) के निमित्त तो हैं लेकिन नोवल प्रतिष्ठान गणित को कोई श्रेय नहीं देता है। यह अपने आप में विस्मयकारी है क्योंकि गणित विद्या तो सारे विज्ञानों की पटरानी है। गणित विद्या न होती तो आज न राकेट होते, न मिसाइलें, न कम्प्यूटर और न ही संचार क्रांति का पदार्पण होता। बहरहाल, नोयन पुरस्कार चयन समिति अर्थ

एक जिंदगी वृक्षों के नाम प्रकृति सहचरी वंगारी मथाई,Pc-one earth
शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और हमारा पर्यावरण
आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूरदराज के गांवों में, गांव के लोगों के अनुरोध पर हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गांवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, पहाड़ के गांव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं, एक गांव से दूसरे गांव की दूरी तय करने में घंटों लग सकते हैं, अब तो खैर स्थिति बदल गई है, सड़कें भी बन गई हैं और सरकारी स्कूलों की तादाद भी बढ़ी है।
Posted on 20 Apr, 2023 04:35 PM

आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूरदराज के गांवों में, गांव के लोगों के अनुरोध पर हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गांवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, पहाड़ के गांव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं, एक गांव से दूसरे गांव की दूरी तय करने में घंटों लग सकते हैं, अब तो खैर स्थिति बदल गई है, सड़कें भी बन गई हैं और सरकारी स्कूलों की तादाद भी बढ़ी है।

शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और हमारा पर्यावरण,Pc- Fii
तकनीकी पर्यावरण का नया चेहरा
पिछले दो दशकों में हमारे देश में तकनीक आधारित डिजिटल सेवाओं का बड़ा विस्तार हुआ है। उसका सबसे बड़ा प्रभाव बैंकिंग और डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में देखने को मिलता है। सरकार द्वारा ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा देने के कारण ऑनलाइन लेन-देन में आशातीत बढ़ोतरी हुई है। माना जाता है कि अब लगभग चालीस प्रतिशत लेन-देन ऑनलाइन माध्यमों से ही हो रहा है। देश में पंचायत स्तर तक नागरिक सुविधा केंद्र यानी कॉमन सर्विस सेंटर का जाल बिछाया गया है, जो कई तरह की सेवाएं प्रदान कर रहे है। किताबें हों, कपड़े हों या घरेलू उपयोग का कोई और सामान, घर बैठे मंगवाया जा सकता है। और अब तो राशन और सब्जियां आदि भी सीधे दुकान से घर पहुंचने की व्यवस्था की जा रही है। शिक्षा, आवागमन, यातायात, चिकित्सा, शोध और विकास जैसे सभी क्षेत्रों में सूचना तकनीक ने अपना हस्तक्षेप बढ़ा लिया है। यह प्रगति की दिशा में एक अच्छा सूचक है। भारत सूचना सेवाओं के लिए एक निर्यातक देश माना जाता है और हमें विश्व में सॉफ्ट पॉवर की तरह देखा जाता है।
Posted on 20 Apr, 2023 03:37 PM

ऊपर से देखने पर लग सकता है कि हमारे देश में सूचना क्रांति बदस्तूर जारी है पर वर्तमान त्रासदी ने डिजिटल डिवाइड का एक नया चेहरा सामने ला दिया है। लॉकडाउन का पहला झटका झेलने के बाद अधिकतर शहरी मध्यवर्ग और उच्च वर्ग अपने घरों में बंद हो गया। उससे अपेक्षा भी यह की जा रही थी। उसके पास अन्य लोगों से बेहतर डिजिटल सुविधाएं थी। जिनसे यह वर्क फ्रॉम होम जैसी लग्जरी का लाभ उठा सकता था। उसके पास शायद घर में

तकनीकी पर्यावरण का नया चेहरा, Pc-stockholm
पर्यावरण संरक्षण में विधायिका की भूमिका
पृथ्वी और प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन हमारे देश में आर्थिक विकास और मानवीय समृद्धि के लिए एक महती आवश्यकता है। पर्यावरण की सुरक्षा और उसके संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग की आवश्यकता भारत के संवैधानिक ढांचे में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। हमारा संविधान देश के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है। अनुच्छेद 21 के अंतर्गत "जीवन का अधिकार' केवल जीवित रहने तक ही सीमित नहीं है Posted on 20 Apr, 2023 12:08 PM

पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिलकर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर हैं और "आवरण-जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाए तो पर्यावरण मनुष्य के आसपास का वह भौतिक परिवेश है जिसका मनुष्य एक भाग है और वह अपने जैविक कार्यकलापों, भरण-पोषण और विकास के लिए उस पर निर्भर है। भौतिक पर्यावरण के अंतर्गत वायु, जल और भूमि जैसे प्राकृतिक संसाधनों से लेकर ऊर्जा वाहक, मृदा और पेड़-प

 पर्यावरण संरक्षण में विधायिका की भूमिका,Pc Shutterstock
इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी अध्ययन की संकल्पना
इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी का अर्थ है जीवित प्राणियों के आपसी तथा पर्यावरण के साथ उनके संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन। पेड़-पौधे, जंतु और सूक्ष्म जीवाणु अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अन्योन्यक्रिया करते हैं। पर्यावरण के साथ मिलकर वे एक स्वतंत्रा इकाई की सृष्टि करते हैं जिसे पारिस्थितिकी तंत्र या पारितंत्र (इकोसिस्टम) का नाम दिया जाता है। वन, पहाड़, मरुस्थल, सागर आदि पारितंत्रों के ही उदाहरण हैं। Posted on 19 Apr, 2023 05:18 PM

इकोलॉजी और पर्यावरण आज बहुचर्चित एवं  बहु प्रचलित शब्द हैं। पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और ओजोन क्षरण जैसी समस्याओं  ने विश्व भर में गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है। असल में, पर्यावरण शब्द ‘परि’ और ‘आवरण’ के मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ होता है चारों ओर तथा ‘आवरण’ का अर्थ होता है ढका हुआ। यानी पर्यावरण वह सब कुछ है जो हमें चारों ओर से ढके हुए है। यही हमारे दिनोंदिन के जीवन को प्रभावित करता

इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी अध्ययन की संकल्पना,PC-dreamstime
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