मानसून

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August 10, 2024 While citizens need to play their part to prevent diseases such as Zika, municipal bodies/urban area authorities need to pull their socks up and set right the poor governance mechanisms that are slowly turning cities into hotbeds of diseases, filth and mismanagement.
The Aedes aegypti mosquito, the culprit for causing Zika (Source: Wikimedia Commons)
मानसून: प्रकृति का जीवन संगीत
Posted on 29 Dec, 2010 12:22 PM


मानसून प्रकृति अपने हजार रूपों में हमारे सामने खुशियों का ख़जाना लाती है, किंतु मानसून के इस चटकीले रंग ने मानव–मन और मष्तिष्क पर अपना जो असर छोड़ा है, वह कल्पना से परे है। वैज्ञानिक, लेखक, कवि, चित्रकार, गीतकार, संगीतकार, राजा, रंक, जनता या सरकारऌ इनमें कोई भी नहीं जो मानसून के जादू से बचा हो।

 

अभावों का ऋण जल
Posted on 29 Dec, 2010 11:50 AM


अकाल में पैदो ले चार ही वंश
सासी, कुत्ता, गिद्ध और सरपंच।

मानसून की टेढ़ी चाल
Posted on 01 Aug, 2010 09:34 AM


मानसून की टेढ़ी चाल से भारत में सभी हतप्रभ हैं। पिछले कुछ वर्षो से जिस तरह से मानसून दगा दे रहा है वो भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भारी चिंता का विषय हैं। सामान्यतः मानसून शब्द का उपयोग भारी वर्षा के पर्याय के रूप में होता है, लेकिन वस्तुतः यह हवा कि दिशा बदलने का प्रतीक है, जिससे वर्षा कि सम्भावनाएं ज्ञात होती है।

monsoon
धरती सूखी, तो क्या बारिश ही दोषी …
Posted on 28 Jul, 2010 06:58 AM
देश में पड़ रही भीषण गर्मी और बारिश में होने वाली देरी से लगभग सभी परेशान हैं और देवताओं को मनाने-पूजने का सिलसिला शुरु हो चुका है। बारिश लोगों के लिए उत्सव और खुशी का माहौल लेकर आती है, देश के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होती। इस बारिश पर तोहमत भी हैं, मानसून अच्छा न होने से भारत में लाखों लोग प्रतिवर्ष या तो सूखे की वजह से फ़सल खराब होने या फ़िर भारी बाढ़ में पूरे गाँव, जंगल और उपजाऊ जमीन
वर्धा में बारिश
Posted on 09 Jul, 2010 12:04 PM आंखों को और उनसे जुड़े मानसिक जगत को हरीतिमा और वर्षा क्यों भली लगती है? इसके जैविक कारण होंगे, पर ऐतिहासिक या कहिए प्रागैतिहासिक कारण भी हैं। हमारे दूरस्थ पूर्वजों ने कई लाख वर्ष ऐसे ही वातावरण में बिताए होंगे। हमारा सामूहिक अवचेतन उन्हीं स्मृतियों को अपने गुह्य कक्ष में संजोए हुए हैं। जल ही जीवन है, कहा तो गया है, पर खुद जल में कितना जीवन है, मुझे पता नहीं। लेकिन वे पेड़-पौधे, जिन पर वर्षा के बादल अमृत की वर्षा करते हैं, जीवन से भरपूर हैं। दरअसल, ये पेड़-पौधे ही हमारे असली पूर्वज है, क्योंकि यह सचल सृष्टि उन्हीं की कोख से पैदा हुई है।चारों ओर हरा-भरा हो और निरंतर वर्षा हो रही हो, यह दृश्य मैंने ज्यादा नहीं देखा है – यों दुनिया को मैंने देखा ही कितना है- लेकिन जो भी दृश्य देखे हैं, वे किसी प्रेम कथा की तरह मन पर अंकित हैं। पहाड़ों पर बारिश का अपना आनंद है और हरे-भरे मैदान में बूंदों की थाप का अपना सुख। कोलकाता में खूब बारिश होती थी और वहां के वातावरण में वर्षा के दिन जितने असुविधाजनक होते हैं, उसकी तुलना के लिए मेरे पास कोई समांतर अनुभव नहीं है। शायद गांवों में इसी तरह जीवन कीचड़ में लिथड़ जाता हो। फिर भी कोलकाता का जो मौसम मन में रमा हुआ है, वह वर्षा का मौसम ही है। दिल्ली में तो बारिश होती ही नहीं है। जब होती है, तो उसका भी कुछ खुमार होता है, पर इस महान शहर में ऐसा दृश्य मुझे अभी तक देखने को नहीं मिला कि दूर-दूर तक घास
चिंता में शामिल नहीं पानी
Posted on 16 Jun, 2010 11:10 PM
मानसून के आगमन से पहले ही राजस्थान व अन्य राज्यों के कुछ इलाकों में बारिश हुई। यह पुरानी बात है कि जैसे ही बारिश शुरू होती है, लोग पानी के बारे में सोचना छोड देते हैं और भूल जाते हैं कि पानी का संकट स्थाई है। वास्तव में राजस्थान में सूखे के हालात हैं। राज्य के 33 प्यासे जिलों मेें ट्रेनों और टैंकरों से पानी की आपूर्ति हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार, भीलवाडा और पाली जिलों में पेयजल की आपूर्ति र
'घनन-घनन घन घिर आए बदरा'
Posted on 08 Jul, 2009 10:39 AM

आकाश में छाए काले बादलों को देखकर किसका दिल झूमने नहीं लगता, चाहे वह जंगलों में रहने वाले मयूर हों, कवि हों, किसान हों या गर्मी से तपते हुए नगरवासी ।

फिर ये बादल भी कैसे-कैसे हैं; कोई तो काजल जैसे काले, कोई धुएं जैसे भूरे, कोई रूई के ढेर जैसे सफेद, तो कोई झीने दुपट्टे जैसे सफेद । इन्हीं बादलों पर अनगिनत कविताएं लिखी जा चुकी हैं, सैकड़ों फिल्मी गीत बनाए गए हैं, महाकवि कालीदास ने तो मेघदूतम् जैसा अमर महाकाव्य भी लिख डाला है । लेकिन बादलों की सुन्दरता अपनी चरम सीमा पर तब पहुंचती है जब शाम को ढलते सूरज या भोर के उगते सूरज की किरणें आकाश के साथ-साथ बादलों को भी नारंगी, लाल, पीला जामा पहना देती हैं ।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मानसून विलंब
Posted on 13 Mar, 2009 07:07 PM शिकागो, 1/03,09। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अगली सदी तक ग्रीष्मकालीन मानसून में पांच से 15 दिन का विलंब हो सकता है तथा भारत सहित दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से में वर्षा का स्तर काफी कम हो सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है। अध्ययन के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि से मानसून पूर्व की आ॓र रूख कर सकता है, जिससे हिंद महासागर, म्यामांर और बांग्लादेश में तो खूब बारिश होगी लेकिन पाकिस
लगी आज सावन की . . . . . .
Posted on 23 Jan, 2009 07:12 AM

कौंधती बिजली, गरजते बादल और बरसती बूंदें...यही तो पहचान है मानसून की। मानसून की फुहारें जब तन के साथ मन को भिगोती हैं तो भारतीय जनमानस अलमस्त हो उठता है। सावन की इस ऋतु से हिंदी सिनेमा का एक खास और मधुर रिश्ता रहा है। बालीवुड फिल्मकारों का सावन और बरसात के प्रति अनुराग इस बात से ही झलकता है कि इन्हें केंद्र में रखकर कई फिल्मकारों ने सिनेमाई स्क्रीन पर यादगार प्रस्तुतियां की। कहा जाए तो सावन

फिल्मों में बरसात
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