मानसून

उमड़ते घुमड़ते भागते मेघ
Posted on 30 Aug, 2014 01:26 PM हमारे वायुमंडल की कई परतें हैं। इन परतों में बनने वाले मेघ भी कई त
मेवाजी आप तो बरसो
Posted on 30 Aug, 2014 12:26 PM जल अगर जीवन देता है, तो ले भी लेता है अपनी सर्जना को बिगड़ैल होते
जलभराव पर समीक्षा बैठक
Posted on 13 Aug, 2014 06:06 PM आखिर मौसम विभाग की तथाकथित भविष्यवाणियों को धता बताकर मानसून आ ही गया। शहर में निचली बस्तियों में पानी का जमाव होने से शासकीय सभागार में ‘समीक्षा बैठक’ आयोजित की गई। इस बैठक की अध्यक्षता सरकार के प्रभारी मंत्री स्वयं करने वाले हैं। प्रोटोकॉल के अनुसार सरकारी अमला, मीडियाकर्मी, स्वयंसेवी संस्थाओं आदि के प्रतिनिधि, पुलिस के आला अधिकारी तथा प्रबुद्ध जन बैठक में शिरकत करने वाले हैं। बैठक का समय सरकारी
आ भी जाओ प्यारे मानसून
Posted on 05 Aug, 2014 08:42 AM प्यारे मानूसन, अच्छे मानसून, तुम कब आओगे? अब और अधिक देर न करो जल्द आ जाओ। इस समय हमें तुम्हारी जरूरत है। हमारी हर सुबह इसी उम्मीद के साथ होती है कि तुम आज आओगे और धरती पर बरसकर सूरज चचा के ताप से मुक्ति दिलाओगे।
पावस ऋतु में मेघ मल्हार
Posted on 27 Jul, 2014 09:00 AM पावस ऋतु में मल्हार अंग के रागों का गायन-वादन अत्यन्त सुखदायी होता है। वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है। काफी थाट का यह राग औड़व-औड़व जाति का होता है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है। गांधार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता। समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के तौर पर गांधार स्वर का प्रयोग करते हैं। भातखंडे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग
मुसीबत बढ़ाएगी मानसून की बेरुखी
Posted on 02 Jul, 2014 12:54 PM देश की नई सरकार के सामने बढ़ती महंगाई बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनका नेतृत्व महंगाई को लेकर खासतौर पर चिंतित है। सरकार ने वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाया है। प्रधानमंत्री खुद प्रभावी कदम उठाने के लिए कई दौर की वार्ता कर चुके हैं। पिछले माह के सबसे उच्च दर पर महंगाई पहुंच गई है, जिससे आम आदमी की समस्या बढ़ गयी है।
हमारी मर्जी से नहीं बरसेगा पानी
Posted on 02 Nov, 2010 09:23 AM

बुरे वक्त के लिए सहेजकर रखना सीखना होगा

21वीं सदी की सबसे बड़ी समस्या पानी है। यह बात इस वर्ष हमें अधिक अच्छे से इसलिए समझ आ रही है क्योंकि अभी तक देश भर में 65 फीसदी बारिश कम हुई है। सिर्फ इस वजह से ही पहले से सिर चढ़ी हुई मंदी अधिक गहरा गई है। उस पर से तुर्रा यह कि मंदी के साथ-साथ महँगाई भी बढ़ रही है और आम आदमी की कमर तोड़े दे रही है। मंदी, महँगाई और बारिश के बीच संबंध को समझने के लिए हमें उसी गणित को समझना होगा जो बाघ और बैंगन के बीच संबंध को समझाता है।

धरती मांगे और बारिश
Posted on 28 Jul, 2010 08:39 AM

माना इस बार अच्छे मानसून की उम्मीद है लेकिन भूमिगत जल स्तर बढने की फिलहाल कोई सूरत नजर नहीं आती। एक मानसून क्या कई मानसूनों की अच्छी बारिशें धरती की सूखी कोख को तर करने के लिए चाहिए। इंसानी करतूतों ने इस जमीं के जल को इतना निचोड लिया है कि धरती पूरी तरह रीत चुकी है। आज जरूरत है बारिश की एक-एक बूंद को सहेजने की। ऎसे में धरती मांग रही है और बारिश। भूजल संकट पर गजेंद्र गौतम की खास रपट-
मैं सुनीता को तब से जानता हूं जब उसने आठवीं बोर्ड की परीक्षा में 80 फीसदी अंक लाकर पूरे गांव को चौंकाया था। बेहद सीमित संसाधनों के जरिए अपनी पढाई करने वाली सुनीता को उम्मीद थी कि दसवीं में इस रिकॉर्ड को कायम रखते हुए वह डॉक्टर बनने के अपने लक्ष्य की तरफ बढेगी। लेकिन पिछले दो साल में हालात बदल गए हैं। सुनीता जिस गांव की रहने वाली है, वह पानी की भीषण किल्लत का सामना कर रहा है। उसके घर के नजदीक लगा हैंडपंप नाकारा हो चुका है। पूरा गांव अब महज एक हैंडपंप पर निर्भर है, जो सुनीता के घर से खासी दूरी पर स्थित है। जब पूरा गांव पेयजल के लिए इसी हैंडपंप पर निर्भर हो तो जाहिर है कि पानी के लिए जद्दोजहद भी बढेगी और लगने वाला समय भी। सुनीता पर भी यह जिम्मेदारी है कि वह परिवार की जरूरतों के लिए पानी इस हैंडपंप से लेकर आए।

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