मानसून

बारिश का संगीत
Posted on 02 Nov, 2011 03:20 PM

जंगलों, पहाड़ों, पठारों, समतल पर वर्षा अपनी तरह-तरह की किलकरियों से गूंजने लगती है। झमाझम, रिम

बैरी हुए बदरवा
Posted on 07 Sep, 2011 01:10 PM

जब बुनियादी आंकड़े भी न हों तो विज्ञान भला किस आधार पर पूर्वानुमान लगाए। मॉनसून पर निर्भरता को

मानसून के दिनों में घर को बनाएं रेन प्रूफ
Posted on 06 Sep, 2011 05:13 PM

आमतौर पर कई जगहों में ऐसा देखा जाता है कि लगातार बारिश होने के कारण, पूरी देखरेख के बावजूद, छतो

चौमासा के बारहमासी फल
Posted on 06 Sep, 2011 09:38 AM

हमारे पंचांग का सबसे अनूठा समय है चौमासा। कुल जितना पानी बरसता है हमारे यहां, उसका 70-90 प्रतिशत चौमासे में ही गिर जाता है। जिस देश में ज्यादातर लोग जमीन जोतते हैं, उसमें चौमासे की उपज से ही साल-भर का काम चलता है। केवल किसानों का ही नहीं, कारीगरों और व्यापारियों का और उनसे वसूले कर पर चलने वाले राजाओं का, राज्यों का भी।

बीत चला है अब चौमासा। आते समय उसकी चिंता नहीं की जिनने, वे उसके बीतने पर क्या सोच पाएंगे? फिर भी इसे विलंब न मानें। चौमासा तो फिर आएगा। तो आने वाले चौमासे की चिंता अब जरा आठ माह पहले ही कर लें। इसी पर टिका है हमारे पूरे समाज का, पूरे देश का भविष्य। जमीन और बादल का यह संबंध हमारे नए लोगों ने, नए योजनाकारों ने नहीं समझा है। पर इस संबंध को समझे बिना हमारा भविष्य, हमारी जमीन, हमारा आकाश निरापद नहीं हो पाएगा और जब आपदाएं बरसेंगी तो आज की नई अर्थ व्यवस्थाओं के रंग-बिरंगे छाते हमें बचा नहीं पाएंगे। भागवत पुराण हमें बतलाता है: भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन का पालन करते हुए चार महीने के लिए सुतल में उनके द्वार पर चले जाते हैं।
मॉनसून की पहली पुकार -केरल
Posted on 16 Aug, 2011 04:57 PM

केरल का नाम आते ही मॉनसून की रिमझिम फुहारों का मौसम याद आ जाता है। गर्मी से बेहाल कुछ लोग तो मॉनसून का स्वागत करने केरल ही जा धमकते हैं और पंच कर्म चिकित्सा का भी लाभ ले कर लौटते हैं। प्रकृति ने भारत को जो उपहार दिया है केरल उनमें अद्वितीय है। अद्भुत झीलों और सुन्दर पहाड़ियों से सजा हरा-भरा केरल हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। केरल में छुट्टियां बिता कर पर्यटक प्रफुल्लित मन से लौटते हैं। के

केरल का एक सुंदर दृश्य
बारिश, बाढ़ और लोग
Posted on 26 Jul, 2011 08:31 AM

वर्षा ठेठ हिंदुस्तानी ॠतु है, जिसका इंतज़ार साल भर रहता है लेकिन अब यह एक कठोर ॠतु में बदल गयी है जिसमें साधारण जन पानी से लड़ते हुए ज़िंदगी की राह बनाते हैं। पावस ठेठ हिंदुस्तानी ॠतु है। एक ऐसा मौसम, जिसका इंतजार देश के किसानों से लेकर खेतों और पक्षियों तक को रहता है। प्राचीन साहित्य हो या लोक संस्कृति, जितनी रचनाएं वर्षा पर केंद्रित हैं, उतनी किसी और ॠतु पर नहीं। यहां तक कि वसंत जैसी फूलों की

बाढ़ की वजह से नाव पर स्कूल जाते बच्चे
धरती का उत्सव है बारिश
Posted on 25 Jul, 2011 03:32 PM

मछलियों के लिए भी पोखर में पर्याप्त पानी होगा। जल्द ही वह चकत्तेदार फोर्कटेल चिड़िया यहां लौट आ

प्रकृति का रोमांच है बरखा
Posted on 25 Jul, 2011 11:04 AM मानसून शब्द भारत के बाहर से आया हुआ लगता है। बाहर से आया हो या देशज हो, ध्यान में आते ही बादलों की गड़गड़ाहट और मूसलाधार बारिश का दृश्य और आवाज मन पर छा जाती है। भारतीय साहित्य मेघ और वर्षा से भरा है। घोर ग्रीष्म-ताप के बाद वर्षा आती है।
धान रोपने की तैयारी में जुटा कृषक
बहुत लंबा सफर तय करती है बारिश
Posted on 20 Jul, 2011 02:11 PM बच्चों, यह तो आप जानते ही हो कि आजकल मॉनसून का मौसम चल रही है जिसमें खूब बरसात होती है, लेकिन क्या आप यह भी जानते हो कि बारिश होती कैसे है?
मौसम क्या है?
Posted on 11 Jul, 2011 04:53 PM

पृथ्वी द्वारा वापस भेजी जाने वाली ऊर्जा को पहले पृथ्वी पर ही काफी “कार्य” करना पड़ता है तब वह

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