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जलवायु परिवर्तन
पश्चिमी अफ्रीका में जलवायु परिवर्तनः खाद्य सुरक्षा और जैव- विविधता को खतरा
Posted on 03 Feb, 2011 02:40 PMपश्चिमी अफ्रीका विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति अरक्षित है। इसकी एक वजह यह है कि यह इलाका अनिवार्य रूप से वर्षा जल पर आधारित है। पहले ही जलवायु में बदलाव यहां दर्ज किए जा रहे हैं और इससे बुरे की आशंका है। यदि विनाशक बदलावों से बचना है, तो इस क्षेत्र को तत्काल बहुमूल्य पारिस्थितिकी को संरक्षित करने तथा किसान-मजदूरों व अन्य समूहों को सहयोग करने के तरीके खोजने होंगे ताकि वे दीर्घकालिक बदलावडूबते द्वीप से सबक लेने का समय
Posted on 28 Jan, 2011 10:03 AM
आस्ट्रेलिया के समीप पापुआ न्यूगिनी का एक द्वीप कार्टरेट्स इतिहास बनने जा रहा है समुद्र में हमेशा के लिए डूबकर।
पर्यावरणीय ह्रास का पहला शिकार इस द्वीप की पूरी आबादी विश्व में ऐसा पहला समुदाय बन गयी है, जिसे वैश्विक तापन की वजह से विस्थापित होना पड़ा रहा है। समुद्र की उफनती लहरों ने यहां के बाशिंदों की फसलें बर्बाद कर दी हैं और स्वच्छ जल के स्रोतों को जहरीला बना दिया है। कार्टरेट्स द्वीप के निवासी इस तरह की विभीषिका के पहले शिकार हैं। यहां से 2000 मानव जनसंख्या को तो सुरक्षित निकाल लिया गया है पर द्वीप के बाकी जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों की जल समाधि तय मानी जा रही है।
जलवायु परिवर्तन की बाढ़
Posted on 04 Jan, 2011 09:12 AMहाल में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि 2030 तक देश को जलवायु परिवर्तन के गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे
'भारत पर जलवायु परिवर्तन का असर' नामक यह रिपोर्ट पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश, प्रोद्यौगिकी मंत्री कपिल सिब्बल और जाने-माने वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने जारी की। इस रिपोर्ट में भारत के हिमालय, पश्चिमी घाट, तटवर्ती क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि, पानी, स्वास्थ्य और वन क्षेत्रों पर वर्ष 2030 तक पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है।
सावधान मौसम बदल रहे हैं
Posted on 29 Dec, 2010 10:34 AMपृथ्वी पर जबसे जल एवं वायु की उत्पत्ति हुई है, तब से लेकर आज तक जलवायु परिवर्तन होता रहा है और भविष्य में भी होता रहेगा। वेद, पुराण, उपनिषद् सभी में इस परिवर्तन की चर्चा अंकित है।कोप 16 : कोपेनहेगन की ही राह पर कानकुन
Posted on 07 Dec, 2010 12:22 PMलेकिन पंद्रह वर्षों की बैठकबाजी और कम से कम आठ बार संधि का प्रारूप बनने और बिगड़ने के बावजूद कोई ऐसा सर्वमान्य दस्तावेज तैयार नहीं हो पाया जिस पर जमा हुए देश अपनी मुहर लगा सके। अमेरिका जहां जलवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक जिम्मेदारी लेते हुए वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए जा रहे कार्बन कटौती के लक्ष्यों को स्वीकार करने को तैयार नहीं था वहीं चीन जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के उपायों की स्वतंत्र जांच के लिए
हिमालय में भी पड़ेगा सूखा, बीमारियां करेंगी घुसपैठ
Posted on 20 Nov, 2010 07:08 AMग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बुरा असर हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। वर्ष 1970 की तुलना में 2030 तक हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में बारिश और सूखा दोनों बढ़ेंगे। यहां का प्रमुख फल सेब भी संकट में घिरा होगा। हालांकि इसमें सिर्फ चार क्षेत्रों, हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि, जल, जंगल और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। इसमें वर्ष 1970 के आंकड़ों को आधार मानकर 2030 तक की स्थिति का आकलन