ग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बुरा असर हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। वर्ष 1970 की तुलना में 2030 तक हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में बारिश और सूखा दोनों बढ़ेंगे। यहां का प्रमुख फल सेब भी संकट में घिरा होगा। हालांकि इसमें सिर्फ चार क्षेत्रों, हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि, जल, जंगल और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। इसमें वर्ष 1970 के आंकड़ों को आधार मानकर 2030 तक की स्थिति का आकलन किया गया है।
गंगा-यमुना समेत बाकी मैदानी क्षेत्रों को लेकर अलग से अध्ययन हो रहा है। रिपोर्ट का निचोड़ यह है कि पूरे भारतीय महाद्वीप के तापमान में बढ़ोतरी होने के साथ ही समुद्र का जल स्तर भी औसतन 1.3 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार तटीय क्षेत्रों में तूफान कम आएंगे लेकिन, जब आएंगे तो विनाशकारी होंगे। हिमालयी क्षेत्र में ज्यादा बीमारियां भी घुसपैठ करेंगी। खासतौर पर जम्मू-कश्मीर के नए क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप बढ़ने का अंदेशा है। इन चार क्षेत्रों में से सबसे ज्यादा तापमान 2.2 डिग्री सेल्सियस तक हिमालयी क्षेत्र में बढ़ने का आकलन है। पूर्वोत्तर में 1.8 से 2.1 डिग्री, पश्चिमी घाट में 1.7 से 1.8 डिग्री तथा तटीय क्षेत्र में 1.7 से 1.8 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान बढ़ेगा।
कृषि को लेकर कहा गया है कि तापमान बढ़ने से सिंचाई वाली फसल मसलन, धान की पैदावर बढ़ेगी लेकिन बारिश पर निर्भर फसल मक्का आदि की पैदावार घटेगी। चारा संकट बढ़ेगा, नतीजतन दूध की किल्लत होगी। भारत इसी तरह नवंबर 2011 में कार्बन पर और मई 2012 में 16 कृषि क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के असर पर रिपोर्ट जारी करेगा। भारत में जलवायु परिवर्तन के असर पर यह पहली रिपोर्ट है जो देश में ही तैयार हुई है।
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