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/topics/large-dams-barrages-reservoirs-and-canals
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200 किमी से 300 किमी तक की चौड़ाई वाली महान हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं, तिब्बती पठार के ठीक दक्षिण में पूर्व-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएं बेसिन को दो अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों (अ) पर्वतीय जलवायु एवं (व) उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु में विभाजित करती हैं। उच्च तिब्बती पठार के अंतर्गत बेसिन का उत्तरी भाग, जो शीत और शुष्क है, पर्वतीय जलवायु के रूप म
विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होने के साथ-साथ भारतवर्ष विश्व में तेजी से बढ़ती हुई तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। लगातार होने वाले विकास एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव है और जल संसाधन भी इससे अछूते नहीं हैं क्योंकि हमारे देश में आनुपातिक रूप में जल की उपलब्धता अत्यंत बेमेल है। इस कारण हमें भारत में जल संसाधन की विभिन्न परियोजनाओं की महती आव
केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच मतभेद को सुलझाकर 22 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्चुअल मौजूदगी में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस परियोजना के लिए केंन्द्र सरकार एक खास केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट अथॉरिटी बनाएगी। यह परियोजना 8 वर्षों में पूरी होगी और इसकी 9
भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण की क्षमता में 36% की कमी आई है। इनमें से छह जलाशयों में जल भंडारण का कोई आंकड़ा नहीं मिला है, जबकि 86 जलाशयों में भंडारण क्षमता 40% या उससे कम है। सेंट्रल वाटर कमीशन (CWC) के अनुसार, इन जलाशयों में से अधिकांश दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, और गुजरात में स्थित हैं। केंद्रीय जल आयोग के नवीनतम आंकड़े भारत में बढ़ते इसी जल संकट की गंभीरता को ही दर्शाते हैं। ये आंक
पिछले कुछ दिनों में दो समाचारों ने मुझे अपने वश में कर लिया है। पहला समाचार फिल्म PS-1 का एक प्रचार वीडियो है, जिसमें मुख्य अभिनेता, चियान विक्रम, लगभग एक दिव्य राजा के शानदार कामों पर प्रकाश डालते हैं। दूसरा समाचार तमिलनाडु के उदयलुर में एक आयताकार शिव लिंगम द्वारा चिह्नित एक गैर-वर्णित समाधि के बारे में है। जल शक्ति मंत्री होने के नाते, मैं इस राजा का पानी के साथ संबंध से इस तरह प्रभावित हुआ
बांधों से सिंचाई, पनबिजली, घरेलू और औद्योगिक जल आपूर्ति, जल भंडारण और बाढ़ प्रबंधन जैसे लाभ प्रदान करने का दावा तो किया जाता है लेकिन विश्व बांध आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांशतः ये लाभ वादों से कम होते हैं। बांध की उम्र बढ़ने के साथ, इसके जलाशय में गाद भर जाने के कारण ये लाभ और भी कम हो जाते हैं। इसके अलावा, ये लाभ भारी लागत और व्यापक प्रतिकूल प्रभावों के साथ आते हैं। इसलिए जब भी किसी बांध क
जल शक्ति मंत्रालय की संसदीय समिति ने मार्च 2023 की 20वीं रिपोर्ट में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग से भारत में बांधों और सम्बंधित परियोजनाओं के व्यावहारिक जीवनकाल और प्रदर्शन का आकलन करने की व्यवस्था को लेकर सवाल किया था। वास्तव में इस सवाल का बांधों को हटाने के विचार पर सीधा असर पड़ता। लेकिन विभाग ने जवाब दिया था कि “बांधों के व्यावहारिक जीवनकाल और प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कोई
पनबिजली, ऊर्जा का नया व प्रदूषण रहित स्रोत है। इसे बड़े पैमाने पर विकसित किया जा सकता है। इसके लिए जांची परखी टेक्नॉलॉजी उपलब्ध है। जलाशय आधारित पनबिजली परियोजनाएं प्रायः बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं का हिस्सा होती हैं। इनमें बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, जल प्रदाय आदि घटक भी होते हैं। अलबत्ता ऐसे उदाहरण भी हैं जहां पनबिजली को ही एकमात्र या सबसे प्रमुख लाभ माना गया है। प्रवाहित नदी में पनबिजली उत्पा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरदार सरोवर बांध के निर्माण को हरी झण्डी दे दी, जो पिछले छह वर्षों से रुका पड़ा था। इस संदर्भ में कुछ तथ्य गौरतलब हैं। पिछले वर्ष भारत के कम्प्ट्रोलर व ऑडिटर जनरल (सी.ए.जी.) ने अपनी रिपोर्ट में उसी बात की पुष्टि की थी जिसे कई समितियां कहती आई हैं इन्दिरा सागर व सरदार सरोवर परियोजना के प्रभावित लोगों के पुनर्वास की स्थिति अत्यन्त घटिया है। मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानि
1999 की शुरुआत में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 88 मीटर करने के बाद नर्मदा घाटी में लगातार दूसरे वर्ष सूखा पड़ा है। लेकिन बावजूद इसके अपने पूर्वजों की जमीन को अपने कब्जे में रखने के लिए नर्मदा घाटी में आदिवासियों का संघर्ष जारी है। लेकिन बांध विरोधी अभियान को उसकी असली सफलता तो बिना शोरगुल के मिली जब लोगों ने अपने जीवन पर केवल अपना नियंत्रण बनाए रखने हेतु नए कदम उठाए।