बड़े बांध, बैराज, जलाशय और नहरें

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October 5, 2023 मामला केवल बड़े बांध का नहीं, बल्कि बहुत सारी छोटी परियोजनाओं का भी है, क्योंकि वे अगर तीव्र ढाल वाली नदी और नालों में बनने लगेंगी तो स्थानीय पर्यावरण का हश्र सामने होगा। वर्ष 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ और 2021 में धौली गंगा की त्रासदियों समेत पर्यावरणीय क्षति की अन्य बड़ी घटनाओं को सिर्फ बर्बादी के विचलित कर देने वाले आंकड़ों और दृश्यों के रूप में नहीं, बल्कि एक स्थायी सबक की तरह भी याद रखा जाना चाहिए।

पुराने पड़ते बांधों के खतरे
January 1, 2023 Results show the impacts of agricultural productivity boosts in India can be highly heterogeneous
Buckingham canal near Kasturba Nagar, Adyar (Image: India Water Portal)
December 4, 2022 What is the status of inland fisheries in India? Read these situational analysis reports to know about inland fisheries, the life of the fisherfolk, governance and tenure in inland fisheries and threats to the sustainability of inland fisheries.
Fishing in an irrigation canal in Kerala (Image Source: Martin Pilkinton via Wikimedia Commons)
November 23, 2022 Inspite of the realisation that minimum flows are essential for rivers to maintain their health and biodiversity, water released from various dams in India continues to disregard minimum environmental flow requirements.
Cauvery river at Hogenakal, Karnataka. (Source: IWP Flickr Photos via Claire Arni and Oriole Henri)
March 25, 2022 Dammed and bound, will the beautiful river Teesta survive India's insatiable demand for electricity?
Heaven on earth: A view of the Teesta from the coronation bridge (Image Source: Paramanu Sarkar via Wikimedia Commons)
November 21, 2021 Upstream hydrological modifications altered the basin hydrology, says study
Kathiya Gaon, Tehri, Uttaranchal (Image: India Water Portal)
बाँध हिमालय की पुष्ठभूमि में
1947 में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जल की प्राप्यता 6008 घनमीटर थी वहीं पचास वर्षों में यह घट कर 2266 घनमीटर रह गई। इसलिये यह भावना तीव्र होती गई कि वर्षा के जल को सागरों और प्राकृतिक झीलों में समाने से पहले ही धरती की तनिक ऊँचाइयों में रोक लिया जाये  जिसे आवश्यकतानुसार वर्ष के सूखे दिनों में उपयोग किया जा सके। इस विचार से प्रेरित होकर पूरे विश्व में विशाल बाँधों की रचना हुई। Posted on 05 Jul, 2023 01:40 PM

सम्पूर्ण भारत को वर्षा के रूप में जितना जल मिलता है उसका लगभग 5 प्रतिशत पड़ोसी देशों से आने वाली नदियाँ अपने साथ लाती है। यदि । हम केवल भारत की भूमि पर बरसने वाले औसत वार्षिक जल को देखें, तो यह लगभग 1215 मिलीमीटर है। यह वर्षा जल भी विश्व की ओसत वर्षा से कहीं अधिक है। समस्या यह है कि स्थान विशेष ओर मात्रा के परिपेक्ष में इसका बंटवारा अत्यंत विषम है। उत्तर-पूर्वी भारत में 2500 मिलीमीटर वार्षिक वर

 टेहरी बांध भारत का सबसे ऊंचा बांध है,फोटो क्रेडिट- ​​​wikipedia
जल आधारित आंदोलन- नर्मदा
सरदार सरोवर परियोजना लंबे समय तक विवादों का विषय रही जिसने पूरे देश को झकझोर दिया और हिला कर रख दिया। नर्मदा आंदोलन कुछ समस्याओं को स्पष्ट करने और समझाने में मदद करेगा जो हमारे देश में पानी के मुद्दे की मुख्य विशेषता है। आइए हम इन मुद्दों पर गौर करें क्योंकि ये देश में बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं की ओर सही इशारा करते हैं। Posted on 23 Jun, 2023 12:17 PM

प्रस्तावना

स्वतंत्रता के दौरान, भारत में बांधों की संख्या नगण्य थी, लेकिन आजादी के बाद से यह अत्यधिक बढ़ गई। बाढ़ नियंत्रण, जल आपूर्ति, विद्युत उत्पादन और सिंचाई करने के लिए बड़े पैमाने पर बांधों को बनाया गया। स्वतंत्रता के दौरान, भारत में तकरीबन 300 बड़े बांध थे। इसलिए बांधों को मल्टीपल रिवर वैली प्रोजेक्ट्स के रूप में जाना जाता था। वर्ष 2000 तक बांधों की संख्य

नर्मदा बचाओ आंदोलन के 37 वर्ष पूरे होने पर बड़वानी में निकली सत्याग्रह यात्रा, Pc-Samta Marg
बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत
बांग्लादेशियों में बाढ़ तथा शाकाहारी भोजन का भी भारत जैसा सम्मान नहीं है। शायद इसलिए प्रकृति के मूल स्वरूप को मानवता का पोषक मानने में भारतीय दृष्टि से भी भिन्‍नता है। फिर भी आहार-विहार, आचार-विचार, रहन-सहन इस सब में बहुत दूरी नहीं है। इसलिए बांग्लादेशी भी यूरोप में जाकर अपने को भारतीय बोलते हैं। Posted on 30 Jan, 2023 01:20 PM

बांग्लादेश में मेरा कई बार जाना हुआ है। जब भी गया तब नैतिकता, न्याय की विश्वशांति जलयात्रा के लिए ही गया। यह देश भारतखंड (हिन्दुकुश) का एक हिस्सा था। अभी भी है। इस देश और भारत में बहुत जुड़ाव सा दिखता है। इसमें उत्तर पूर्वी राज्यों तथा बंगाल से आना-जाना आज भी है, जबकि कांटेदार बाड़ लग गई है। लोगों का आना-जाना जब यह पूरा भारतवर्ष ही था, तब जैसा तो नहीं है; लेकिन आने-जाने वाले आज भी वैसे ही आ-जा

बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत (Photo-Norad)
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