हिमांशु ठक्कर

हिमांशु ठक्कर
गंगा की जिद में गए ‘भीष्म’
Posted on 13 Oct, 2018 01:50 PM

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (फोटो साभार - लाइव हिन्दुस्तान)आमरण अनशनरत प्रो.

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
मानव निर्मित बाढ़ की विनाशलीला
Posted on 02 Sep, 2016 03:21 PM

विगत 21 अगस्त 2016 की सुबह गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ते हुए, पटना में 50.43 मीटर पर पहुँच गया। यानी वह पहले के उच्चतम बाढ़ स्तर 50.27 मीटर से 16 सेंटीमीटर ऊपर बह रही थी।
नदी-जोड़ हठधर्मिता : केंद्रीय मंत्री की नियामकों, मीडिया और नागरिकों को धमकी
Posted on 11 Aug, 2016 03:44 PM

नदी-जोड़ परियोजना को लेकर केंद्रीय मंत्री 'उमा भारती' की हठधर्मिता की कहानी भी बहुत ही अजीब है। 'उमा भारती' किसी भी कीमत पर 'केन-बेतवा नदी-जोड़ परियोजना' को पूरा करना चाहती हैं।

7 जून 2016 को मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार केंद्रीय जल-संसाधन मंत्री 'उमा भारती' ने 'केन-बेतवा नदी-जोड़ परियोजना' में और देर होने पर भूख हड़ताल करने की धमकी दी है। ‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ अखबार के अनुसार उन्होंने पर्यावरणविदों द्वारा परियोजना का विरोध किये जाने को 'राष्ट्रीय अपराध' करार दिया है। यह धमकी उन सभी लोगों के लिये है जो जल-संसाधन मंत्रालय की 'केन-बेतवा नदी-जोड़ परियोजना' पर सवाल उठा रहे हैं।
सरकारी व्यवस्था में खामी
Posted on 03 Jul, 2016 04:19 PM

सूखा कभी भूकम्प या सुनामी की तरह अचानक नहीं आता। उसकी एक लम्बी प्रक्रिया है। महाराष्ट्र म

नदी जोड़ योजना जरूरी नहीं
Posted on 06 Jan, 2015 04:53 PM
जलाधिक्य वाली नदी घाटियों से जल का स्थानांतरण जल की कमी वाली नदी घा
उत्तराखंड त्रासदी : मानव द्वारा उत्पन्न आपदा
Posted on 30 Jul, 2014 01:02 PM
17 जून की रात बाढ़ के साथ ही नदी में डाला गया सारा मलबा श्रीनगर शहर
उत्तराखंड त्रासदी : मानव द्वारा उत्पन्न आपदा
Posted on 27 Oct, 2013 01:51 PM
उत्तराखंड में पिछले एक दशक से सड़कों का निर्माण और विस्तार किया जा रहा है। इसके लिए भूवैज्ञानिक फॉल्ट लाइन, भूस्खलन के जोखिम को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और विस्फोट के इस्तेमाल, वनों की कटाई, भूस्खलन के जोखिम पर कोई ध्यान दिए बगैर, उपयुक्त जलनिकासी संरचना के अभाव सहित विभिन्न सुरक्षा नियमों की अनदेखी की जा रही है। पिछले दशक में पर्यटन के तीव्र विस्तार में आपदा प्रबंधन के आधारभूत नियमों पर ध्यान नहीं दिया गया। 38,000 वर्ग कि.मी. से भी अधिक के दायरे में फैले हिमालयी क्षेत्र की पर्वतधाराओं, नदियों, वनों, हिमनदों और लोगों को प्रभावित करने वाली प्राकृतिक आपदा का जटिल होना लाज़िमी है। प्राकृतिक आपदाएं और इसके प्रभाव अक्सर एक साथ कई चीजों के घटने का परिणाम होती हैं। हाल में उत्तराखंड में आई आपदा उन मानव जनित कारणों को उजागर करती है जिसकी वजह से इस घटना का प्रभाव कई गुना बढ़ गया। उत्तराखंड कच्चे और नए पहाड़ों वाला राज्य है। यह क्षेत्र भारी वर्षा, बादल फटने, भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़ और भूस्खलन से अक्सर प्रभावित होता रहता है। यहां के भूतत्व में काफी समस्याएं हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से बादल फटने और आकस्मिक बाढ़, हिमनद के फटने से बाढ़ (हाल में हुई आपदा में एक से अधिक जगहों पर इनकी आशंका लगा रही है जिसमें केदारनाथ, हेमकुंड साहिब और पिथौरागढ़ के ऊपर बहने वाली धाराएं शामिल हैं) सहित काफी तेज वर्षा के प्रभाव में वृद्धि हो रही है और इन सबके साथ भूस्खलन की घटनाएँ हो रही हैं।
तबाही के बांध
Posted on 29 Sep, 2010 09:26 AM
ऐसा लगता है कि देश के प्रसिद्ध बांध भाखड़ा का, जिसे गोविंद सागर भी कहते हैं, संचालन तदर्थ और कामचलाऊ ढंग से किया जा रहा है, जो असंख्य लोगों और उनकी जीविका के लिए तो खतरनाक है ही, इस बांध से जिन क्षेत्रों में जलापूर्ति हो रही है, वहां भी भारी संकट उत्पन्न हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण इसी महीने तब दिखा, जब बांध की दीवार पर झुकाव देखा गया। यह 1988 की विनाशकारी घटना का दोहराव लगता है, जब भीषण बाढ़ के
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वर्षा आधारित क्षेत्रों को भगवान भरोसे छोड़ते हुए, बारिश के उपहार की उपेक्षा
Posted on 14 Jun, 2010 10:17 PM

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 1410 लाख हेक्टेअर शुद्ध कृषि योग्य क्षेत्र में से मोटे तौर पर 810 लाख हेक्टेअर क्षेत्र वर्षा आधारित है। इसके अलावा 600 लाख हेक्टेअर शुद्ध कृषि योग्य सिंचित इलाकों में से करीब 370-380 लाख हेक्टेअर भूजल द्वारा सिंचित है। अन्य करीब 50-90 लाख हेक्टेअर इलाका लघु सतही जल योजनाओं से सिंचित होता है, जो कि अनिवार्य तौर पर जल संरक्षण योजनाएं हैं। सिंचित इलाकों की ये श्रेणियां मूलतः किसी तरीके से वर्षा पर ही निर्भर हैं। भूजल रिचार्ज का प्राथमिक स्रोत वर्षाजल है और लघु सतही जल योजनाएं भी तभी भरती हैं जब बारिश होती है। इसका मतलब यह हुआ कि 1410 लाख शुद्ध कृषि योग्य इलाकों में से 1240-1260 लाख हेक्टेअर को अनिवार्य रूप से वर्षा आधारित क्षेत्र कहा जा सकता है, जो कि कुल शुद्ध कृषि योग्य इलाकों का 89 फीसदी होता है।

 

अब यदि हम केन्द्र एवं राज्य सरकार की जल

शेखर गुप्ता जी ऐसे तथ्य क्यों भूल जाते हैं?
Posted on 28 Aug, 2009 02:47 PM
(शेखर गुप्ता का मूल लेख देखें)

भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र में शेखर गुप्ता एक बड़ा नाम है। अच्छी पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों में से एक होता है कि तथ्यों से छेड़खानी ना हो। इसलिए शेखर से एक तो उम्मीद थी कि जब वे अपने बहस में बड़े बांधों और नदी जोड़ योजना के पक्ष में तर्क दे रहे हैं तो वे तथ्यों के प्रति दृढ़ रहें

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