दुनिया में बांधों को हटाना क्यों जरुरी है

दुनिया में बांधों को हटाना क्यों जरुरी है
दुनिया में बांधों को हटाना क्यों जरुरी है

बांधों से सिंचाई, पनबिजली, घरेलू और औद्योगिक जल आपूर्ति, जल भंडारण और बाढ़ प्रबंधन जैसे लाभ प्रदान करने का दावा तो किया जाता है लेकिन विश्व बांध आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांशतः ये लाभ वादों से कम होते हैं। बांध की उम्र बढ़ने के साथ, इसके जलाशय में गाद भर जाने के कारण ये लाभ और भी कम हो जाते हैं। इसके अलावा, ये लाभ भारी लागत और व्यापक प्रतिकूल प्रभावों के साथ आते हैं। इसलिए जब भी किसी बांध को हटाकर नदी का प्रवाह बहाल किया जाता है, तो यह बांध निर्माण से उत्पन्न कुछ प्रतिकूल प्रभावों को उलट देता है। पुनः प्रवाहमान नदी के कुछ लाभों में मछलियों के आवागमन तथा नदी पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के साथ बांध के ऊपर व नीचे नदियों में पानी, गाद, रेत और पोषक तत्वों के प्रवाह की बहाली भी शामिल है। ऐसी नदियों के किनारे के समुदायों के लिए जल आपूर्ति और मछुआरों की आजीविका की भी बहाली होती है। इसका असर सांस्कृतिक कार्यों के लिए उपलब्ध पानी पर भी होता है।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करनाः उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बांधों के जलाशय मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड के जाने-माने स्रोत हैं। (कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में मीथेन लगभग 24 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है)। ये दोनों प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें हैं। बांध को हटाकर हम ऐसे उत्सर्जन को भी रोक सकते हैं। इसके अलावा, बांधों को हटाने के बाद जलमग्न क्षेत्र के कुछ हिस्सों के पुनः वनीकरण और नदी को बाढ़ क्षेत्र और आर्द्रभूमि से जोड़कर नए कार्बन सोख्ता भी बनाए जा सकते हैं। इस प्रकार बांध हटाना जलवायु परिवर्तन को थामने और अनुकूलन रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।बांध निर्माण के 100 वर्षों से भी अधिक अनुभव से पता चला है कि बांधों का जीवनकाल सीमित होता है। खराब डिज़ाइन जीवनकाल को कम कर सकती है, उनमें गाद जमा हो सकती है और उनका प्रदर्शन अपेक्षा से कम हो सकता है। इसके अलावा यह आसपास की आबादी के लिए जोखिम तो पैदा करता ही है, इससे नदियां और मछली पालन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

बांध हटाने का मतलब नदी के निचले हिस्से में आपदाओं और बाढ़ के जोखिम में कमी और जलमग्न भूमि का पुनः उपलब्ध होना भी है। मुक्त प्रवाह वाली नदियां जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक लचीली होती हैं और जलवायु परिवर्तन से अनुकूलन में मदद करती हैं। बहाल की गई नदियों से पानी की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।लिहाज़ा, समाज और अर्थ व्यवस्था के लिए, बांध के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब इसकी लागत, इससे प्राप्त होने वाले लाभ से कहीं अधिक हो जाती है; तब बांध को हटाना बेहतर होता है। इस बात का पता तभी चल सकता है जब समय-समय पर किसी बांध की लागत और लाभ के स्वतंत्र मूल्यांकन की प्रक्रिया की जाए। एक असुरक्षित बांध को बंद करना समाज और अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होता है। फिलहाल भारत के पास बांधों को हटाने से सम्बंधित मुद्दों को लेकर कोई नीति या कार्यक्रम नहीं है।

किसी बांध को हटाने का निर्णय कई कारणों से लिया जा सकता है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक बांधों को हटाया जा रहा है और इसके लाभ स्पष्ट हो रहे हैं, उम्मीद है कि विश्व स्तर पर बांधों को हटाने की गति में तेज़ी आएगी। कुछ कारणों की बात यहां की जा रही है। असुरक्षित बांधः जब बांध आवश्यक स्पिलवे (अतिरिक्त पानी के निकलने का रास्ता) क्षमता से कम होने, गाद जमा होने, पुराने होने, क्षतिग्रस्त होने या नदी के बहाव को वहन न कर पाने के कारण असुरक्षित हो जाते हैं,तब बाढ़ या कोई अन्य आपदा आने से पहले इन्हें हटा देना समझदारी होगी। जलवायु परिवर्तन की स्थिति में वर्षा की तीव्रता, हिमनद- जनित झील के फटने, भूस्खलन या हिमस्खलन जैसी घटनाओं में वृद्धि बांधों को भी असुरक्षित बनाते हैं।

आर्थिक रूप से अव्यावहारिक बांध: घटे हुए लाभ, बढ़ी हुई लागत या इन दोनों के कारण बांध का रखरखाव करना बहुत महंगा हो सकता है। लागत में वृद्धि मुख्य रूप से पर्यावरणीय प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए नियामक शर्तों में वृद्धि, बांध से ऊपर व नीचे मछलियों के प्रवास, स्पिलवे क्षमता बढ़ाने के लिए नए निर्माण की आवश्यकता वगैरह के कारण हो सकती है। ऐसे मामलों में बांध को हटाने की लागत के बावजूद उसे हटा देना ही सस्ता होगा।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करनाः उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बांधों के जलाशय मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड के जाने-माने स्रोत हैं। (कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में मीथेन लगभग 24 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है)। ये दोनों प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें हैं।

बांध को हटाकर हम ऐसे उत्सर्जन को भी रोक सकते हैं। इसके अलावा, बांधों को हटाने के बाद जलमग्न क्षेत्र के कुछ हिस्सों के पुनःवनीकरण और नदी को बाढ़ क्षेत्र और आर्द्रभूमि से जोड़कर नए कार्बन सोख्ता भी बनाए जा सकते हैं। इस प्रकार बांध हटाना जलवायु परिवर्तन को थामने और अनुकूलन रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। बांध निर्माण के 100 वर्षों से भी अधिक अनुभव से पता चला है कि बांधों का जीवनकाल सीमित होता है। खराब डिज़ाइन जीवनकाल को कम कर सकती है, उनमें गाद जमा हो सकती है और उनका प्रदर्शन अपेक्षा से कम हो सकता है। इसके अलावा यह आसपास की आबादी के लिए जोखिम तो पैदा करता ही है, इससे नदियां और मछली पालन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

यूएसए बांध हटाने की परियोजनाओं में सबसे आगे है। वहां इस प्रक्रिया की शुरुआत कई संघीय कानूनों के साथ हुई। उदाहरण के लिए, 1968 के वाइल्ड एंड सीनिक रिवर एक्ट और 1969 के नेशनल एनवायरनमेंटल पॉलिसी एक्ट ने बांध निर्माताओं को नदियों के पारिस्थितिक लाभों को ध्यान में रखने के लिए मजबूर किया। 1990 के दशक की शुरुआत से लेकर 3 दशकों तक बांधों को फेडरल एनर्जी रेगुलेटरी कमीशन (एफईआरसी) या उसके राज्य समकक्ष द्वारा लायसेंस दिया जाता है। आम तौर पर इसकी अवधि 30 से 50 वर्षों की होती है। इस अवधि के अंत में बांध का पुनर्मूल्यांकन करने के बाद उन्हें सेवानिवृत्त किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त सुरक्षा चिंताओं (भूकंपीय क्षति आदि) की स्थिति में बांधों का लायसेंस रद्द करने की आपातकालीन प्रक्रियाएं भी हैं। पुनः लायसेंसिंग प्रक्रिया में पर्यावरणीय आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से नई परिचालन शर्तों को अनिवार्य किया जाता है। इनमें न्यूनतम प्रवाह में वृद्धि, अतिरिक्त या बेहतर मछली सीढ़ी, आवधिक उच्च प्रवाह और तटवर्ती भूमि के लिए सुरक्षा उपाय शामिल हैं।

अमेरिकन रिवर्स के एक दस्तावेज़ के अनुसार वर्ष 1999 में अमेरिका स्थित एडवर्ड्स बांध को हटाना एक निर्णायक मोड़ रहा जब पहली बार एफईआरसी ने किसी बांध को हटाने का आदेश दिया। इस बांध की लागत इसके लाभों से कहीं अधिक पाई गई थी। एडवर्ड्स बांध के हटने से एक समय की कल्पनातीत अवधारणा जीर्ण-शीर्ण ढांचे और नदियों को बहाल करने की समस्या से निपटने का एक कारगर उपाय साबित हुआ। इसके नतीजे में अब बांध सुरक्षा कार्यालय, मत्स्य पालन प्रबंधक, बांध मालिक और विभिन्न समुदाय बांधों के लाभों और प्रभावों पर दोबारा विचार कर रहे हैं। कई स्थानों पर बांधों को हटाने को सबसे अच्छा विकल्प माना जा रहा है जिससे पर्यावरण, समुदाय और अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण लाभ मिल सकते हैं।

अमेरिकन रिवर्स के अनुसार दो प्रांत - पेनसिल्वेनिया (कुल 364 बांध हटाए गए) और विस्कॉन्सिन (कुल 152 बांध हटाए गए) बांधों को हटाने में अग्रणी रहे हैं। उनकी इस सफलता का मुख्य कारण राज्य मत्स्य पालन और बांध सुरक्षा कार्यक्रमों के बीच नज़दीकी सहयोग है। इसके अलावा, वरमॉन्ट प्रांत ने 13 प्रतिशत राज्य नियंत्रित बांध हटाए हैं जो हटाए गए कुल राज्य नियंत्रित बांधों के अनुपात के लिहाज़ से सर्वाधिक है।

यूएसए में बांध हटाने की वकालत और इस कार्य का नेतृत्व करने वाले समूह अमेरिकन रिवर्स ने 2050 तक 30,000 बांधों को हटाने का लक्ष्य रखा है। गौरतलब है कि अमेरिकी संसद ने सबसे पहले 1972 के राष्ट्रीय बांध निरीक्षण अधिनियम के तहत बांधों की सूची बनाने के लिए आर्मी कोर ऑफ इंजीनियर्स को अधिकृत किया था। भारत में, बड़े बांधों की विश्वसनीय सूची बनाने के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है।

यूएसए के राष्ट्रपति बाइडेन ने 2022 में इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट एंड जॉब्स एक्ट पर हस्ताक्षर किए जिसमें बांधों को हटाने तथा उनके पुनर्निर्माण और पुनर्वास के लिए 2.4 अरब डॉलर की राशि आवंटित की गई है। यह ध्यान देने वाली बात है कि बांध हटाने के लिए निवेश को अधोसंरचना सम्बंधी विधेयक में शामिल किया गया था। इन घोषणाओं से यह स्पष्ट होता है कि मुक्त बहने वाली नदियां अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता के लिए   महत्वपूर्ण हैं।

पर्यावरण समूहों के गठबंधन डैम रिमूवल युरोप के अनुसार, युरोप में भी बांध हटाने का काम ज़ोर पकड़ रहा है -

2022 में लगभग 325 बांध, पुलिया और अन्य नदी-अवरोधक संरचनाएं हटाई गई हैं। जुलाई 2023 में, युरोपीय संसद ने एक प्रकृति बहाली कानून के मसौदे को मंजूरी
दी है जिसके तहत 2030 तक कम से कम 20,000 किलोमीटर नदियों को मुक्त प्रवाहित बनाने का लक्ष्य है। वर्ल्ड फिश माइग्रेशन फाउंडेशन के निदेशक हरमन वानिंगन के अनुसार यदि ऐसा कानून बन जाता है तो सभी युरोपीय देशों को इस बारे में विचार करना होगा।

इन सभी प्रयासों से स्पष्ट होता है कि बांधों को हटाने में भी भारी लागत आ सकती है। ज़ाहिर है, जब भी कोई बांध प्रस्तावित किया जाता है तो इसको हटाने की लागत को भी बांध की लागत में शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा कभी होता नहीं है। वैकल्पिक रूप से, हमें एक लायसेंसिंग नियमन प्रणाली की आवश्यकता है जो पुनः लायसेंसिंग के दौरान परियोजना निर्माता को इस लागत को वहन करने को बाध्य करे। दुर्भाग्य से भारत में इनमें से कोई भी कानून नहीं है। भारत में बांध परियोजनाओं को पर्यावरण सम्बंधी मंजूरी हमेशा के लिए दे दी जाती है जिसकी समय-समय पर कोई समीक्षा नहीं होती। न ही इमसें पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों का मूल्यांकन या इसकी मंजूरी में लागत, लाभ, प्रभाव या बांधों को हटाने की प्रक्रिया का कोई उल्लेख होता है। यहां बांधों को एक स्थायी निर्माण के रूप में देखने की धारणा है।
क्लैमथ बांध के जीर्णोद्धार समूह ने 90 स्थानीय प्रजातियों का एक बीज बैंक भी बनाया है जिन्हें बोया जाएगा। टीम लीडर के पास बांधों को हटाने के बाद पारिस्थितिक बहाली का काफी अनुभव है। बांध हटाने के बाद योजनाबद्ध तरीके से मछुआरों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से जलग्रहण क्षेत्र और नदी के पारिस्थितिक तंत्र बहाली की जाती है।

साइंस में प्रकाशित उपरोक्त लेख के अनुसार क्लैमथ बांध के हटने और आगे चलकर दुनिया भर के हज़ारों बांधों को हटाने के लक्ष्य के साथ भविष्य में अधिक तथा और बड़े प्रयासों की संभावना है। इस तरह की पारिस्थितिक बहाली के लिए सबसे पहले एक योजना की आवश्यकता होती है जो बांध हटाने की प्रक्रिया शुरू होने से बहुत पहले शुरू हो जाती है। ऐसी योजना बनाने और आगे चलकर क्रियान्वित करने में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है। इसमें न केवल चयनित देसी पौधों के साथ जलाशय-पूर्व क्षेत्र को आबाद किया जाता है बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि इसमें घुसपैठी पौधे न हों और पहले से उपस्थित पौधों को भी न हटाया जाए।

 स्रोत :- पर्यवारण डाइजेस्ट,वर्ष 38. अंक 01 जनवरी 2024

ईमेल - paryavaran.digest@gmail.com,kspurohitrtm@gmail.com

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Post By: Shivendra
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