प्राचीन प्रबंधन की प्रणाली पर अब वर्तमान में मोहर लगी

बांध
बांध

पिछले कुछ दिनों में दो समाचारों ने मुझे अपने वश में कर लिया है। पहला समाचार फिल्म PS-1 का एक प्रचार वीडियो है, जिसमें मुख्य अभिनेता, चियान विक्रम, लगभग एक दिव्य राजा के शानदार कामों पर प्रकाश डालते हैं। दूसरा समाचार तमिलनाडु के उदयलुर में एक आयताकार शिव लिंगम द्वारा चिह्नित एक गैर-वर्णित समाधि के बारे में है। जल शक्ति मंत्री होने के नाते, मैं इस राजा का पानी के साथ संबंध से इस तरह प्रभावित हुआ कि यह फिल्म जिस उपन्यास पर आधारित है उसका नाम पोन्निविन सेलवन (पीएस), या "कावेरी का पुत्र" है। बृहदीश्वर मंदिर (तंजावुर जिला, तमिलनाडु) में इस राजा की प्रतिमा अत्यधिक मन मोहक ढंग से दमकती है और उनकी साधारण सी समाधि में उनकी विनम्रता कितनी प्रिय लगती है।

जिस राजा के बारे में हम बात कर रहे हैं उनका तेज सूरज की किरण की तरह उज्ज्वल और समुद्र के रूप में प्रतापी था जिसके चलते उन्हें राजा-धि-राज, 'राजकेसरी' 'अरुल्मोली राजा राजा चोल-प्रथम की उपाधि दी गई थी। उनमें नए सिरे से रुचि हमारे पूर्वजों की भारतीय क्रांति का एक और उदाहरण भी है. जिन्होंने हमारे धर्म शास्त्रों द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार शासन किया और जो स्वयं को ईश्वर और उनके शिष्यों का सेवक ही मानते थे।

राजा चोल-प्रथम पानी पर ध्यान केंद्रित करने वाला पहला चोल राजा नहीं था। प्रसिद्ध करिकाला चोल ने कल्लनई (तमिलनाडु) के महान बांध (एनीकट) का निर्माण कराया, जो सबसे पुरानी जल नियामक संरचनाओं में से एक है और एक विरासत वाली सिंचाई संरचना है जो आज भी उपयोग में है। अपने कई चैनलों के साथ महान/भव्य एनीकट अभी भी यह सुनिश्चित करता है कि कावेरी का पानी खेतों तक पहुंचे। लेकिन राजा राज चोल ने अपने पूर्वजों के अदम्य साहस से हटकर जो कार्य किया वह एक कौशलपूर्ण शासन मॉडल की स्थापना था।

2020 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के शिलान्यास समारोह के दौरान "तमिलनाडु के उत्तरमेरूर गाँव में ऐतिहासिक साक्ष्य" पर प्रकाश डाला और कैसे "चोल साम्राज्य के दौरान प्रचलित पंचायत प्रणाली पर पत्थर के शिलालेख" ने बताया कि कैसे हर गाँव को कुडुम्बु के रूप में, जिसे हम आज वार्ड कहते हैं, वर्गीकृत किया गया था। इन कुडुम्बों में से एक प्रतिनिधि को महासभा में उसी तरह भेजा जाता था, जैसा कि आज होता है।"

यदि कोई उम्मीदवार प्रतिनिधि अपनी संपत्ति का विवरण घोषित करने में विफल रहता था तो लोगों को उसे लेने का अधिकार था। चोल राजाओं ने ग्राम परिषदों को अपने गांवों के बारे में निर्णय लेने की स्वायत्तता प्रदान की, जबकि राज्य के पास लेखा परीक्षा का अधिकार था। अपने अधीन भूमि को एक करने के लिए महान राजा की सबसे उल्लेखनीय रणनीतियों में से एक रणनीति, जमींदारों को आश्रित सरकारी सेवकों में परिवर्तित करना था जिससे साम्राज्य को स्थिरता प्राप्त हुई और राजा तथा उसके केंद्रीय मंत्रिमंडल वह आधार बना जिसके इर्द-गिर्द राज्य संचालित होता था।

उच्चतम स्तर का जल प्रबंधन

जैसा कि वीनू और वशिष्ठ के धर्म शास्त्रों के साथ-साथ चाणक्य के अर्थशास्र द्वारा निर्देशित किया गया था, जल प्रबंधन के निर्देशों का उनके द्वारा बारीकी से पालन किया जाता था। जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन पर राजा का ध्यान इस तरह था कि उनके राज्य में हजारों प्राचीन तालाब थे जो समुदायों की सेवा करते थे, पानी की योजना बनाने और प्रबंधन के लिए सुव्यवस्थित नियम थे।

ये तालाब कभी भी बड़े नहीं होते थे क्योंकि इन्हें दक्कन के पठार की स्थलाकृति के अनुसार बनाया जाता था। हैरानी की बात यह है कि हर गांव में एक नीरकट्टी सिंचाई के प्रभारी होते थे, जो इन तालाबों से एक समय-सारणी (शेड्यूल) का पालन करके खेतों में पानी की आपूर्ति करते थे। ये सभी गतिविधियाँ ग्राम परिषद की निगरानी में होती थी जो संसाधनों की योजना और प्रबंधन कार्य विवेकपूर्ण तरीके से करती थीं।

परकेसरर्मन शिलालेखों में पानी की अनधिकृत निकासी के लिए दंड का उल्लेख मिलता है। संशोधन करने वाले तथ्यों में से एक तथ्य तालाब की क्षमता की तुलना में पानी के उपयोग के लिए पैरामीटर है जिसे वे बनाए रखने की कोशिश करते थे। जब बांधों की योजना बनाने और निर्माण की बात आती है तो सरकार द्वारा 2.5 गुना का यह न्यूनतम पैरामीटर अभी भी उपयोग में लाया जाता है। जब शासन की बात आई, तो राजा राजाचोल न केवल उच्चतम स्तर के सूक्ष्म प्रबंधक थे, बल्कि एक महत्वाकांक्षी योजनाकार और अपने पूर्वजों की तरह एक उत्कृष्ट कार्य निष्पादक भी थे। अपने जीवनकाल में, उन्होंने 5,000 से अधिक बांध बनवाए और एक जल मंत्रालय की स्थापना की। 

उव्याकॉडन चैनल (985-1013 ईस्वी) जैसे कुछ चैनल अभी भी कार्य कर रहे हैं। चोलों के समय में, जल और बाढ़ प्रबंधन का कार्य एक पवित्र कर्तव्य माना जाता था; एक पौराणिक कथा यह है कि भगवान शिव एक बूढ़ी औरत की प्रार्थना के बाद बाढ़ के किनारों को मजबूत करने के लिए स्वयं अवतरित हुए थे। उनके परिष्कार के तरीकों का एक और पहलू सिंचाई और जल प्रबंधन के विभिन्न कार्यों के लिए श्रम के बराबर लागत निकालने का प्रावधान था, जिसका महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत पालन किया जाता है। शिलालेखों से पता चलता है कि सरकार और प्रजा जल संरक्षण के लिए मिलकर काम करते थे, इसका जल शक्ति अभियान द्वारा पुनः अनुसरण किया गया।

अन्य उदाहरण

हमें वास्तव में जल संरक्षण में नए सिद्धांतों और प्रथाओं की तलाश करने की आवश्यकता नहीं है। हमें बस अतीत को फिर से देखना है। हमारे महान राजा समझदार रहे हैं, हममें से अधिकांश लोग यह भी समझना शुरू कर सकते हैं कि जब केम्पेगौड़ा ने अपने सपनों के शहर बेंगलुरु पर काम करना शुरू किया, तो उनकी मां के पास देने के लिए केवल दो सलाह थीं- केरौला किडू, और मनांगलियम नेदु (झीलें बनाएं, पेड़ लगाएं)। पल्लवों के पास झील प्रबंधन के लिए एक अलग निकाय था जिसे "एरी वरियम" कहा जाता था। गुजरात के जूनागढ़ के राजा रुद्रदमन ने अपनी सारी संपत्ति सुदर्शन झील के तटबंधों की मरम्मत में लगा दी, जब यह एक बादल फटने में नष्ट हो गयी थी। हम सभी जानते हैं कि शाहजहाँ ने अपनी पत्नी की याद में ताजमहल का निर्माण करवाया, लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते कि रानी की वाव (या गुजरात में पीन की बावड़ी क्या है; इसे रानी उदयमती ने बनवाया था, जिसके बारे में कुछ लोग कहते हैं कि इसे राजा भीमदेव की याद में बनवाया गया था यह प्रेम का प्रतीक भी है, जहां एक प्राचीन संरचना लाखों लोगों की प्यास बुझाती है।

एक महान राज्य का क्या अर्थ होता है? क्या शक्तिशाली और समृद्ध होना महानता के रूप में गिना जाता है? या यह कुछ और है? मेरे लिए, एक महत्वपूर्ण घटक समानुभूति है- उपरोक्त के साथ रहने वाला कोई राज्य वास्तव में महान है। चाहे पानी हो या कुछ और, समानुभूति एक महान साम्राज्य के धड़कते दिल में निवास करती है और समानुभूति एक ऐसी चीज है जिसका हमारे महान पूर्वजों ने अभ्यास किया था। हमारे पूर्वज अपने समय से आगे की एक श्रेष्ठ पीढ़ी थे, लेकिन वे अतीत की तकनीकों से मजबूती से जुड़े थे। महान राजा की विस्तृत आंखों वाले श्रोताओं के रूप में, उनका जीवन उन्हीं गुणों की याद के रूप में काम करे जो हमारी रगों में प्रवाहित होते हैं।

नोट : मूल लेख द हिंदू द्वारा 24 अक्टूबर, 2022 को प्रकाशित किया गया था।

स्रोत : जल जीवन संवाद, अंक 25, अक्टूबर 2022
 

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