Posted on 18 Mar, 2010 02:29 PM दिन को बद्दर रात निबद्दर, बह पुरवैया झब्बर झब्बर। घाघ कहैं कछु होनी होई, कुआँ के पानी धोबी धोई।
भावार्थ- यदि दिन में बादल हों और रात में आकाश साफ हो और धीर-धीरे पुरवा हवा बह रही हो तो वर्षा इतनी कम होगी कि धोबी को कपड़े धोने के लिए भी कुएं से पानी निकालना पड़ेगा।
Posted on 18 Mar, 2010 02:10 PM दूर गुड़ुसा दूर पानी। नीयर गुड़ुसा नीयर पानी।
भावार्थ- जब गंदे कीचड़ में रहने वाला गुड़ुसा (रेंवा) नामक कीड़ा कीचड़ से निकल कर दूर बोले तो वर्षा होने में देरी है। यदि वह कीड़ा कीचड़ के अंदर या ऊपर से बोले तो समझो वर्षा होने वाली है।
Posted on 18 Mar, 2010 01:04 PM तपा जेठ में जो चुइ जाय, सभी नखत हलके परि जायँ।
शब्दार्थ- चुइ-टपक जाय। हलके – मंद/धीमा।
भावार्थ- ज्येष्ठ की मृगशिरा के अंतिम दस दिनों को दसतपा कहते हैं। इस दसतपे में यदि वर्षा की एक भी बूँद गिर गई तो समझो कि वर्षा के सभी नक्षत्रों में पानी हलका बरसेगा।
Posted on 18 Mar, 2010 12:52 PM तीतर बरनी बादरी, बिधवा काजर रेख।
वह बरसै वह घर करे, कहै भड्डरी देख।
भावार्थ- भड्डरी कहते हैं कि यदि आकाश में तीतर के रंग की अर्थात् भूरी बदरी उठे और विधवा आँखों में काजल लगाये तो समझो कि बादल बिना बरसे नहीं जायेगा और स्त्री दूसरे पुरुष के साथ घर कर लेगी।
Posted on 18 Mar, 2010 12:14 PM जो रोहिनि बरसा करै, बचै जेठ नित मूर। एक बूँद कृतिका पड़ै, नासै तीनों तूर।।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि रोहिणी नक्षत्र में वर्षा हो तो जेठ मास में न होने से कोई लाभ-हानि नहीं है, लेकिन यदि कृतिका नक्षत्र में एक बूँद भी पानी बरस गया तो तीनों फसलें नष्ट हो जायेंगी।
Posted on 18 Mar, 2010 12:07 PM जो कहुं हवा अकासे जाय, परै न बूंद काल परि जाय। दक्खिने पच्छिम आधे समयो, भड्डर जोसी ऐसो मनयो।।
भावार्थ- यदि आषाढ़-सावन में हवा ऊपर (आकाश) की ओर उठे तो यह समझना चाहिए की पानी नहीं बरसेगा और अकाल पड़ जाएगा। भड्डर ज्योतिषी कहते हैं कि ऐसी स्थिति में दक्षिण-पश्चिम की दिशा में थोड़ी फसल पैदा होने की आशा है।