रोहिनि बरसे मृग तपे, कुछ दिन आद्रा जाय।
कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा तपे और आर्द्रा के भी कुछ दिन बीत जाने पर वर्षा हो तो पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते-खाते ऊब जाएँगे और भात नहीं खाएंगे।
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