बादल

बादल निहारते से ही
आँखों में उमड़ पड़ती है:
बाबा की कविता-‘बादल को घिरते देखा है’
और महाप्राण की ‘बादल राग’
हुलस कर हम से बोल पड़ता है
कालिदास का ‘मेघदूत’

बादल पानी का पुनीत कृतित्व है
इसीलिए उसे देखने में हमारी प्रिय रचनाएँ
होती हैं हमारे साथ

आसमान में बादल आ रहे हैं-
जा रहे हैं
जैसे मन में भाव
भीगना बारिश का मान करना है
देते हुए बादल को ऊँचा सम्मान

बरस-बरस कर बादल
भीग-भीग जाते हैं
बूँद का सुख!

चक्र
बूँद का विस्तार है
समुद्र
(सांगीतिक!)

इसीलिए समुद्र
फिर-फिर
बूँद बनता रहता है!

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