पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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निर्मली और उसका रिंग बांध
Posted on 21 Aug, 2012 11:02 AM

कोसी परियोजना ने तीन अदद 49 हॉर्स पॉवर के पम्प रिंग बांध में तीन स्थानों पर लगा दिये थे जिससे

पश्चिमी तटबन्ध का समानी और घोंघेपुर कटाव (1987)
Posted on 20 Aug, 2012 04:20 PM इसी तरह की घटना 1987 में पश्चिमी कोसी तटबन्ध पर समानी और घोंघेपुर गाँवों के पास घटी। तटबन्ध के आखिरी छोर पर होने के कारण इन गाँवों में वैसे भी पानी भरा ही रहता था। तटबन्ध के टूटने की घटना ने थोड़ी तबाही और बढ़ा दी। लेकिन यहाँ लोग उतने भाग्यशाली नहीं थे जितने कि डलवा या बहुअरवा में थे। यहाँ लोगों को तटबन्ध टूटने की त्रासदी झेलनी ही पड़ी थी।
क्षति-पूर्ति आन्दोलन
Posted on 20 Aug, 2012 03:04 PM इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी सरकार को राहत कार्य शुरू करने में बहुत समय लगा क्योंकि तेज रफ्तार से फैलते और बहते हुये नदी के पानी के कारण न तो कोई बाढ़ पीडि़तों तक पहुँच सकता था और न ही बाढ़ पीड़ित उस इलाके से बाहर निकल सकते थे। तटबन्ध टूटने के लगभग 8 दिन बाद तक सरकारी राहत का कहीं अता-पता नहीं था। जो कुछ भी राहत कहीं मिली वह भोजन की शक्ल में और नाते-रिश्ते
दुर्घटना का जिम्मेवार कौन है?
Posted on 20 Aug, 2012 11:50 AM

बांध के टूट जाने से इस पैसे से किये, या न किये गये काम का सारा सबूत मिट गया और बाढ़ नियंत्रण न

पूर्वी कोसी तटबन्ध की नवहट्टा (1984) दरार
Posted on 20 Aug, 2012 10:19 AM

सुरक्षित स्थानों की तलाश में कुछ लोग सहरसा भागे तो कुछ लोगों ने दूर जाकर मानसी-सहरसा रेल लाइन

पूर्वी कोसी तटबन्ध का बहुअरवा कटाव (1980)
Posted on 17 Aug, 2012 11:30 AM

1984 में एक एन्क्वायरी हुई थी। तब तक रिटायर्ड लाइन वगैरह सब बन चुकी थी। सारा काम खत्म हो चुका

भटनियाँ अप्रोच बांध का टूटना (1971)
Posted on 14 Aug, 2012 11:16 AM

कोढ़ली की रिटायर्ड लाइन बनने के बाद भटनियाँ के नजदीक कोसी की गोबरगढ़ा धार से एक उप-धारा निकली

जमालपुर जल-समाधि (1968)
Posted on 14 Aug, 2012 10:23 AM

तटबन्धों के अन्दर की सारी फसल मारी गई और बड़ी तादाद में घर गिरे। कोसी और कमला की सहायक धाराओं

दरार जो नहीं पड़ी-कुनौली (1967)
Posted on 13 Aug, 2012 02:53 PM एक बार जब डलवा में तटबन्ध की दरार को पाट दिया गया तब पश्चिमी तटबन्ध पर नदी के हमले डलवा से थोड़ा नीचे भारत-नेपाल सीमा पर कुनौली के पास शुरू हुये। यहाँ कोई दुर्घटना नहीं हुई और परेशानी भी बहुत ज्यादा नहीं हुई क्योंकि कुनौली भारत में अवस्थित है। इस तरह नेपाल प्रकरण से लोग बचे हुये थे। खर्च और दरार पड़ने का दबाव जरूर अपनी जगह पर था।
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