निर्मली और उसका रिंग बांध

कोसी परियोजना ने तीन अदद 49 हॉर्स पॉवर के पम्प रिंग बांध में तीन स्थानों पर लगा दिये थे जिससे बाजार में जमा हुये पानी की निकासी की जा सके। समय के साथ वह पम्प खराब हो गये और अब एक ही पूरब वाला पम्प हाउस काम करता है जिससे जितना पानी निकाला जा सके, निकलता है। उत्तर और दक्षिण वाले दोनों पम्प हाउस बेकार पड़े हैं। कस्बे की हालत यह है कि इसके पूरब में कोसी नदी है जिसने उधर का क्षेत्र पाट दिया है और पश्चिम में भुतही बलान और अन्य छोटी-छोटी नदियों का उत्पात रहता है और उधर भी बालू पटा पड़ा है।

सुपौल जिले में स्थित निर्मली कस्बा कभी अनाज की एक बहुत बड़ी मंडी हुआ करता था। मधुबनी जिले के घोघरडीहा और भारत-नेपाल सीमा पर बसे कुनौली गांव के बीच यह अपने किस्म का अकेला बाजार था। यहां से प्रतिवर्ष लगभग 16,000 टन चावल, 4,000 टन जूट, 400 टन तीसी का निर्यात होता था। मनोहर पट्टी की चीनी मिल के लिए गन्ने की आपूर्ति का स्रोत भी निर्मली का ही बाजार था। उत्तर पूर्व रेलवे का भी यह एक महत्वपूर्ण सीमांत स्टेशन था जिससे इसकी साख और भी बढ़ती थी। इसके व्यापारिक महत्व को देखते हुये इसे कोसी के थपेड़ों से बचाना जरूरी था।

पश्चिमी कोसी तटबंध के साथ-साथ निर्मली के चारों ओर एक रिंग बांध का प्रस्ताव किया गया और शीघ्र ही इसे बना लिया गया। जाहिर तौर पर अब यह कस्बा कोसी की बाढ़ से सुरक्षित कर दिया गया था। अब इसमें कोसी के पानी के घुसने की कोई गुंजाइश नहीं थी और हर साल होने वाले कटाव से भी कस्बे को बचा लिया गया था। मगर जो दूसरी चीज साथ-साथ हो रही थी वह यह कि रिंग बांध के अंदर जो बारिश का पानी इकट्ठा हो रहा था, उसके बाहर निकलने के भी सारे रास्ते बंद हो गये थे। हल्की सी बारिश हो और निर्मली में नाव चलने लगे। तब कोसी परियोजना विभाग ने कुछ पम्पों की व्यवस्था करके शहर के पानी को बाहर नदी में फेंकने की व्यवस्था की। यह समय कोसी तटबंधों और नहरों के निर्माण का समय था अतः धन का कोई अभाव नहीं था, सो पम्प लग गये। मगर जैसे ही तटबंधों का काम समाप्त हुआ और बराज का काम भी पूरा हो गया तब कोसी परियोजना ने अपनी सारी माया समेट ली और पम्प /मोटर आदि सब की वापसी हो गई। इधर पम्पों की वापसी हुई उधर निर्मली की समस्याएं सामने आने लगी।

विधायक विनायक प्रसाद यादव ने निर्मली की इस दुःस्थिति पर 1967 में विधान सभा में सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि, ‘‘ थोड़ी वर्षा हुई तो बाजार में पानी फैल गया, जिसके लिए मेरे पास तार आया। नोटिफाइड एरिया के अध्यक्ष ने तार दिया जिस तार को मैंने सिंचाई मंत्री को दिखाया किंतु सिंचाई मंत्री ने कहा कि हमारे विभाग से इसका सम्बंध नहीं है, यह तो एल0एस0जी0 से सम्बन्ध रखता है। निर्मली बाजार कोसी नदी के दक्षिणी तटबंध से सट कर बसा हुआ है। कोसी से बाजार को बचाने के लिए उपाय किया गया था लेकिन वर्षा के पानी के कारण पानी बाजार में जमा हो जाता है। जिस समय कोसी नदी योजना से तटबंध बनाया गया था, उस वक्त वहां तीन-चार पंपिंग सेट रहता था जो वर्षा का पानी निकाल देता था। लेकिन तीन-चार वर्ष से कोसी योजना ने यह काम छोड़ दिया है। ... कुछ बड़े लोगों को छोड़कर (15-20 आदमी) बाकी लोगों का घर झोपड़ी का है। उनके घर में पानी घुसा रहता है, लेकिन पानी निकालने का काम न तो एल0एस0जी0 विभाग से हो रहा है न सिंचाई विभाग से।’’

सरकार ने विनायक प्रसाद यादव की बातें तो सुनी ध्यान से मगर कार्यवाही कुछ नहीं की। नतीजा यह हुआ कि यही बातें विधान परिषद में शंकर प्रसाद टेकरीवाल (1971) को फिर दुहरानी पड़ीं। जवाब में केदारनाथ पाण्डे ने सरकार की तरफ से स्पष्टीकरण दिया कि, ‘‘ यह सर्वविदित है कि घेरा बांध बन जाने के कारण निर्मली बाजार का कोसी नदी के कटाव से बचाव हुआ है और घेरा बांध बनने के ही कारण सुरक्षा की स्थिति उत्पन्न हुई है जिससे कारोबार इत्यादि में उन्नति हुई है। ... निर्मली बाजार में हर साल पानी आ जाता है और बाढ़ के समय यह प्रश्न उठता है कि पानी की निकासी किस प्रकार हो। यद्यपि बाजार से पानी निकालने की जवाबदेही कोसी योजना पर नहीं है तो भी नदी घाटी योजना विभाग ने बाजार से पानी निकालने के लिए कुछ पम्पिंग सेट रख छोड़े हैं और प्रत्येक साल नदी घाटी योजना विभाग द्वारा पम्पिंग सेट का संचालन किया जाता है’’

जाहिर है कि कोसी परियोजना को बचाव की व्यवस्था से वास्ता नहीं था मगर निर्मली के लिए परेशानियां पैदा करना जरूर उसके अधिकार क्षेत्र में था। परियोजना ने निर्मली को कटाव से तो बचाया मगर जल-जमाव में झोंक दिया।

दरअसल कोसी परियोजना ने तीन अदद 49 हॉर्स पॉवर के पम्प रिंग बांध में तीन स्थानों पर लगा दिये थे जिससे बाजार में जमा हुये पानी की निकासी की जा सके। समय के साथ वह पम्प खराब हो गये और अब एक ही पूरब वाला पम्प हाउस काम करता है जिससे जितना पानी निकाला जा सके, निकलता है। उत्तर और दक्षिण वाले दोनों पम्प हाउस बेकार पड़े हैं। कस्बे की हालत यह है कि इसके पूरब में कोसी नदी है जिसने उधर का क्षेत्र पाट दिया है और पश्चिम में भुतही बलान और अन्य छोटी-छोटी नदियों का उत्पात रहता है और उधर भी बालू पटा पड़ा है। बालू ऊपर है और कस्बा नीचे है। थोड़ी सी बारिश में शहर में नाव चलने लगती है। कोसी परियोजना का जो पम्प चलता है वह भी निर्मली की जनता के प्रति सरकार के कर्तव्य को ध्यान में रख कर नहीं चलता है। वह तब चलता है जब परियोजना अधिकारियों पर जनता की तरफ से भरपूर दबाव डाला जाता है। निर्मली के निवासी सूर्य नारायण कामत, एडवोकेट, बताते हैं कि, ‘‘लोग लाठी डण्डा लेकर एस.डी.ओ को घेरते हैं तक यह पम्प चलता है। तीन महीनें इस कस्बे में नारकीय स्थिति बनी रहती है। आधे निर्मली में हर घर में पानी घुसता है। मेरे घर में भी पानी रहता है। वार्ड नंबर 1,2,5,7, 8 और 9 में पूरी बरसात में पानी रहता है। रेलवे कालोनी में पूरा स्टाफ और स्टेशन मास्टर अपना घर छोड़ कर रहने के लिए स्टेशन पर ही आ जाते हैं। रेल सेवा अक्सर बंद रहा करती है बरसात में और इसके अलावा निर्मली से निकलने का कोई रास्ता नहीं बचता। बेलही और घोघरडीहा मार्ग के बीच तीन ऐसे पुल हैं जो पिछले 6-7 वर्षों से ध्वस्त पड़े हैं और उन पर हो कर बस नहीं जा पाती है। अगल-बगल से होकर किसी तरह ट्रैक्टर निकल जाते हैं लेकिन सिर्फ सूखे मौसम में। बरसात में तो इस रास्ते पर दो से ढाई फुट तक पानी बहता है। भुतही बलान तो खैर भुतही है उसका पानी ज्यादा देर तक रुकता नहीं है मगर भूतनी से कब भेंट हो जायेगी, इसका डर तो हर एक को रहता ही है। इसी डर से कोई इस रास्ते से बरसात में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।’’

निर्मली का एक टोला नवटोलिया रिंग-बांध के बाहर और नदी की पेटी में है और रेलवे स्टेशन से करीब एक किलोमीटर के फासले पर होगा। यहाँ जाने के लिये पहले से भी रास्ता था मगर 2000 में 26 लाख रुपये की लागत से सांसद कोष से लोगों की सहूलियत के लिये एक स्क्रू पाइल पुल बना दिया गया। 2001 की पहली बरसात में यह पुल बह गया। इसी दिन एक ऐसा ही पुल निर्मली से 10 किलोमीटर दूर दक्षिण में बेलहा के पास (सरोजा बेला पंचायत) भी बह गया था। दोनों पुलों में से किसी का उद्घाटन तक नहीं होने पाया।

निर्मली से लगे हुये मरौना प्रखण्ड की अपनी एक अलग कहानी है। यह प्रखण्ड 1956 में बना मगर आज तक इसका अपना भवन नहीं है। मरौना गाँव कोसी तटबन्धों के बीच में पड़ता है और वर्ष में चार महीने बाकी दुनियाँ से कटा रहता है। पहले इसका प्रखण्ड कार्यालय निर्मली के एक किराये के मकान में चलता था पर आजकल बेलही गाँव में एक विकास भवन है, वहाँ से चलता है। वहाँ प्रखण्ड विकास पदाधिकारी नहीं हैं। निर्मली सब-डिवीजन के एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट यह काम देखते हैं। मरौना में सर्किल ऑफिसर भी नहीं हैं निर्मली के सर्किल ऑफिसर यह काम देखते हैं। मरौना थाने का भी अपना भवन नहीं है, वह उत्तरी मरौना के पंचायत भवन से चलता है। मरौना गाँव में एक स्वास्थ्य केन्द्र है। चार एम. बी. बी. एस. डॉक्टरों की नियुक्ति वहाँ की गई है मगर रहता कोई नहीं है। मरौना में हाई स्कूल है मगर तटबन्ध के बाहर अगरगढ़ा में। कॉलेज कोई नहीं है मरौना में। मरौना फिर भी एक प्रखण्ड है। मरौना प्रखण्ड का एक उपयोग जरूर है। किसी सरकारी कर्मचारी को धमकाना हो तो उसे मरौना में नियुक्त कर देने का डर दिखाया जाता है।

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Post By: tridmin
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