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अमृत सरोवर मिशन - तालाब एवं जल संरक्षण का महाअभियान
हमारे देश में तालाबों की संख्या काफी कम होती जा रही है इसलिए वर्षा जल का पर्याप्त संरक्षण न होने के कारण भूमिगत जल का स्तर काफी कम होता जा रहा है इसलिए प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी द्वारा 24 अप्रैल 2022 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर देश के प्रत्येक जिले में 75-75 तालाबों के निर्माण के लिए अमृत सरोवर योजना शुरू करने की घोषणा की गई है। अमृत सरोवर रचनात्मक कार्यों का प्रतीक है जो कि आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित है। अमृत सरोवर योजना के माध्यम से देश भर में तालाबों को फिर से पुनर्जीवित एवं कायाकल्पित किया जाएगा। जिसका उद्देश्य भविष्य के लिए पानी का संरक्षण करना है। भारत सरकार के द्वारा 15 अगस्त 2022 को पूरे देश में 50,000 अमृत सरोवर तालाब बनाने का लक्ष्य तय किया गया था। इस काम के लिए राज्य की जगहों को चिन्हित कर लिया गया। Posted on 22 Nov, 2023 01:44 PM

जल ही जीवन है, जल के बिना मानव का जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता है। जल हमारे लिए ही नहीं अपितु पशु-पक्षी, जीव-जंतु, मनुष्य इत्यादि सबके लिए अनिवार्य है। जल का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। एक कहावत है "जल है तो कल है।" पृथ्वी का लगभग तीन-चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, किंतु इसमें से 97 प्रतिशत जल खारा है जो पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी मात्र 3 प्रतिशत है इसमें भी 2 प्रतिशत जल हिम एवं ह

अमृत सरोवर मिशन
परिवहन तंत्र का वायु गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव
वायु प्रदूषण भारत में एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की जान जाती है। दिल्ली एनसीआर में तो यह स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि यहां की हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर बहुत ऊंचे हैं। इसका प्रमुख कारण यहां का परिवहन तंत्र है, जिसमें अधिकांश वाहन पेट्रोल या डीजल से चलते हैं। इन वाहनों में से कई तो प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र भी नहीं रखते हैं। इसके अलावा, पराली जलाने, कचरा निस्तारण, धूल एवं धुआं, निर्माण कार्य आदि भी वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं। Posted on 21 Nov, 2023 05:03 PM

भापरिषद (आईसीएमआर मात्र 2019 का एक अध्ययन बताता है कि भारत में 16.7 लाख लोगों की मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण एक प्रमुख कारक था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यहां अस्थमा एवं सांस के बीमारियों से विश्व में सबसे अधिक मृत्यु होती है। वहीं दिल्ली के संबंध में एक अंतरराष्ट्रीय शोध बताता है कि अगर समय रहते प्रदूषण पर काबू नहीं किया गया तो वर्ष 2025 तक 32 हजार लोग प्रदूषित जहरीली हवा के कारण असामयिक

परिवहन तंत्र का वायु गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर बढ़ता संकट - आंकलन एवं उपाय 
राज्य सरकार द्वारा विश्व बैंक प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत वर्ष 2009 से वर्ष 2016 तक कई प्रकार के कार्य जल संरक्षण हेतु किए गए। जिसके परिणामस्वरूप लगभग 77 एकीकृत लघु जलागम योजनाओं को प्रदेश के कुल 77 विकास खण्डों में पूरा कर लगभग 896.96 लाख लीटर जल को संरक्षित किया गया जिससे लगभग 2243 हैक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया। Posted on 20 Nov, 2023 04:52 PM

आईए मिलकर जल संसाधनों की रक्षा करें!

  • वनों का संरक्षण करें।
  • वर्षा के जल को एकत्रित करें।
  • एकीकृत जलागम प्रबन्धन को अपनाएं।
  • भू-जल पुनर्भरण करें।
  • हिमनदों / खण्डों को संरक्षित करें।
  • नदी के वास्तविक बहाव को न बदलें।
  • हिमनदों में बढ़ती मानवीय गतिविधियां कम करें।
  • प्राकृतिक झीलों एवं तलाबों का संर
जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर बढ़ता संकट
पश्चिमी हिमालय क्षेत्रों में अपरदन नियंत्रण हेतु वानस्पतिक अवरोध
एक वानस्पतिक अवरोध, पृष्ठ एवं अवनालिका अपरदन-क्षणिक गली अपरदन कम करने, जल बहाव को नियमित करने, तीव्र ढलानों को स्थापित करने, अवसाद को रोकने एवं अन्य उत्पादों जैसे चारा, हरी खाद आदि उपलब्ध कराने में सहायक हैं। Posted on 20 Nov, 2023 04:22 PM

परिचय

  • पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में कृषि संबंधी गतिविधियाँ अधिकतर पर्वतीय ढलानों पर की जाती हैं, जहाँ पर क्षरण हानियाँ अत्यधिक हैं।
  • यद्यपि, मृदा एवं जल संरक्षण हेतु बांध निर्माण एक प्रभावशाली उपाय है किन्तु यह एक महंगा उपचार है और हर समय रखरखाव मांगता है। इसलिए समोच्चों पर स्थायी पट्टियों में बहुत कम अंतरालों पर उगाई गई घासों के वानस्पतिक अवरोध, बां
पश्चिमी हिमालय क्षेत्रों में अपरदन नियंत्रण हेतु वानस्पतिक अवरोध
धूल से उपजाऊ जमीन की बर्बादी
धूल और रेत के तूफानों से न केवल भूमि की उपज कम होती है, बल्कि दुनिया को कृषि और आर्थिक रूप से भी बड़ा झटका लगता है। यह चेतावनी उज्बेकिस्तान के समरकंद में चल रही यूएनसीसीडी की पांच दिवसीय बैठक में दी गई है। इस बैठक का उद्देश्य दुनिया भर में भू-क्षरण को रोकने के लिए किए गए प्रयासों का मूल्यांकन करना है।
Posted on 20 Nov, 2023 04:05 PM

वायु में फैली धूल और रेत का प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इससे हर साल लगभग 200 करोड़ टन धूल और रेत हमारे वातावरण में घुस जाती है। इसका परिणाम यह है कि हर साल करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि उपजाऊ नहीं रहती है। इसकी तुलना में गीजा के 350 पिरामिडों का वजन बराबर है। यह जानकारी यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) की रिपोर्ट से मिली है। रिपोर्ट के अनुसार इंसानी गतिविधियों के कारण धूल और

धूल से उपजाऊ जमीन की बर्बादी
खारे पानी में खेती
आसपास की घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन करना और इन अवलोकनों का सैद्धान्तिक जानकारी के साथ तालमेल बिठाना, व्यावहारिक विज्ञान के ये दो मुख्य घटक हैं। इस प्रक्रिया से ही नए आविष्कार जन्म लेते हैं और नए तंत्र विकसित होते हैं’। Posted on 20 Nov, 2023 01:42 PM

समुद्र यानी पानी का अथाह भण्डार, परन्तु सभी जानते हैं। कि पेड़-पौधों व फसलों की सिंचाई के लिए यह पानी सर्वथा अनुपयुक्त होता है। जिस पौधे को समुद्र के पानी से सींचा जाए, वह पौधा कुछ ही समय में मुरझा जाता है। आखिर, ऐसा क्यों होता है ?

खारे पानी में खेती
उबलते पानी के चश्मे
आमतौर पर ऐसे मैग्मा का तापमान 350 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे भी ज्यादा होता है। यदि रिसता हुआ पानी इस गरम मैग्मा या इसके आसपास की गरम चट्टानों के सम्पर्क में आ जाए तो इस पानी का तापमान बढ़ने लगता है। इस तरह के कम गहराई में पाए जाने वाले मैग्मा चैम्बर ज्वालामुखी की सक्रियता वाले इलाकों में तो बहुतायत में होते ही हैं लेकिन उन इलाकों में भी मिलते हैंवर्तमान समय में कोई भी ज्वालामुखी सक्रियता दिखाई नहीं देती।  अब इस बात की काफी संभावना है कि रिसता हुआ पानी उष्मा के इस स्रोत के सम्पर्क में आ जाए। ऐसे में पानी धीरे-धीरे गरम होता जाता है। और बाहर निकलने के रास्ते खोजता हुआ पुनः धरातल पर आ जाता है। चूंकि धरातल पर आया यह पानी अभी भी काफी गरम है इसलिए इसे गरम पानी का झरना कहते हैं। Posted on 20 Nov, 2023 12:51 PM

पिछले दिनों मेरे एक दोस्त ने बताया कि पिपरिया के पास अनहोनी गांव में गर्म पानी का झरना है। यहां पानी इतना गर्म होता है कि आप चावल भी पका सकते हैं। पढ़ाई के दौरान गर्म पानी के झरनों के बारे में पढ़ा तो था परन्तु यह सुनकर अचरज हुआ कि होशंगाबाद के इतने करीब एक ऐसा झरना मौजूद है। इसलिए अनहोनी जाकर इसे देखने की योजना बनाई। पिपरिया छिंदवाड़ा मुख्य सड़क से 10 किलोमीटर अंदर अनहोनी गांव (जिला छिंदवाड़ा)

उबलते पानी के चश्मे
जल संरक्षण प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन
जल संसाधनों के संरक्षण एवं उचित प्रबन्धन के लिए एकमात्र सही विकल्प गाँव स्तर पर लोक सहभागिता के माध्यम से छोटे, मझोले और बड़े तालाबों तथा अन्य जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण करना है। प्रत्येक गाँव में छोटे-छोटे तालाबों एवं पोखरों से वर्षा उपरान्त भूमि सतह पर जो जल प्रवाहित होता है, Posted on 18 Nov, 2023 04:37 PM

आज भारत में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में जल उपलब्धता की समस्या विकराल रूप ले रही है। इस समस्या के समाधान हेतु विभिन्न राष्ट्रों की सरकारें तरह-तरह के उपाय कर रही हैं। भारत सरकार भी राष्ट्रीय स्तर पर जल शक्ति मंत्रालय के माध्यम से जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक समाधान, लोक सहभागिता के माध्यम से साधने में जुटी है। जलग्रहण क्षेत्र पर आधारित विभिन्न परियोजनाओं के अध्ययनोपरांत यह निष्कर्ष निकला कि

जल संरक्षण प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन
भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण (Methods of artificial recharge of groundwater in hindi)
गुजरात के सौराष्ट्र में लगातार तीन वर्षों के सूखे के जवाब में 1980 के दशक के अंत में भूजल पुनर्भरण एक जन आंदोलन के रूप में शुरू हुआ। फसलों को बचाने के लिए कुछ किसानों ने बारिश के पानी और आस-पास की नहरों और नालों के पानी को अपने कुओं में मोड़ना शुरू कर दिया । कुछ ही समय में सौराष्ट्र के सात जिलों के हजारों किसानों ने अपने कुओं को पुनर्भरण संरचनाओं में परिवर्तित कर दिया । Posted on 18 Nov, 2023 04:28 PM

भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण का मुख्य उद्देश्य वर्षा जल को विभिन्न प्रकार की संरचनाओं के माध्यम से होकर भूजल स्तर तक ले जाना होता है। ऐसा करने से सतही अपवाह जो बहकर अन्यत्र चला जाता है उसे कम किया जा सकता है जिससे भूजल स्तर में वृद्धि होती है। कृत्रिम पुनर्भरण द्वारा मृदा के कटाव एवं सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण
जल संचयन के रंग-ढंग(Types of water harvesting In hindi)
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति पायी जाती हैं जैसे उच्च ढलान, मध्यम ढलान और अल्प ढलान तथा समतल भूमियाँ । उच्च ढलान, अल्प मिट्टी उर्वरा और मिट्टी की कम गहराई वाली जगहों में कृषि वानिकी और वनीकरण उचित रहता है। Posted on 18 Nov, 2023 12:39 PM

जैसे कि पहले बताया गया है कि जितनी वर्षा होती है उसका एक भाग सतही प्रवाह के रूप में जलग्रहण क्षेत्र से बाहर निकल कर नालों और नदियों के माध्यम से बहते हुए धीरे-धीरे अंततः समुद्र में मिल जाता है। एक भाग वाष्पोत्सर्जन के द्वारा वातावरण में चला जाता है और बाकी मृदा में रिसता हुआ भूजल में मिल जाता है। वर्षा जल सतही और भूजल के माध्यम से उपयोग किया जाता है। जल की प्रकृति उच्च ढलान से निम्न ढलान की ओर

जल संचयन के रंग-ढंग
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