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सहभागी भूजल प्रबंधन की अवधारण, आवश्यकता एवं औचित्य 
सहभागी भूजल प्रबंधन का अर्थ है भूजल प्रणाली के प्रत्येक स्तर पर भूजल प्रबंधन में किसानों एवं विभाग की वित्तीय, प्रशासनिक तथा तकनीकी भागीदारी । प्रत्येक स्तर से अर्थ है कि डिमाण्ड को कम करना जैसे कृषि में स्प्रिंकलर, ड्रिप, अन्डर ग्राउन्ड पाइप, पाइप से सिंचाई तथा घरेलू कार्यों में पानी को बचाना जैसे गाड़ी को साफ करने के लिए पाइप के स्थान पर कपड़े का उपयोग, औद्योगिकों में पानी का कम उपयोग आदि । Posted on 11 Dec, 2023 11:52 AM

सहभागिता क्या है ?

सहभागिता व सहयोग परस्पर समानार्थी हैं लेकिन हैं एकदम अलग-अलग । सहयोग की प्रक्रिया में जहां व्यक्ति एक-दूसरे की सहायता करते हैं जो क्षणिक भी हो सकता है, वहीं सहभागिता मिलजुलकर जिम्मेदारियां बांटकर निर्णय लेने और साथ काम करने की प्रक्रिया है, इसमें सभी पक्षों की जिम्मेदारियां, अधिकार व लाभ तय होते हैं। सहभागिता में सभी पक्ष एक साझे और सकारात्मक

सहभागी भूजल प्रबंधन की अवधारण
ओज़ोन का सिकुड़ता साया
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन के मामले में औद्योगिक देशों के लिए समयावधि 2030 है और विकासशील देशों के लिए 2040। तो उम्मीद की जाए कि 2040 तक ओज़ोन घटाऊ रसायन नहीं रहेंगे। इससे ओज़ोन का सुराख धीरे-धीरे कम होता जाएगा और इस सदी के अंत तक पूरी तरह से बंद हो जाएगा। बहरहाल अभी ओज़ोन घटने की प्रक्रिया के बारे में हमारा ज्ञान अधूरा है। आज कई ऐसे रसायन बनाए जा रहे हैं जो हो सकता है आने वाले समय में ओज़ोन ह्रास का कारण बन जाएं। Posted on 11 Dec, 2023 11:31 AM

हमारे ग्रह को एक नीली सी गैस, ओज़ोन की एक पतली परत घेरे हुए है। यह परत पृथ्वी की सतह से कोई 20 से 50 कि.मी. ऊपर है। ओज़ोन (03 ,) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं का एलोट्रॉप है। इस परत में ओज़ोन की अधिकतम मात्रा बहुत कम (केवल 300 कण प्रति 1 अरब कण) है। यानी अगर सारी ओज़ोन को पृथ्वी की सतह पर ले आया जाए तो पृथ्वी के  घेरे  में इसका केवल 3 मि.मी.

ओज़ोन का सिकुड़ता साया
अटल भूजल योजना कब, क्यों और क्या (When, why and what of Atal Bhujal Yojana in Hindi) 
अटल भूजल योजना को स्थायी भूजल प्रबंधन पर लक्षित किया गया है, मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों और हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ विभिन्न चालू योजनाओं के बीच अभिसरण से यह सुनिश्चित होगा कि योजना क्षेत्र में, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा आवंटित धन विवेकपूर्ण तरीके से भूमिगत जल संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए खर्च किए जायेगें। अभिसरण के परिणामस्वरूप उपयुक्त निवेश के लिए राज्य सरकारों को योजना को पायलट भूजल प्रबंधन के लिए संस्थागत ढांचे को मजबूत करने के प्रमुख उद्देश्य के साथ पायलट के रूप में डिजाइन किया गया है। इसका उद्देश्य जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन लाना और भाग लेने वाले राज्यों में स्थायी भूजल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए क्षमता निर्माण करना है। इस योजना में प्रोत्साहन मिलेगा, मजबूत आधार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामुदायिक भागीदारी सम्मिलित है। Posted on 08 Dec, 2023 04:38 PM
1 - अटल भूजल योजना का प्राथमिक उद्देश्य

इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य चयनित क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करना। केन्द्र / राज्य सरकार स्तर पर विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से समुदाय के नेतृत्व में भूजल प्रबंधन में उचित सुधार करना तथा प्रबंधन कार्यों को लागू करना।अटल भूजल योजना को स्थायी भूजल प्रबंधन पर लक्षित किया गया है, मुख्य रूप से स

अटल भूजल योजना
भूजल की खोज और अवधारणा (Discovery and concept of groundwater in Hindi)
वर्षा के द्वारा प्राप्त सतही जल का कुछ भाग धीरे-धीरे संचारित होकर गुरुत्वाकर्षण के कारण भूमि के नीचे चला जाता है। अतः भूजल बनने की यह क्रिया जलभृत कहलाती है और संचित जल भूजल कहलाता है। गुरुत्व प्रभाव के फलस्वरूप भूमिगत जल धीरे-धीरे मृदा के भीतर चला जाता है। निचले क्षेत्रों में यह झरनों एवं धारा के रूप में बाहर आ जाता है। Posted on 08 Dec, 2023 03:32 PM

भूमि के नीचे पाये जाने वाले जल को ही भूजल कहते हैं। वर्षा के जल अथवा बर्फ के पिघलने से पानी का कुछ भाग भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है या कुछ जलराशि भूजल की ऊपरी परत से रिस-रिसकर जमीन के नीचे चली जाती है और यही जल भूमि जल बनता है।

भूजल की खोज और अवधारणा
चरखा के 29वें स्थापना दिवस पर संजॉय घोष मीडिया अवार्ड विजेताओं को किया गया सम्मानित
देश के विभिन्न राज्यों में संचालित कार्यक्रमों की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया कि किस प्रकार चरखा देश के दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक मुद्दों पर लिखने में रूचि रखने वाले लेखकों की पहचान कर न केवल उनमें लेखन की क्षमता को विकसित करता है बल्कि उसे मीडिया की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास भी करता है. वर्तमान में उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ और कपकोट ब्लॉक की युवा किशोरियों के साथ प्रोजेक्ट दिशा का विशेष उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इससे न केवल वह सफल लेखक बन रही हैं बल्कि महिला अधिकारों के प्रति जागरूक बन कर पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती भी दे रही हैं. Posted on 08 Dec, 2023 03:25 PM

नई दिल्ली - लेखन के माध्यम से गांव के सामाजिक मुद्दों को मीडिया में प्रमुखता दिलाने वाली सामाजिक संस्था चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क ने गुरुवार को नई दिल्ली स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में अपना 29वां स्थापना दिवस समारोह मनाया। इस अवसर पर संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आज़ाद फाउंडेशन की संस्थापक मीनू वडेरा उपस्थित थीं

संजॉय घोष मीडिया अवार्ड विजेता,Pc-चरखा फीचर्स 
पनबिजली व बड़े बांध 
भारत में ताप व पनबिजली का विकास साथ-साथ किया जा रहा है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि पूरे बिजली तंत्र के समुचित संचालन के लिए पनबिजली का अनुपात 40 प्रतिशत रहना चाहिए। 1963 में यह अनुपात 50 प्रतिशत था मगर घटते- घटते 1998 में मात्र 25 प्रतिशत रह गया था। केन्द्रीय बिजली अभिकरण ने भारत में पनबिजली क्षमता 84,000 मेगावॉट आंकी है जो 1,48.700 मेगावॉट स्थापित क्षमता के तुल्य है। भारत में छोटे पैमाने की पनबिजली परियोजनाओं की सम्भावित क्षमता 6000 मेगावॉट आंकी गई थी। Posted on 07 Dec, 2023 05:07 PM

पनबिजली, ऊर्जा का नया व प्रदूषण रहित स्रोत है। इसे बड़े पैमाने पर विकसित किया जा सकता है। इसके लिए जांची परखी टेक्नॉलॉजी उपलब्ध है। जलाशय आधारित पनबिजली परियोजनाएं प्रायः बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं का हिस्सा होती हैं। इनमें बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, जल प्रदाय आदि घटक भी होते हैं। अलबत्ता ऐसे उदाहरण भी हैं जहां पनबिजली को ही एकमात्र या सबसे प्रमुख लाभ माना गया है। प्रवाहित नदी में पनबिजली उत्पा

पनबिजली व बड़े बांध 
पर्यावरण पेट्रोलियम का उपयोग : वरदान या विनाश
भारत सरकार ने भारतीय समुद्री क्षेत्र में तेल के व्यापार परिवहन में लगे जहाज़ों पर गहरी चिंता जताई है। ये जहाज़ देश के तटीय जल में तेल का कचरा पम्प कर फेंकते हैं और प्रदूषण फैलाते हैं। इस तरह पर्यावरण को क्षति पहुंचती है और जीवन तथा सम्पत्ति दोनों पर खतरा मण्डराने लगता है। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के अनुसार केरल के तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण के कारण झींगा, चिंगट और मछली का उत्पादन 25 प्रतिशत घट गया है। Posted on 07 Dec, 2023 04:58 PM

आज के परिप्रेक्ष्य में यह विचारणीय है कि आधुनिक सभ्यता का अग्ग्रदूत पेट्रोलियम वरदान है अथवा विनाश। इसके उपयोग से भारी प्रदूषण हो रहा है और धरती पर जीवन जीना चुनौती पूर्ण हो गया है।

पर्यावरण पेट्रोलियम का उपयोग : वरदान या विनाश
कीटनाशक और स्वास्थ्य का संकट
भारत में पहली बार कीटनाशक का प्रयोग मलेरिया नियंत्रण के लिए आयातित डी.डी.टी. के रूप में किया गया था। इसके बाद 1948 में टिड्डी नियंत्रण के लिए बी.एच.सी. का उपयोग हुआ। अधिकांश कटिबन्धीय देशों में डी.डी.टी. का उपयोग वाहकों द्वारा फैलाई जाने वाली मलेरिया जैसी बीमारियों के नियंत्रण में होता है। वहीं बी. एच.सी. कृषि उत्पादन में एक सस्ते कीटनाशी के रूप में प्रयुक्त होती है। बाद में हम मलेरिया नियंत्रण को केन्द्र में रख भारत में जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में कीटनाशकों के इस्तेमाल की पड़ताल करेंगे। Posted on 07 Dec, 2023 04:39 PM

3 दिसम्बर 1984 की रात भोपाल के एक कीटनाशक बनाने वाले संयंत्र से अचानक घातक मिथाइल आइसो सायनेट गैस रिसने लगी। यूनियन कार्बाइड के इस हादसे ने लगभग 3000 लोगों की जान ले ली और सैकड़ों हज़ार लोगों को बीमार कर दिया। लगभग इसी समय अमरीका के पश्चिमी वर्जीनिया में भी कुछ ऐसी ही दुर्घटनाएं हुई। इन और इन जैसी तमाम दुर्घटनाओं ने कीटनाशकों के इस्तेमाल से जुड़े खतरों की ओर जनता का ध्यान खींचा। साथ ही जन स्वास

कीटनाशक और स्वास्थ्य का संकट
नॉनस्टिक कड़ाहियों का प्रदूषण
अब तक वैज्ञानिक गण पर्यावरण में टी.एफ.ए. की बढ़ती मात्रा का दोष हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स नामक गैसों को दिया करते थे। ये गैसें क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स के स्थान पर प्रयुक्त की जाती हैं क्योंकि क्लोरोफ्लोरो कार्बन ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचाती है। किन्तु देखा यह गया है कि बड़े शहरों की हवा में जितना टी. एफ.ए. होता है Posted on 07 Dec, 2023 02:29 PM

शंका है कि नॉनस्टिक कड़ाहियां या फ्राइंग पैन हमारे वातावरण में एक ऐसा रसायन छोड़ रही हैं जो प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होता। आम तौर पर कड़ाही को नॉनस्टिक बनाने के लिए उन पर टेफ्लॉन जैसे किसी पॉलीमर का लेप चढ़ाया जाता है। कनाडा के वैज्ञानिकों ने बताया है कि गर्म करने पर टेफ्लॉन विघटित होकर ट्राई फ्लोरो एसीटिक एसिड (टी.एफ.ए.) बनाता है। टी.एफ.ए.

नॉनस्टिक कड़ाहियों का प्रदूषण
चमड़ा पकाने में देशी टेक्नॉलॉजी
चमड़ा उद्योग का कच्चा माल मूलतः मरे हुए जानवरों से प्राप्त होता था। भारत में दुनिया के किसी भी देश से ज़्यादा मवेशी थे। लिहाज़ा यहां चमड़ा उद्योग के लिए भरपूर कच्चा माल उपलब्ध था। इस बात ने ब्रिटिशों का ध्यान आकर्षित किया। जल्दी ही कच्चा चमड़ा और अधपका चमड़ा भारत से इंग्लैण्ड को होने वाले निर्यात का एक प्रमुख आइटम बन गया। यह बीसवीं सदी के शुरू की बात है। टैनिंग के लिए चमड़े की मात्रा व गुणवत्ता बढ़ाने के लिए म्युनसिपल बूचड़खाने स्थापित कर दिए गए। Posted on 07 Dec, 2023 12:58 PM

भारत में, और खासकर तमिलनाडु में चमड़ा उद्योग का लंबा इतिहास रहा है। टैनिंग यानी चमड़ा पकाने की प्रक्रिया में चमड़े को सड़ने से बचाने की व्यवस्था की जाती है; इसके लिए वनस्पति पदार्थों का भी उपयोग किया जाता है और रसायनों का भी। पारम्परिक रूप से स्थानीय पेड़ों की छाल और फलियों का उपयोग चमड़ा पकाने में किया जाता रहा है। वनस्पति पदार्थों की मदद से चमड़ा पकाना, रंग करना और फिनिशिंग करना तमिलनाडु में

चमड़ा पकाने में देशी टेक्नॉलॉजी
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