चरखा फीचर्स

चरखा फीचर्स
चरखा के 29वें स्थापना दिवस पर संजॉय घोष मीडिया अवार्ड विजेताओं को किया गया सम्मानित
देश के विभिन्न राज्यों में संचालित कार्यक्रमों की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया कि किस प्रकार चरखा देश के दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक मुद्दों पर लिखने में रूचि रखने वाले लेखकों की पहचान कर न केवल उनमें लेखन की क्षमता को विकसित करता है बल्कि उसे मीडिया की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास भी करता है. वर्तमान में उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ और कपकोट ब्लॉक की युवा किशोरियों के साथ प्रोजेक्ट दिशा का विशेष उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इससे न केवल वह सफल लेखक बन रही हैं बल्कि महिला अधिकारों के प्रति जागरूक बन कर पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती भी दे रही हैं.
Posted on 08 Dec, 2023 03:25 PM

नई दिल्ली - लेखन के माध्यम से गांव के सामाजिक मुद्दों को मीडिया में प्रमुखता दिलाने वाली सामाजिक संस्था चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क ने गुरुवार को नई दिल्ली स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में अपना 29वां स्थापना दिवस समारोह मनाया। इस अवसर पर संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आज़ाद फाउंडेशन की संस्थापक मीनू वडेरा उपस्थित थीं

संजॉय घोष मीडिया अवार्ड विजेता,Pc-चरखा फीचर्स 
प्रभावित क्षेत्रों में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं : उपराष्ट्रपति
Posted on 09 Dec, 2014 03:51 PM
उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे दूर-दराज़ क्षेत्रों और झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसी चुनौती को स्वीकार कर चरखा का कार्य सराहनीय है।
हम पी रहे है मीठा जहर
Posted on 08 Oct, 2009 10:26 AM

गंगा के मैदानी इलाकों में बसा गंगाजल को अमृत मानने बाला समाज जल मेंव्याप्त इन हानिकारक तत्वों को लेकर बेहद हताश और चिंतित है। गंगा बेसिनके भूगर्भ में 60 से 200 मीटर तक आर्सेनिक की मात्रा थोडी कम है और 220मीटर के बाद आर्सेनिक की मात्रा सबसे कम पायी जा रही है। विशेषज्ञों केअनुसार गंगा के किनारे बसे पटना के हल्दीछपरा गांव में आर्सेनिक की मात्रा1.8 एमजी/एल है। वैशाली के बिदुपूर में विशेषज्ञों ने पानी की जांच की तोनदी से पांच किमी के दायरे के गांवों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रादेखकर वे दंग रह गये। हैंडपंप से प्राप्त जल में आर्सेनिक की मात्रा 7.5एमजी/एल थी ।

तटवर्तीय मैदानी इलाकों में बसे लोगों के लिए गंगा जीवनरेखा रही है। गंगा ने इलाकों की मिट्टी को सींचकर उपजाऊ बनाया। इन इलाकों में कृषक बस्तियां बसीं। धान की खेती आरंभ हुई। गंगा घाटी और छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर धान उत्पादक गांव बसे। बिहार के 85 प्रतिशत हिस्सों को गंगा दो (1.उत्तरी एवं 2. दक्षिणी) हिस्सों में बांटती है। बिहार के चौसा,(बक्सर) में प्रवेश करने वाली गंगा 12 जिलों के 52 प्रखंडों के गांवो से होकर चार सौ किमी की दूरी तय करती है। गंगा के दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोग पेयजल एवं कृषि कार्यों में भूमिगत जल का उपयोग करते है।


गंगा बेसिन में 60 मीटर गहराई तक जल आर्सेनिक से पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। गांव के लोग इसी जल को खेती के काम में भी लाते है जिससे उनके शरीर में भोजन के द्वारा आर्सेनिक की मात्रा शरीर में प्रवेश कर जाती है।

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