उत्तरकाशी जिला

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क्या गंगा के प्रवाह की चिंता असली है?
Posted on 02 Nov, 2010 08:46 AM
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने गंगा नदी की अविरलता बरकरार रखने का आश्वासन देते हुए कहा है कि गंगा नदी पर अब नए बाँध नहीं बनेंगे तथा उत्तराखंड में जिन पनबिजली परियोजनाओं पर काम शुरू नहीं हुए हैं, उन पर काम शुरू नहीं होंगे।
कैसे स्वच्छ होगी गंगा
Posted on 12 Oct, 2010 03:32 PM


करोड़ों भारतीयों की आस्था की प्रतीक गंगा का जल आज पीने लायक तक नहीं रह गया है।

Ganga river
अलकनंदा की यह अनदेखी
Posted on 02 Sep, 2010 08:29 PM
प्रतिमत

 

गंगोत्री तीर्थ
Posted on 31 Jul, 2010 11:51 AM
यदि हम भारत को गंगा-संस्कृति का देश कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि यहां के जनमानस में गंगा उनके जीवन का अभिन्न अंग है जन्म से मृत्यु तक और उसके उपरान्त भी गंगा गंगाजल प्राण से जुड़ा है कोई भी हिन्दू गंगाजल की उपेक्षा नहीं कर सकता। इसी दिव्य प्राणदेनी नदी के लिए माना जाता है कि गंगोत्री में गंगा का अवतरण हुआ था। गंगोत्री तीर्थ ही वह जगह है जहां सर्वप्रथम गंगा का अवतरण हुआ था । हिमान
कुज्जन गांव की आपबीती
Posted on 18 Jul, 2010 01:00 PM
हम भागीरथी घाटी के निवासी हैं। सदियों से भागीरथी बहती आई है। अब इसे बांधों में बांधा जा रहा है। कहीं सुंरगों में तो कहीं जलाशयों में डाला जा रहा है।
जलीय जीव-मछली का विकास नदी बचाकर करना होगा
Posted on 03 Jul, 2010 10:15 AM उत्तराखण्ड राज्य नदी, पर्वत एवं उसमें विराजमान वन एवं जैव-विविधता से परिपूरित लगता है। वह चाहे मनुष्य हो या अन्य जीवधारी, यहां के निवासियों का जीवन एवं जीविका जल, जंगल एवं जमीन पर निर्भर है। हिमानी एवं जंगलों के बीच से निकलने वाले गाड़-गदेरों व नदियों के पानी से असंख्य जीव-जन्तु एवं वनस्पतियों के विकास की कहानी जुड़ी हुई है। अतः पानी में रहने वाले जीव-जन्तुओं की एक विशेषता यह है कि ये जल प्रदूषण क
प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रित करता समाज
Posted on 20 Jun, 2010 09:34 PM
(दुनिया में पर्यावरण को लेकर चेतना में वृद्धि तो हो रही है परंतु वास्तविक धरातल पर उसकी परिणिति होती दिखाई नहीं दे रही है। चारों ओर पर्यावरणीय सुरक्षा के नाम पर लीपा-पोती हो रही है। विगत दिनों डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में हुए विश्व पर्यावरण सम्मेलन की असफलता ने मनुष्यता को और अधिक संकट में डाल दिया है।)

पर्यावरण आज एक चर्चित और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर पिछले दो-तीन दशकों से काफी बातें हो रहीं हैं। हमारे देश और दुनियाभर में पर्यावरण के असंतुलन और उससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा भी बहुत हो रही है और काफी चिंता भी काफी व्यक्त की जा रही है लेकिन पर्यावरणीय असंतुलन
गंगा के मायके में प्यासी धरती, प्यासे लोग
Posted on 15 Apr, 2010 10:28 AM

समूचे गंगा के मैदान को पानी उपलब्ध करवाने वाला उत्तराखंड स्वयं प्यासा है। क्रुद्ध पर्वतवासी जन-संस्थान के दफ्तरों और अफसरों का घेराव कर रहे हैं। आंदोलनों से सरकारी मशीनरी अक्सर सक्रिय होती भी है लेकिन उसकी सक्रियता का परिणाम नगरों और कस्बों तक ही सीमित होता है। गांव प्यासे रह जाते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि इस पर्वतीय प्रदेश की 75 प्रतिशत जनसंख्या 15,828 गांवों में निवास करती है। नगरीय इल

मायके में सूख रही गंगा
Posted on 15 Apr, 2010 09:13 AM
उत्तराखंड इस समय पानी की कमी के संकट से गुजर रहा है। यहां की नदियों, तालाबों, जलस्रोतों में लगातार पानी कम हो रहा है। यहां तक कि हरिद्वार के महाकुंभ में डुबकी लगाने के लिए कई घाटों पर चार फुट पानी भी न मिलने की लोगों ने शिकायतें की हैं। पूरे राज्य में जगह-जगह नदी बचाओ, घाटी बचाओ आंदोलन चल रहे हैं। जल स्रोतों के सूखने या उन तक पानी न पहुंचने से करोड़ों रुपये की पाइप लाइन योजनाएं बेकार हो गई ह
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