चंडीप्रसाद भट्ट
चंडीप्रसाद भट्ट
इस आपदा ने विकास की असलियत बतायी
Posted on 20 Jul, 2011 04:06 PMसितंबर के तीसरे सप्ताह भर की अखंड बारिश ने पूरे उत्तराखंड को जाम करके रख दिया था। उसने सोर-पिथौरागढ़ से लेकर रामा-सिनाई, बंगाण तथा बद्रीनाथ से हरिद्वार, कपकोट से नैनीताल तक के बीच के क्षेत्र को झिंझोड़ कर रख दिया। लगभग दो सौ लोग तथा नौ सौ पशु मारे गये। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत नष्ट हो गये थे। एक गणना के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों सहित गाँवों को जोड़ने वाले नौ सौ मोटर मार्ग भी ध्वस्त हो ग
उत्तराखंडः प्रकृति नहीं विकास को कोसें
Posted on 15 Oct, 2010 03:43 PM अनियंत्रित और मैदानी प्रकृति का विकास उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पड़ोस में लगी आग यदि हम नहीं बुझाएगें तो हमारा घर भी जल कर भस्म हो जाएगा। पूरा उत्तरी भारत इस बार उत्तराखंड की बाढ़ की भयावहता का विस्तार बन कर रह गया। इस विभीषिका का पुनरावृति रोकने के लिए आवश्यक भी है कि पहाड़ों को नैसर्गिक रूप से बचे रहने दिया जाए।-का.सं.सितम्बर के तीसरे सप्ताह की अखण्ड बारिश ने पूरे उत्तराखण्ड को तहस-नहस करके रख दिया था। अनुमान है कि इस दौरान दो सौ लोग तथा एकाध हजार पशु मारे गए। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत भी नष्ट हो गए थे और अनेक सड़कें भी बह गई। वर्ष 1956, 1970 एवं 1978 में भी इस प्रकार की बारिश हुई थी। लेकिन तब इस प्रकार की तबाही नहीं हुई थी। मेरे बचपन में जहां गोपेश्वर गांव की आबादी 500 थी वह आज 15000 हो गई है। नए फैले हुए गोपेश्वर में बरसात के दिनों में टूट-फूट एवं जल-भराव की घटना कभी कभार होती रहती हैं लेकिन जो पुराना गांव है उसमें अभी तक इस प्रकार की गड़बड़ी नहीं के बराबर है। गोपेश्वर मन्दिर के नजदीक भूमिगत नाली पानी के निकास के लिए बनी थी जिसमें जलभराव की नौबत ही नहीं आती थी।बिन मौसम की बर्फबारी में छुपे खतरे
Posted on 31 Dec, 2009 07:27 AMहिमनदों का ढाल, दिशा और ऊंचाई भी हिमनदों के कम और ज्यादा रिसने में योग देता होगा। यह तो विशेषज्ञ ध्यान में रखते ही हैं, और यह तो देखा तथा समझा जा सकता है। लेकिन वर्षा, तापमान तथा वनस्पति की स्थिति के बारे में तो आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए, वो हो जायं तब जाकर हम विश्व तापमान तथा स्थानीय गतिविधियों से बने तापमान का मौसम के प्रभाव का तथा हिमनदों की सही स्थिति की जानकारी पा सकेंगे तथा इसका वर्ष के आधार पर तुलना कर सकेंगे। जहां तक आंकड़ों की बात है, हिमालय के बहुत ही कम इलाकों में अभी तक जलवायु और तापमान से सम्बन्धित स्वचालित संयंत्रों की स्थापना हुई है।तीन सितम्बर(09) की सुबह हमने हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले के काजा से प्रस्थान किया था तो उस समय मौसम सुहावना था, इस शीत रेगिस्तान की छटा देखते ही बन रही थी। पहाड़ियों पर दूर हिमनद दिखायी दे रहा था। हल्का सा काला बादल उसकी चोटी के ऊपर मंडरा रहा था। हमारे दल के प्रमुख महेन्द्र सिंह कुंवर ने अगले दिन हमें आगाह किया था कि सुबह जल्दी प्रस्थान करना है। क्योकि हमे कंजुम दर्रे (4550 मीटर) और रोहतांग दर्रे (3980 मीटर) को पार करना था।
लेकिन जैसे ही हम लोसर (4079 मीटर) पर पहुंचे तो आसमान को काले बादलों ने घेर लिया, आगे टाकचा के मोड़ों के ऊपर चढ़ते-चढ़ते हिम किलियां गिरनी शुरू हो गयी थीं, इससे आगे कंजुम पास के मैदान बर्फ की चादर से आच्छादित था। नीचे के मोड़ों पर भी काफी बर्फ गिर चुकी थी, यहां पर कुकड़ी-माकुड़ी
प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रित करता समाज
Posted on 20 Jun, 2010 09:34 PM(दुनिया में पर्यावरण को लेकर चेतना में वृद्धि तो हो रही है परंतु वास्तविक धरातल पर उसकी परिणिति होती दिखाई नहीं दे रही है। चारों ओर पर्यावरणीय सुरक्षा के नाम पर लीपा-पोती हो रही है। विगत दिनों डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में हुए विश्व पर्यावरण सम्मेलन की असफलता ने मनुष्यता को और अधिक संकट में डाल दिया है।)
पर्यावरण आज एक चर्चित और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर पिछले दो-तीन दशकों से काफी बातें हो रहीं हैं। हमारे देश और दुनियाभर में पर्यावरण के असंतुलन और उससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा भी बहुत हो रही है और काफी चिंता भी काफी व्यक्त की जा रही है लेकिन पर्यावरणीय असंतुलन