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उत्तरकाशी जिला
यहाँ आज भी जिन्दा है जल संस्कृति
Posted on 22 Nov, 2018 07:45 AMप्रकृति प्रदत्त ‘पानी’ अमूल्य है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पृथ्वी पर जैविक विकास की वजह भी पानी ही है। परन्तु पानी के अतिदोहन ने भारत ही नहीं विश्व के कई देशों को भयावह जल संकट से रूबरू होने पर मजबूर कर दिया है।रूपीन-सुपीन घाटी, एक प्राकृतिक विरासत
Posted on 04 Nov, 2018 12:18 PMवैसे तो पूरा उत्तराखण्ड प्राकृतिक सुन्दरता का भण्डार है। पर बात जब उत्तरकाशी की आती है तो मानों प्रकृति ने सबसे अधिक नेमते बक्शी हों। उत्तरकाशी मुख्यालय में विख्यात काशी विश्वनाथ मन्दिर है तो उसके बाईं ओर गंगा-भागीरथी कल-कल करती धारा हिन्दू संस्कृति की ध्वजवाहक बनी हुई हैं। यही नहीं, इसी जनपद में यमुना का भी उद्गम स्थल है।भागीरथी में मलबा डालने पर दो करोड़ का जुर्माना
Posted on 03 Nov, 2018 12:53 PM
उत्तरकाशीः राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने भागीरथी नदी में ऑलवेदर रोड का मलबा डालने से हुए नुकसान की भरपाई को कार्यदायी कम्पनी नेशनल हाइवेज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल) पर दो करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही ऑलवेदर रोड निर्माण के लिये जरूरी दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं।
जल संरक्षण और नगदी फसल से आजीविका
Posted on 13 Aug, 2018 06:50 PMउत्तराखण्ड, हिमालय का ऐसा राज्य है, जहाँ के लोग मिश्रित खेती करते आये हैं। आजादी की लड़ाई और फौज में सेवा प्राप्त करने के बाद इस राज्य के लोगों में पलायन की प्रवृत्ति सर्वाधिक बढ़ी है। फिर भी जो लोग घर-गाँव में मौजूद हैं वे अपनी खेती के कार्यों को पूर्वानुसार ही करते आये हैं। राज्य का ऐसा क्षेत्र उत्तरकाशी जनपद में ही दिखता है क्योंकि यहाँ पलायन नाम मात्र का ही है। कैसे यहाँ के लोग अपनी माटी और
थमने का नाम नहीं ले रही आफत की बारिश
Posted on 29 Jul, 2018 01:59 PMलगातार हो रही बारिश के कारण केदारनाथ में भी हालात बदतर होने लगे हैं। बारिश के कारण जहाँ केदारनाथ यात्रा प्
क्यों धधक रहे हैं जंगल
Posted on 09 Jun, 2018 05:34 PMउत्तराखण्ड के पहाड़ों में आग लगने की घटनाएँ हर साल सुर्खियाँ बटोरती हैं। इससे जहाँ बड़ी संख्या में पेड़ों, जीव जन्तुओं और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है, वहीं वायु प्रदूषण की समस्या और तपिश क्षेत्र को अपनी जद में ले लेती है। हाल के वर्षों में जंगल में आग लगने की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। इन घटनाओं की वजह और समाधान जानने के लिये भागीरथ और वर्षा सिंह ने स्थानीय जनप्रतिनि
रावण सुनाए रामायण
Posted on 28 Jun, 2013 09:46 AMसनातन धर्म से भी पुराना एक और धर्म है। वह है नदी धर्म। गंगा को बचाने की कोशिश में लगे लोगों को पहले इस धर्म को मानना पड़ेगा।
हमारे समाज ने गंगा को मां माना और ठेठ संस्कृत से लेकर भोजपुरी तक में ढेर सारे श्लोक मंत्र, गीत, सरस, सरल साहित्य रचा। समाज ने अपना पूरा धर्म उसकी रक्षा में लगा दिया। इस धर्म ने यह भी ध्यान रखा कि हमारे धर्म, सनातन धर्म से भी पुराना एक और धर्म है। वह है नदी धर्म। नदी अपने उद्गम से मुहाने तक एक धर्म का, एक रास्ते का, एक घाटी का, एक बहाव का पालन करती है। हम नदी धर्म को अलग से इसलिए नहीं पहचान पाते क्योंकि अब तक हमारी परंपरा तो उसी नदी धर्म से अपना धर्म जोड़े रखती थी। पर फिर न जाने कब विकास नाम के एक नए धर्म का झंडा सबसे ऊपर लहराने लगा। बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। प्रकृति का कैलेंडर और हमारे घर-दफ्तरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर/काल निर्णय/पंचाग को याद करें बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। हमारे कैलेंडर/संवत्सर के पन्ने एक वर्ष में बारह बार पलट जाते हैं। पर प्रकृति का कैलेंडर कुछ हजार नहीं, लाख करोड़ वर्ष में एकाध पन्ना पलटता है। आज हम गंगा नदी पर बात करने यहां जमा हुए हैं तो हमें प्रकृति का, भूगोल का यह कैलेंडर भूलना नहीं चाहिए। पर करोड़ों बरस के इस कैलेंडर को याद रखने का यह मतलब नहीं कि हम हमारा आज का कर्तव्य भूल बैठें। वह तो सामने रहना ही चाहिए।
गंगा मैली हुई है। उसे साफ करना है। सफाई की अनेक योजनाएं पहले भी बनी हैं। कुछ अरब रुपए इसमें बह चुके हैं- बिना कोई परिणाम दिए। इसलिए केवल भावनाओं में बह कर हम फिर ऐसा कोई काम न करें कि इस बार भी अरबों रुपयों की योजनाएं बनें और गंगा जस की तस गंदी ही रह जाए।
बेटे-बेटियां जिद्दी हो सकते हैं। कुपुत्र-कुपुत्री हो सकते हैं पर अपने यहां प्राय: यही तो माना जाता है कि माता, कुमाता नहीं होती, तो जरा सोचें कि जिस गंगा मां के बेटे-बेटी उसे स्वच्छ बनाने कोई 30-40 बरस से प्रयत्न कर रहे हैं - वहां भी साफ क्यों नहीं होती।