जयसिंह रावत

जयसिंह रावत
जापान से सीखने की जरूरत
Posted on 04 May, 2015 03:30 PM
भूकम्प कभी किसी को नहीं मारता, फिर भी हम डरते हैं उससे। इंसान मरता है उस मकान से, जिसे वह अपने आश्रय के लिए बनाता है। अगर हम प्रकृति के साथ जीना सीखें तो क्या भूकम्प या क्या बाढ़? हमें कोई भी आपदा कैसे मार सकती है?
मैला होता हिमालय
Posted on 21 Sep, 2012 03:55 PM
हिमालय की चोटियां इंसानी दखल की वजह से प्रदूषित होती जा रही हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर लगातार तापमान बढ़ रहा है और इस क्षेत्र के ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं या पीछे हट रहे हैं। स्थिति को जल्द ही काबू नहीं किया गया तो खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं। मामले का जायजा ले रहे हैं जयसिंह रावत।

हिमालय के सारे ग्लेशियर एक साथ नहीं सिकुड़ रहे हैं। सिकुड़ने वाले ग्लेशियरों के पीछे खिसकने की गति भी एक जैसी नहीं है और न ही एक ग्लेशियर की गति एक जैसी रही है। अगर ग्लेशियर के पिघलने का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग होता तो यह गति घटती और बढ़ती नहीं। हिमालय में सत्तर फीसद से अधिक ग्लेशियर पांच वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाले हैं और ये छोटे ग्लेशियर ही तेजी से गायब हो रहे हैं। मशहूर ग्लेशियर विशेषज्ञ डीपी डोभाल भी अलग-अलग ग्लेशियर के पीछे हटने की अलग-अलग गति के लिए लोकल वार्मिंग को ही जिम्मेदार मानते हैं।

जब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर जबरदस्त यातायात जाम की स्थिति आ गई हो और एवरेस्ट और फूलों की घाटी जैसे अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में हजारों टन कूड़ा-कचरा जमा हो रहा हो तो हिमालय और उसके आवरण-ग्लेशियरों की सेहत की कल्पना की जा सकती है। अब तो कांवड़ियों का रेला भी गंगाजल के लिए सीधे गोमुख पहुंच रहा है, जबकि लाखों की संख्या में छोटे-बड़े वाहन गंगोत्री और सतोपंथ जैसे ग्लेशियरों के करीब पहुंच गए हैं। हिमालय के इस संकट को दरकिनार कर अगर अब भी हमारे पर्यावरण प्रेमी ग्लोबल वार्मिंग पर सारा दोष मढ़ रहे हैं तो फिर वह सचाई से मुंह मोड़ रहे हैं। एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के चरण समुद्रतल से करीब 8,850 मीटर की ऊंची एवरेस्ट की चोटी पर पड़ने के बाद से अब तक तीन हजार से अधिक पर्वतारोही वहां अपना झंडा गाड़ जुके हैं।
आपदाओं से अर्थतंत्र हो रहा तहस-नहस
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में बाढ़ के कारण हर साल औसतन 75 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है, 1600 लोगों की जान चली जाती हैं, तथा फसलों, घरों और सार्वजनिक सुविधाओं को औसतन 1805 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
Posted on 27 Oct, 2023 02:54 PM

प्राकृतिक आपदाएं वास्तव में प्राकृतिक घटनाएं हैं, जो प्रकृति के स्वभाव में हैं, और उन्हें रोका नहीं जा सकता। इन घटनाओं की बढ़ती फ्रीक्वेंसी का कारण प्रकृति के साथ अनावश्यक और बेतहाशा छेड़छाड़ के साथ ही प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर नहीं चलना भी है। यह सत्य आपदाओं से बचाव का रास्ता भी है। इसलिए संभावित खतरों और उनसे निपटने के तरीकों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना जरूरी है। कुछ आपदाएं ऐसी हैं, जि

आपदाओं से अर्थतंत्र हो रहा तहस-नहस
धंसता गया जोशीमठ, आंखें मूंदे रहीं सरकारें!
भारत-चीन सीमा के निकट देश का अंतिम शहर जोशीमठ तबाही के कगार पर है। कुछ समय से जोशीमठ के अलकनन्दा नदी की ओर फिसलने की गति अचानक तेज हो गयी है। अभी भी सरकारों की प्राथमिकता जोशीमठ को बचाने की नहीं, बल्कि कॉमन सिविल कोड और धर्मान्तरण कानून बनाने की दिखाई पड़ती है।
Posted on 20 Oct, 2023 11:17 AM

विख्यात स्विस भूवैज्ञानिक अर्नोल्ड हीम और उनके सहयोगी आगस्टो गैस्टर ने 1936 में मध्य हिमालय की भूगर्वीय संरचना पर जब पहला अभियान चलाया था, तो अपने यात्रा वृतान्त ‘द थ्रोन ऑफ़ द गॉड (1938) और शोध ग्रन्थ ‘सेन्ट्रल हिमालया: जियोलोजिकल आबजर्वेशन्स ऑफ़ द स्विस एक्सपीडिशन (1939) में उन्होंने टैक्टोनिक दरार व मुख्य केन्द्रीय भ्रंश की मौजूदगी को चिन्हित करने के साथ ही चमोली गढ़वाल के हेलंग से लेकर तपोव

दरकती हुई जमीन,pc,सर्वोदय जगत  
अलकनंदा की यह अनदेखी
Posted on 02 Sep, 2010 08:29 PM

प्रतिमत

 

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