राजस्थान

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पर्यावरण क्रांति के प्रेरक थे श्रीकृष्ण
Posted on 09 Aug, 2015 12:27 PM हमारे वेदों में ‘वनस्पति शांति:’ की बात की गयी है। हिमालय को
मेवात में जोहड़
Posted on 09 Aug, 2015 10:31 AM महात्मा गाँधी का ‘मेवात में जोहड़’ पुस्तक महात्मा द्वारा अपने जीते जी मेवात के लिए किए गए समर्पण की दास्तान है। उन्होंने यह मान लिया था, कि मेरे शरीर से ज्यादा जरूरी है भारत में सद्भावना के साथ जीना। इसे स्थापित करने हेतु समर्पण की जरूरत है। जैसे क्षत्राणियाँ अपने राज्य को बचाने हेतु अपने पति को निर्मोही बनाकर युद्ध हेतु जौहर करती थीं। उन्हेें यदि यु
राजस्थान की गंगा चम्बल को भी नहीं मिल रहा है सम्बल
Posted on 05 May, 2015 03:13 PM गंगा सफाई अभियान के तहत इसकी मुख्य सहायक नदी चम्बल को भी अभियान में शामिल किया गया है, लिहाजा करोड़ो लोगों की प्यास बुझाने वाली इस नदी में होने वाले इंसानी दखलअन्दाजी पर गौर करने का वक्त आ गया है।
लालच, अनियमितता और एक नदी की लूट
Posted on 19 Apr, 2015 04:45 PM जयपुर। 1727 में बसा यह शहर बनावट की दृष्टि से दुनिया के सुनियोजित शहरों में अहम स्थान रखता था। यह शहर पारिस्थितिकी विज्ञान के अनुरूप बहुत बढ़िया ढंग से बसाया गया था। शहर के उत्तरी तरफ नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर कभी घने जंगल होने से मिट्टी का कटाव नहीं होता था। इन्हीं पहाड़ियों की तलहटी में आथुनी कुण्ड से एक नदी बहा करती थी, जिसकी धारा दक्षिण की ओर मोड़ खाती हुई ढूढ़ नदी और ढूढ़ नदी राजस्थान की मुख्य नदी बनास में मिल जाती थी।

इसी जलधारा को इतिहासकारों ने द्रव्यवती नदी कहा है। यह 50 किलोमीटर लम्बी नदी थी, जो कालान्तर में पहाड़ियों के नंगे होने के चलते छोटी होती गई। बाद में इसके किनारे अमानीशाह नाम के फकीर की मजार बनी तो द्रव्यवती नदी अमानीशाह नाला कहलाने लगी। द्रव्यवती उर्फ अमानीशाह का यही नाला जयपुर के पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत रहा है।
बेयरफुट कॉलेज ने दिखाई जल-संरक्षण की राह
Posted on 14 Apr, 2015 11:22 AM

अनेक स्कूलों के जल संकट का टिकाऊ समाधान मिला


बेयरफुट कालेज के जल-संचयन के महत्त्वपूर्ण कामों में से एक है विद्यालयों के लिये भूमिगत पानी संग्रहण का। इस प्रयास से अब उन सैंकड़ों बच्चों की प्यास बुझती है जो पहले पानी की तलाश में पड़ोस के गाँवों में भटकते रहते थे या फिर कभी-कभी प्यासे ही रह जाते थे। साथ ही उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की गुणवत्ता काफी खराब थी, वहाँ अब बच्चों की उपस्थिति में काफी सुधार हुआ है। इससे पानी से होने वाली बीमारियों पर भी रोक लगी है। पानी के संग्रहण के लिये टाँकों की उपलब्धता से अब विद्यालयों में स्वच्छता बनाए रखने में बड़ी मदद मिलती है।

अजमेर जिले (राजस्थान) में स्थित बेयरफुट कॉलेज संस्थान के प्रयासों से न केवल इस जिले में जल-संरक्षण के महत्त्वपूर्ण प्रयास हुए हैं, अपितु देश-विदेश के अनेक कार्यकर्ताओं को यहाँ जल-संरक्षण का प्रशिक्षण भी प्राप्त हुआ जिससे वे दूर-दूर के अनेक अन्य क्षेत्रों में भी जल-संरक्षण की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकें।

बेयरफुट काॅलेज के जल-संचयन सम्बन्धी तमाम कामों की शुरुआत उसके खुद के तिलोनिया-स्थित परिसर से होती है। सावधानी से डिज़ाइन किए गए पाइपों की मदद से छतों के ऊपर जमा हुए वर्षा के पानी को भूमि के अन्दर टाँकों में संग्रहित किया जाता है। आस-पास के बहते वर्षाजल को दिशा-निर्देशित किया जाता है, थोड़े समय के लिये रोका जाता है और फिर एक खुले कुएँ में गिरा दिया जाता है।
कम खर्च में अधिक लोगों की प्यास बुझाने वाले कार्य
Posted on 12 Apr, 2015 03:33 PM

जयपुर व अजमेर जिलों से रिपोर्ट


जल-संकट से त्रस्त गाँवों में वर्षा के जल को सावधानी से संरक्षित किया जाए और इस कार्य को पूरी निष्ठा व ईमानदारी से गाँववासियों की नज़दीकी भागीदारी से किया जाए तो जल-संकट दूर होते देर नहीं लगती है। इस उपलब्धि का जीता-जागता उदाहरण है अजमेर जिले की बढ़कोचरा पंचायत जिसमें बेयरफुट कालेज के जवाजा फील्ड सेंटर के आठ जल-संरक्षण कार्यों ने जल-संकट को जल-प्रचुरता में बदल दिया है। इसके साथ यहाँ की पंचायत ने भी कुछ सराहनीय जल-संरक्षण कार्य विशेषकर मनरेगा के अन्तर्गत किए हैं।

कोरसीना पंचायत व आसपास के कुछ गाँव पेयजल के संकट से इतने त्रस्त हो गए थे कि कुछ वर्षों में इन गाँवों के अस्तित्व का संकट उत्पन्न होने वाला था। दरअसल राजस्थान के जयपुर जिले (दुधू ब्लाक) में स्थित यह गाँव सांभर झील के पास स्थित होने के कारण खारे व लवणयुक्त पानी के असर से बहुत प्रभावित हो रहे थे। सांभर झील में नमक बनता है पर इसका प्रतिकूल असर आसपास के गाँवों में खारे पानी की बढ़ती समस्या के रूप में सामने आता रहा है।

गाँववासियों व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण ने खोजबीन कर पता लगाया कि पंचायत के पास के पहाड़ों के ऊपरी क्षेत्र में एक जगह बहुत पहले किसी राजा-रजवाड़े के समय एक जल-संग्रहण प्रयास किया गया था। इस ऊँचे पहाड़ी स्थान पर जल-ग्रहण क्षेत्र काफी अच्छा है व कम स्थान में काफी पानी एकत्र हो जाता है। अधिक ऊँचाई के कारण यहाँ सांभर झील के नमक का असर भी नहीं पहुँचता है।
निगम ने बना दी द्रव्यवती नदी के बीच सड़क
Posted on 06 Apr, 2015 03:31 PM भू-माफिया सक्रिय, बहाव क्षेत्र में अवैध बस्तियाँ
झील संरक्षण प्राधिकरण विधेयक पारित
Posted on 22 Mar, 2015 01:14 PM

आमजन की राय लेने का सुझाव और विपक्ष की आपत्तियाँ दरकिनार
प्रवर समिति को भेजकर खामियाँ दूर करने और कानून लागू करने से पहले आमजन से राय लिए जाने की विपक्ष की आपत्तियों को दरकिनार कर राज्य विधानसभा ने शनिवार को राजस्थान झील (संरक्षण और विकास) प्राधिकरण विधेयक 2015 को ध्वनिमत से पारित कर दिया।

जल के प्रताप को फैलाते राजेन्द्र सिंह
Posted on 01 Feb, 2015 02:11 PM पूर्वी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राजेन्द्र सिंह को ‘जल राणा’ कह के पुकारा जाता है। यह राजेन्द्र सिंह का बेहद निजी उद्यम था कि इस गरीब देहाती क्षेत्र में पानी की संभाल और उसके नतीजे से एक नये चैतन्य का उदय हुआ और आज राजस्थान के प्रत्येक गाँव में पानी के प्रति चेतना का जल स्तर ऊपर उठने लगा है।
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