राजस्थान की गंगा चम्बल को भी नहीं मिल रहा है सम्बल

गंगा सफाई अभियान के तहत इसकी मुख्य सहायक नदी चम्बल को भी अभियान में शामिल किया गया है, लिहाजा करोड़ो लोगों की प्यास बुझाने वाली इस नदी में होने वाले इंसानी दखलअन्दाजी पर गौर करने का वक्त आ गया है।

शिरीष खरे.1. मानवीय दखल से घायल हुई चम्बल
2. प्रवासी होने लगे परिन्दे, पलायन कर रहे जलचर
3. घड़ियाल अभयारण्य से गायब हुए घड़ियाल
4. खनन से चौड़े हुए पाट

अलग-अलग दौर में गंगा को स्वच्छ बनाने के लिये अलग-अलग प्लाॅन बने और इन दिनों गंगा को उसका मौलिक पतित पावनी स्वरूप लौटाने के लिये मौजूदा केन्द्र सरकार नए सिरे से जुटी हुई हैं। गंगा भारत की धरोहर है, लेकिन हर राज्य में एक नदी उसकी पहचान से जुड़ी हुई है।

इसी कड़ी में राजस्थान की गंगा यानी चम्बल भी मानवीय दखल से वीरान होने लगी है। हालांकि गंगा की इस सहायक नदी को भी अभियान से जोड़कर साफ किए जाने का वादा किया गया है, लेकिन मौजूदा हालत बताते हैं कि क्यों चम्बल की सफाई को वरीयता की सूची में आगे रखने की जरूरत है।

राजस्थान देश के नक्शे में सूखा प्रदेश। कल्पनाओं में ही रेत, पठार और दूर-दूर तक सूनापन छा जाता है। जब नजर हाड़ौती यानी कोटा के आसपास के इलाके की हरियाली पर जाता है तो किनारों से टकराती चम्बल नदी के लहरें टकराती हैं। कराईयों में जब उड़ान भरते पक्षी नजर आते हैं, चट्टानों पर घूप सेंकते जलीय जीव दिखाई देते हैं तो यकीनन पलकें झपकाने का मन नहीं करता। सूखे प्रदेश की छवि धूमिल हो जाती है।

कुछ पलों के लिये लगता है कि आप राजस्थान में नहीं किसी वर्षा प्रदेश में हो, जहाँ दूर-दूर तक मयभूमि जैसा कुछ भी दिखाई नहीं देता। अनमोल हरियाली, अद्वितीय सौन्दर्य, आकर्षक परिन्दे, अनगिनत जलीय जीव, जहाँ जल जीवन है, यह चम्बल का सम्बल है। मगर इस प्राकृतिक धरोहर को अब नजर लगने लगी है, मानवीय जीवन से चम्बल घायल होने लगी है।

चम्बल भले ही करोड़ों लोगों को सम्बल दे रही हो, लेकिन इन दिनों चम्बल को सम्बल नहीं मिल पा रहा है। देश की कई नदियों की चिन्ता की जा रही है, मगर इस मुकाबले चम्बल उपेक्षा का शिकार है। चम्बल की चिन्ता किसी को नहीं है।

गंगे में चम्बल


नमामि गंगे अभियान के तहत चम्बल और सहायक नदियों को भी साफ किया जाना है। चम्बल को गंगा की मुख्य सहायक नदी के तौर पर शामिल किया गया है। इस अभियान में बनास, मेज, कालीसिन्ध, क्षिप्रा, पार्वती आदि नदियों को भी शामिल किया गया है। मगर चम्बल को उसे वास्तविक रूप में लाने के लिये बनी सरकारी योजनाओं का ब्यौरा और उसकी ज़मीनी हकीक़त की पड़ताल बताती है कि ऐसे तो गंगा की इस सहायक नदी को ही साफ करने में सौ साल लग जाएँगे।

गुम हो रही चम्बल नदी की गर्जना


कोटा बैराज से पानी छोड़े जाने के बाद चम्बल नदी बेशक उफान मार रही हो, लेकिन अपने तेज बहाव के लिये विख्यात चम्बल नदी की धार बीते 50 साल में इस साल सबसे कम दर्ज की गई। चम्बल का चिर अट्टहास (पानी की गर्जना) अब अतीत की बात है।

जल कुण्ड उथले पड़ गए। नदी के टापू सिमट गए। जल की उपलब्धता में लगातार और हालिया कमी के चलते सरकार सकते में है। इस वर्षा नदी के बहाव की गति और औसत जलस्तर में सर्वाधिक कमी दर्ज की गई है। 9 जुलाई को चम्बल नदी का बहाव मात्र 2-32 मीटर प्रति सेकेंड दर्ज किया गया।

केन्द्रीय जल आयोग के मुताबिक चम्बल में पानी की न्यूनतम औसत धार (रफ्तार) जून 2014 में 0-40 मीटर/प्रति सेकेंड रही।

अभी तक के रिकार्ड में यह गिरावट सर्वाधिक है। चम्बल का अधिकतम जल बहाव का औसत 2-58 मीटर प्रति सेकेंड पिछले दस साल में देखा ही नहीं गया। 9 जुलाई को उफान मार रही चम्बल में अधिकतम जल बहाव की गति मात्र 2-32 मीटर प्रति सेकेंड दर्ज की गई है।

जानकारों की मानें तो जल बहाव कुंद होने से चम्बल में जल की उपलब्धता में कमी आई है। ये उपलब्धता निरन्तर घटती जा रही है। जून 2014 में अभी तक का सर्वाधिक न्यूनतम जल स्तर 119-29 मीटर रहा। इससे पहले जून 2006 में न्यूनतम जलस्तर 119-70 मीटर था। इस दौरान आठ साल में पचास सेंटीमीटर पानी घटा है।

साठ के दशक में चम्बल का न्यूनतम जलस्तर 125-130 मीटर था। जबकि अन्तिम दो दशकों में स्थाई गिरावट 4 फीट दर्ज की गई। वर्ष 2014 में गर्मियों के समय सबलगढ़ से लेकर राजघाट तक चम्बल की अधिकतम औसत जल गहराई 12-60 मीटर रही। जबकि न्यूनतम गहराई केवल 16 सेंटीमीटर रही है। जो अब तक की न्यूनतम है।

केन्द्रीय जल आयोग के मुताबिक जल की उपलब्धता का सर्वाधिक बेहतर आँकड़ा राजघाट पुल पर देखा गया हाई फ्लड लेवल है। वर्ष 1996 में इसे 145-540 मीटर दर्ज किया गया। जो नदी सतह से 30 मीटर ऊँचा है। तब से लेकर आज तक चम्बल नदी में आया हर उफान इस ऊँचाई से कम ही रहा है।

अकेले कोटा में 22 नाले गिरते हैं


चम्बल के किनारे दस लाख से ज्यादा आबादी वाले कोटा से करीब 22 नाले गिरते हैं, जो चम्बल को प्रदूषित बना रहे हैं। नदी का पानी मैला हो गया है। हालांकि इसके लिये सीवेज शुद्धिकरण की योजना भी लाई गई है, लेकिन तीन साल से चल रहा प्रोजेक्ट अभी पूरा नहीं हुआ है।

यही नहीं, कई जगह कपड़ों की धुलाई के लिये अवैध घाट बना दिए गए हैं, जिन पर सरकार की कोई सुध नहीं है। चम्बल में पॉल्युशन के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने चम्बल को स्वच्छ व प्रदूषण रहित करने के लिये दिए गए आदेशों की पालना करने के लिये कहा गया है। मामले में प्रार्थी को अदालत ने कहा है कि वे देखें सम्बन्धित विभाग आदेशों की पालना कर रहे हैं या नहीं।

मिट्टी खनन बड़ा खतरा


राजस्थान के करौली, धौलपुर, कोटा और मध्य प्रदेश के महू, श्योपुर, मुरैना, मन्दसौर हर जगह चम्बल के पाटों की चौड़ाई बढ़ रही है। दिन रात चम्बल के किनारों पर दो राज्यों के खनन माफिया सक्रिय हैं।

बजरी खनन पर निगाह


साठ के दशक में चम्बल का न्यूनतम जलस्तर 125-130 मीटर था। जबकि अन्तिम दो दशकों में स्थाई गिरावट 4 फीट दर्ज की गई। वर्ष 2014 में गर्मियों के समय सबलगढ़ से लेकर राजघाट तक चम्बल की अधिकतम औसत जल गहराई 12-60 मीटर रही। जबकि न्यूनतम गहराई केवल 16 सेंटीमीटर रही है। जो अब तक की न्यूनतम है। केन्द्रीय जल आयोग के मुताबिक जल की उपलब्धता का सर्वाधिक बेहतर आँकड़ा राजघाट पुल पर देखा गया हाई फ्लड लेवल है।करौली और कोटा चम्बल के किनारों में अवैध बजरी खनन के केन्द्र बन गए हैं। लम्बे समय से किनारों की बजरी निकाली जा रही है, जिससे जलीय जीवों के आवास समाप्त हो रहे हैं, किनारे गहरे किए जा रहे हैं, जिससे जीव पलायन करने लगे हैं।

यह है हाल


बारह महीने बहने वाली चम्बल के पानी से करोड़ों लोगों की प्यास बुझ रही है। लाखों किसानों के खेत भी सिंचित हो रहे हैं। कोटा बरसों से इसका पानी पी रहा है। प्रदेश में भीलवाड़ा, बूँदी, भरतपुर, और धौलपुर को भी इसी का पानी मिल रहा है। इसके अलावा अब कई और शहरों को भी इसी का पानी पिलाने के लिये योजनाएँ या तो काम कर रही हैं, या बन रही हैं।

जलीय जीवों पर खतरा


चम्बल नदी में प्रदूषण के कारण घड़ियाल और डॉल्फिन समेत सभी जलीय वन्यजीवों की जान पर खतरा मँडरा रहा है। मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल पहुँची पीपुल फोर एनमल्स की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने मामले में सम्बन्धित विभागों से पूछा कि चम्बल में ऐसे कितने पॉइंट हैं जहाँ से गन्दे नाले और प्रदूषित पानी चम्बल में गिरता है।

अदालत ने याचिकाकर्ता पीपुल फॉर एनीमल्स के प्रदेशाध्यक्ष बाबूलाल जाजू और उनके वकील महेन्द्र सिंह कच्छावा को कहा है कि वे मामले में चम्बल का दौरा कर रिपोर्ट तैयार करें कि सम्बन्धित विभाग मामले में ज़मीनी स्तर पर कोई कार्रवाई कर रहे हैं या नहीं। यह रिपोर्ट अगली सुनवाई पर 8 मई को अदालत में पेश की जाएगी।

चम्बल मामले को लेकर एनजीटी की ओर से त्वरित सुनवाई होने के बाद अब इस नदी में प्रदूषण कम होने की उम्मीद जगी है। अगर अदालती आदेशों की पालना करने में सभी सम्बन्धित विभाग कारगर रहते हैं तो जल्दी ही चम्बल प्रदूषण के चंगुल से मुक्त होकर स्वच्छ नदियों की फेहरिस्त शामिल हो सकेगी।

उदबिलाव हुआ विलुप्त


चम्बल में पाए जाने वाले जलीय स्तनपाई जीव की दो प्रजातियों में से एक ओटर (उदबिलाव) विलुप्त हो गई है। ओटर को अन्तिम बार वर्ष 2007 में देखा गया था। चम्बल अभयारण्य द्वारा वर्ष 2007 में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार सिर्फ 4 ओटर ही नजर आए थे, लेकिन पिछले 6 साल के सर्वेक्षण के दौरान ओटर म.प्र. की सीमा में कहीं दिखाई नहीं दिया।

यमुना में घुल रहा रसायन चम्बल के घड़ियालों के लिये खतरा


औद्योगिक अपशिष्ट से यमुना में घुल रहे रसायनों की वजह से अब उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित राष्ट्रीय चम्बल अभ्यारण्य के घड़ियालों पर भी मौत का खतरा मँडराने लगा है। हाल ही में इसी की वजह से घड़ियाल के एक बच्चे की मौत के बाद अभ्यारण्य प्रशासन में भी बेचैनी बढ़ गई है।

गौरतलब है कि चम्बल नदी में राजस्थान के कोटा से पचनदा इटावा तक घड़ियालों के संरक्षण की परियोजना साल 1980 से चल रही है। इस क्षेत्र को राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव विहार क्षेत्र घोषित किया गया है। हाल ही में मप्र के मुरैना सीमा के कछपुरा घाट पर एक घड़ियाल की मौत हो गई। अभयारण्य सूत्रों के अनुसार घड़ियाल की मौत कवई नाम की जहरीली मछली खाने से हुई है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि चम्बल नदी में यह मछली नहीं पाई जाती। लेकिन यह हो सकता है कि यमुना के गन्दे पानी में वह पनप गई हो।

मत्स्याखेट बेलगाम


चम्बल में मत्स्याखेट की हालत यह है कि कई जगह तो किनारों पर बाजार लगते हैं। कोटा में यदि चम्बल में कुछ देर सवारी करें तो कोनों पर खड़ी नावें और जाल नजर आते हैं। कई जगह तो शिकारी आर-पार तक जाल बाँध देते हैं। मछलियाँ ही नहीं, यहाँ कछुआ और अन्य जलचरों का भी शिकार किया जाता है। इसलिये कहीं ज्यादा जलचर हैं तो कही जलचर न के बराबर दिखते हैं। इससे जलीय विविधता प्रभावित हो रही है। जैसे कि कोटा में डाल्फिन और कछुए बहुत दिखते थे, लेकिल अब नहीं दिखते।

विशेषज्ञों की राय


गंगा सफाई अभियान में चम्बल को शामिल करने के साथ ही अब इस अभियान में हो रहे खर्च की कड़ाई से निगरानी की व्यवस्था हो, इसमें तकनीक विशेषज्ञ रखे जाएँ।

1. प्रदूषण नियन्त्रण पर केन्द्रित होने की बजाय समस्या को समग्र तौर पर केन्द्र सरकार देखें।
2. चम्बल में भी बड़े बाँधों के निर्माण पर रोक लगे।
3. भूजल स्तर संरक्षण का प्रबन्ध हो।
4. वर्षाजल संरक्षण का कड़ाई से पालन हो।
5. वैकल्पिक बिजली का उत्पादन हो।
6. माइक्रो डैम बनाए जाएँ।
7. चम्बल का अलग से प्लाॅन बनाया जाए।

माँ की गाथा


यह कोटा ही नहीं बल्कि राजस्थान के हाड़ौती इलाके के लिये जीवनदायनी नदी है। बूँदी जिले के भी कई गाँव में चम्बल की नहरों से सिंचाई होती है। कोटा के गोदावरी धाम में गंगा आरती की तर्ज पर रोज़ाना चम्बल माता की आरती की जाती है। चम्बल पर कई लोकगीत भी हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर बहने वाली चम्बल का उद्गम मध्य प्रदेश के इन्दौर के पास की पहाड़ियों में है। यहाँ से शुरू होकर यह तीन राज्यों में बहती है।

चम्बल 960 किलोमीटर की सफर तय करके यमुना में मिल जाती है। यह भानपुरा गाँधी सागर, राजस्थान के रावतभाटा, कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर होती हुई उत्तर प्रदेश के इटावा में चम्बल यमुना में मिल जाती है। म.प्र. और राजस्थान में चम्बल पर गाँधी सागर, राणाप्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बाँध है।

चम्बल के 625 वर्ग किलोमीटर में घड़ियाल अभयारण्य है। जिस तरह चम्बल यमुना में मिलकर नया जीवन देती है, उसी तरह चम्बल को कोटा के बूढ़ीदीत के निकट कालीसिन्ध और सवाईमाधोपुर के निकट बनास नदी का सम्बल मिलता है। इससे पानी का प्रवाह और बढ़ जाता है।

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Post By: RuralWater
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