जयपुर व अजमेर जिलों से रिपोर्ट
जल-संकट से त्रस्त गाँवों में वर्षा के जल को सावधानी से संरक्षित किया जाए और इस कार्य को पूरी निष्ठा व ईमानदारी से गाँववासियों की नज़दीकी भागीदारी से किया जाए तो जल-संकट दूर होते देर नहीं लगती है। इस उपलब्धि का जीता-जागता उदाहरण है अजमेर जिले की बढ़कोचरा पंचायत जिसमें बेयरफुट कालेज के जवाजा फील्ड सेंटर के आठ जल-संरक्षण कार्यों ने जल-संकट को जल-प्रचुरता में बदल दिया है। इसके साथ यहाँ की पंचायत ने भी कुछ सराहनीय जल-संरक्षण कार्य विशेषकर मनरेगा के अन्तर्गत किए हैं।
कोरसीना पंचायत व आसपास के कुछ गाँव पेयजल के संकट से इतने त्रस्त हो गए थे कि कुछ वर्षों में इन गाँवों के अस्तित्व का संकट उत्पन्न होने वाला था। दरअसल राजस्थान के जयपुर जिले (दुधू ब्लाक) में स्थित यह गाँव सांभर झील के पास स्थित होने के कारण खारे व लवणयुक्त पानी के असर से बहुत प्रभावित हो रहे थे। सांभर झील में नमक बनता है पर इसका प्रतिकूल असर आसपास के गाँवों में खारे पानी की बढ़ती समस्या के रूप में सामने आता रहा है।गाँववासियों व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण ने खोजबीन कर पता लगाया कि पंचायत के पास के पहाड़ों के ऊपरी क्षेत्र में एक जगह बहुत पहले किसी राजा-रजवाड़े के समय एक जल-संग्रहण प्रयास किया गया था। इस ऊँचे पहाड़ी स्थान पर जल-ग्रहण क्षेत्र काफी अच्छा है व कम स्थान में काफी पानी एकत्र हो जाता है। अधिक ऊँचाई के कारण यहाँ सांभर झील के नमक का असर भी नहीं पहुँचता है। इन विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए ही इस ऊँचे स्थान पर पानी रोकने का प्रयास बहुत पहले पूर्वजों ने किया होगा। पर अब यह टूट-फूट गया था व बाँध स्थल में सिल्ट भर गई थी।
सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण व गाँववासियों ने काफी प्रयास किया कि यहाँ नए सिरे से पानी रोकने के लिये जरूरी निर्माण कार्य किया जाए। पर काफी प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिली। इस बीच एक सड़क दुर्घटना में लक्ष्मीनारायण जी का देहान्त हो गया।
इस स्थिति में पड़ोस के गाँवों में कई सार्थक कार्यों में लगी संस्था बेयरफुट कालेज ने यह निर्णय लिया कि लक्ष्मी नारायण के इस अधूरे कार्य को जैसे भी हो अवश्य पूरा करना है। यह सपना पूरा होता नजर आया जब बेलू वाटर नामक संस्थान ने इस कोरसीना बाँध परियोजना के लिये 18 लाख रुपए का अनुदान देना स्वीकार कर लिया।
इस छोटे बांध की योजना में न तो कोई विस्थापन है न पर्यावरण की क्षति। अनुदान की राशि का अधिकांश उपयोग गाँववासियों को मजदूरी देने के लिये ही किया गया। मजदूरी समय पर मिली व कानूनी रेट पर मिली। इस तरह गाँववासियों की आर्थिक जरूरतें भी पूरी हुईं तथा साथ ही ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र में पानी रोकने का कार्य तेजी से आगे बढ़ने लगा।
जल ग्रहण क्षेत्र का उपचार कर इसकी हरियाली बढ़ाई गई। खुदाई से जो मिट्टी बालू मिली उसका उपयोग मुख्य बाँध स्थल से नीचे और मेड़बंदी के लिये भी किया गया ताकि आगे भी कुछ पानी रुक सके।
कोरसीना बाँध के पूरा होने के एक वर्ष बाद ही इसके लाभ के बारे में स्थानीय गाँववासियों ने बताया कि इससे लगभग 50 कुँओं का जलस्तर ऊपर उठ गया। अनेक हैण्डपम्पों व तालाबों को भी लाभ मिला।
कोरसीना के एक मुख्य कुएँ से पाईपलाइन अन्य गाँवों तक पहुँचती है जिससे पेयजल लाभ अनेक अन्य गाँवों तक भी पहुँचता है।
यदि यह परियोजना अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर पाई तो इसका लाभ 20 गाँवों, 13874 गाँववासियों व 79850 खेती-किसानी से जुड़े पशुओं को भी मिल सकता है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव-जन्तुओं, पक्षियों की जो प्यास बुझेगी वह अलग है।
यदि जल-संकट से त्रस्त गाँवों में वर्षा के जल को सावधानी से संरक्षित किया जाए और इस कार्य को पूरी निष्ठा व ईमानदारी से गाँववासियों की नज़दीकी भागीदारी से किया जाए तो जल-संकट दूर होते देर नहीं लगती है। इस उपलब्धि का जीता-जागता उदाहरण है अजमेर जिले की बढ़कोचरा पंचायत जिसमें बेयरफुट कालेज के जवाजा फील्ड सेंटर के आठ जल-संरक्षण कार्यों ने जल-संकट को जल-प्रचुरता में बदल दिया है। इसके साथ यहाँ की पंचायत ने भी कुछ सराहनीय जल-संरक्षण कार्य विशेषकर मनरेगा के अन्तर्गत किए हैं।
जवाजा फील्ड सेंटर के समन्वयक हंसस्वरूप बताते हैं, “जल-संरक्षण के बारे में गाँववासियों का व्यावहारिक ज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। अतः उनके द्वारा दिए प्रस्ताव को आगे बढ़ाकर, उनकी पूरी भागीदारी प्राप्त कर, उनकी समिति की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपते हुए ही हम आगे बढ़ते हैं। हमारे अधिकांश कार्यों में स्थानीय मिट्टी-पत्थर का ही कार्य होता है जिससे परियोजना की लागत का लगभग 90 से 95 प्रतिशत हिस्सा गाँववासियों को ही मजदूरी के रूप में प्राप्त हो जाता है।”
सेंटर की प्रमुख कार्यकर्ता सुशीला देवी ने बताया, “इन कार्यों पर अधिक मजदूरी महिलाएँ ही करती हैं। वैसे कहाँ पानी रोकना उचित होगा इस तरह के मुद्दों पर सबसे अच्छी व्यवहारिक जानकारी भी गाँव की महिलाएँ ही देती है। वही तो पानी का सबसे अधिक उपयोग वर्ष भर करती हैं। उन्हें जल संरक्षण सम्बन्धी बहुत अच्छी व्यावहारिक समझ होती है।”
पालूना एनीकट काफी ऊँचाई पर बना है। इसके पानी के विशाल विस्तार से इस पहाड़ी पर बहुत सुन्दर दृश्य उपस्थित होता है। इसमें सीमेंट व पत्थर की पक्की दीवार बनाकर पानी को रोका गया है। केवल सीमेंट खरीदना पड़ा, पत्थर तो यही पर उपलब्ध थे। यह सीमेंट यहाँ ऊँटों पर लादकर पहुँचाया गया। 15 फीट से अधिक पानी आने पर ओवरफ्लो का पानी एक तालाब की ओर बढ़ता है। इसके आगे लगभग एक सौ छोटे-छोटे चैक डैम बनाए गए हैं जो बहते पानी के वेग को कम कर मिट्टी व जल संरक्षण में तथा पानी के रीचार्ज में और सहायता करते हैं।
हंसस्वरूप बताते हैं कि उन्हें ऐसी कम लागत की, स्थानीय संसाधनों पर आधारित परियोजनाएँ अच्छी लगती हैं जिनमें आई लागत का बड़ा हिस्सा गाँववासियों को मजदूरी के रूप में मिल जाता है।
इस तरह की उनकी गाँववासियों के नज़दीकी सहयोग से कार्यान्वित परियोजनाएँ बहुत सफल रही हैं और चर्चा का विषय बनी हैं। इनकी एक वजह यह है कि इस संस्था ने अनेक वर्षों के निष्ठावान कार्य से गाँववासियों का विश्वास प्राप्त किया है और इस बजट में गाँववासियों को बेहतर सहयोग भी मिलता है।
चुन्नी सिंह का मानना है कि बड़कोचरा का जल-संरक्षण कार्य एक मॉडल के रूप में सामने आया है और लोग पूछने लगे हैं कि जो यहाँ सम्भव है वह अन्यत्र क्यों नहीं है। बेयरफुट कालेज के समन्वयक रामकरण ने कहा कि जब कोई बहुत उपयोगी जल संरक्षण कार्य होता है तो उसका अनुकरणीय असर आसपास के अन्य कार्यों पर भी पड़ता है।
Path Alias
/articles/kama-kharaca-maen-adhaika-laogaon-kai-payaasa-baujhaanae-vaalae-kaaraya
Post By: RuralWater