राजस्थान

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अब ब्राह्मणी और मेज नदी का पानी बुझाएगा प्यास
Posted on 19 May, 2014 09:03 AM

नदियों को जोड़ने की योजना में इस प्रस्ताव की वरीयता तय

यूं जी जहाजवाली
Posted on 06 May, 2014 03:23 PM

संघर्ष से शुरूआत


पहले देवरी-गुवाड़ा में छोटी-छोटी बैठकों का दौर चला। पहले गांवों का अनुशासन जरूरी था। गांव अपना अनुशासन खुद करने के लिए तैयार हो गए। तय किया गया कि अब कोई भी ग्रामवासी गांव के जंगल से पेड़ नहीं काटेगा। सब समझ गए कि जंगल कटने के कारण गाय, भैंस, बकरी, ऊंट आदि पशुओं को चारे का अभाव हो रहा है। जंगल जाने से ही पानी जा रहा है। अच्छा-खासा समृद्ध इलाका इसी कारण बेरोजगारी व गरीबी की ओर बढ़ रहा है। गरीबी, बेकारी और बेरोजगारी से बचने के लिए जरूरी है कि जंगल का संरक्षण हो।यह सच है कि 1985 में जब तरुण भारत संघ इस इलाके में आया, तब तक जंगल जंगलात के हो चुके थे और जंगलात की नजर में जंगलवासी नाजायज लेकिन यह भी सच है कि सरिस्का ‘अभ्यारण्य क्षेत्र’ बाद में घोषित हुआ और इसके भीतर बसी इंसानी बसावट सदियों पुरानी है। इसे भी झुठलाना मुश्किल है कि जंगल को जंगलात से ज्यादा जंगलवासी प्यार करते हैं। लोग भले ही इन्हें जंगली कहते हों, लेकिन जंगल को जंगलात से ज्यादा जंगलवासियों ने ही संजोया। बावजूद इसके यदि जंगलवासियों को जंगल से दूर करने की कोशिश हो रही है, तो यह सही है या गलत? आप तय करें।

हम तो यही जानते हैं कि जंगल जंगलवासियों की जन्मभूमि है। इन्हें अपनी जन्मभूमि से अत्यंत प्यार है। जन्मभूमि के प्रति इनके अनंत प्रेम को देखकर ही एक बार अलवर के महाराजा मंगल सिंह को भी सरिस्का क्षेत्र में बसे 27 गांवों को उठा देने का अपना आदेश स्वयं ही रद्द करना पड़ा था। यह ब्रितानी जमाने की बात है।
जहाज का प्रवाह
Posted on 01 May, 2014 03:27 PM जहाजवाली नदी सरिस्का के बफर जोन में पड़ने वाली दूसरी महत्वपूर्ण नदी है। इस नदी का आधे से अधिक हिस्सा सरिस्का के कोर क्षेत्र में पड़ता है। सरकार ने जब सरिस्का को नेशनल पार्क घोषित किया था, तभी से इस क्षेत्र में जंगल और जंगली जानवरों के अलावा हर बसावट को नाजायज करार दिया गया। असलियत में इस तरह के नियम-कायदे आदमी और संवेदना के खिलाफ हैं। जहाजवाली नदी के जलागम क्षेत्र का आरम्भ राजस्थान के पूर्वोत्तर भाग में स्थित अलवर जिले की तहसील राजगढ़ से होता है। यहां देवरी व गुवाड़ा जैसे गावों के जंगल इसके उद्गम को समृद्ध करते हैं। यह स्थान टहला कस्बे से 12 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित है। पूर्व से पश्चिम गुवाड़ा, बांकाला और देवरी गांवों को पार कर जहाजवाली नदी जहाज नामक तीर्थस्थान के ऊपर तक आती है इसलिए इसे जहाजवाली नदी कहते हैं।

यह धारा आगे दक्षिण की तरफ घूमकर नीचे गिरती है। उस स्थान को दहड़ा कहते हैं। ‘दह’ ऐसे स्थान को कहते हैं, जहां हमेशा जल बना रहे।
जहाज तुम बहती रहना
Posted on 21 Apr, 2014 09:42 AM

प्राक्कथन

River
खिजूरा का जल-कुम्भ
Posted on 13 Mar, 2014 04:35 PM

‘नीमी’ से सीख मिली


जीवन के लिए जल जरूरी है और इसकी प्राप्ति तभी संभव है जब मानव और प्रकृति के बीच सह अस्तित्व अक्षुण्ण रहे। इस हेतु जरूरी है कि नदियों को शुद्ध-सदानीरा बनाएं; जहां बैठकर सर्वत्र हरियाली की आशा-आकांक्षा के साथ अपना वर्तमान व साझे भविष्य को संवारने वाली सर्वहितकारी नीति-निर्माण की जा सके। नीति-निर्माण से पूर्व समूचे देश में नदियों के किनारे छोटे-छोटे कुम्भ आयोजित किए जाएं, जहां प्रकृति संरक्षण से जुड़े सभी सवालों पर सार्थक बहस हो। डाँग क्षेत्र के लोगों को जल-कुम्भ करने की प्रेरणा भी जयपुर जिले के नीमी गांव में हुए जल-सम्मेलन को देख कर ही मिली थी। नीमी गांव के लोगों ने अपने गांव में तरुण भारत संघ के आंशिक सहयोग से पानी के कई अच्छे काम किए थे। पानी के कारण उनकी खेती की पैदावार में आशातीत वृद्धि हुई थी। अचानक आई इस समृद्धि की खुशी में तथा देशभर के अन्य लोगों को प्रेरणा देने के उद्देश्य से उन्होंने तरुण भारत संघ के सहयोग से एक विशाल जल-सम्मेलन का आयोजन रखा था।

उल्लेखनीय है कि इसी सम्मेलन से जल-बिरादरी जैसे राष्ट्रीय स्तर के एक बड़े संगठन का भी जन्म हुआ था।
डांग के पानी की कहानी
Posted on 13 Mar, 2014 12:27 PM ‘महेश्वरा नदी’ को सदानीरा बनाने का काम यहां के समाज के सदाचार और श्रम से ही संभव हो सका है। यह एक अद्भुत काम है; जिसे यहां के लोगों ने सहजता, सरलता व श्रमनिष्ठा के भाव से निर्विघ्न सम्पन्न किया है। उम्मीद है कि ‘महेश्वरा नदी’ के इस सामाजिक साझे श्रम के अभिक्रम को देख कर अब दूसरे क्षेत्र के लोग भी इससे अच्छी सीख ले सकेंगे। ‘महेश्वरा नदी’ राजस्थान की उन सात नदियों में से एक है; जिन्हें समाज के साझे श्रम ने पुनर्जीवित कर सदानीरा बनाया। लेकिन अगर आप यहां के सिंचाई विभाग के किसी सरकारी अधिकारी, इंजीनियर अथवा जिला कलेक्टर तक से भी पूछेंगे तो वह आपको ‘महेश्वरा नदी’ के बारे में कुछ भी नहीं बता सकेगा; कारण कि इस इलाके के किसी भी सरकारी नक्शे में महेश्वरा नाम की कोई नदी दर्ज ही नहीं है।

लेकिन सपोटरा की डांग में बसने वाला हर बाशिंदा आपको ‘महेश्वरा नदी’ के बारे में तथा इसके पुनः लौटे जीवन के बारे में सहर्ष विस्तृत जानकारी दे देगा।
महेश्वरा नदी की कहानी
Posted on 09 Mar, 2014 04:08 PM

भौगोलिक परिचय

'जल जागरूकता सप्ताह' के तहत बीकानेर में कार्यशाला
Posted on 25 Feb, 2014 10:50 AM जल का हमारे जीवन में सांस्कृतिक व आध्यात्मिक महत्व है और जीवन के ह
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