लालच, अनियमितता और एक नदी की लूट

जयपुर। 1727 में बसा यह शहर बनावट की दृष्टि से दुनिया के सुनियोजित शहरों में अहम स्थान रखता था। यह शहर पारिस्थितिकी विज्ञान के अनुरूप बहुत बढ़िया ढंग से बसाया गया था। शहर के उत्तरी तरफ नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर कभी घने जंगल होने से मिट्टी का कटाव नहीं होता था। इन्हीं पहाड़ियों की तलहटी में आथुनी कुण्ड से एक नदी बहा करती थी, जिसकी धारा दक्षिण की ओर मोड़ खाती हुई ढूढ़ नदी और ढूढ़ नदी राजस्थान की मुख्य नदी बनास में मिल जाती थी।

इसी जलधारा को इतिहासकारों ने द्रव्यवती नदी कहा है। यह 50 किलोमीटर लम्बी नदी थी, जो कालान्तर में पहाड़ियों के नंगे होने के चलते छोटी होती गई। बाद में इसके किनारे अमानीशाह नाम के फकीर की मजार बनी तो द्रव्यवती नदी अमानीशाह नाला कहलाने लगी। द्रव्यवती उर्फ अमानीशाह का यही नाला जयपुर के पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत रहा है।

खेतों की सिंचाई को सुचारु रखने के लिये बाँधे गए सात बाँध इसकी समृद्धि के खास गवाह रहे हैं। मगर 1981 की भयंकर बाढ़ ने सभी बाँधों को ध्वस्त करते हुए अमानीशाह नाले को अस्त-व्यस्त कर दिया। तब से सरकार ने न टूटे हुए बाँधों की मरम्मत की और न अमानीशाह के संरक्षण की ही सुध ली। उल्टा सरकार ने नाले के तल में नियमों के विरूद्ध निजी खातेदारी दे दी और नियमन भी कर दिया। 22 किमी लम्बे नाले का यह पाट आज भूमाफिया की सम्पत्ति बन चुका है।

कभी वर्षा जल संरक्षण और भूजल पुर्नभरण का महत्वपूर्ण जरिया रहा अमानीशाह का नाला संकरी नाली हो गया है और इसी के साथ अभूतपूर्व जल संकट से जूझता जयपुर शहर भी डार्कजोन में समा गया है।

किसने लील ली नदी


1984 में भयंकर बाढ़ से अस्त-व्यस्त अमानीशाह की चौड़ाई निर्धारित करने के लिये जेडीए यानी जयपुर विकास प्राधिकरण ने नई दिल्ली की एक फर्म कंसल्टिंग इंजीनियरिंग सर्विसेज इण्डिया से सर्वे करवाया। इस फर्म ने अपनी रिपोर्ट में नाले की चौड़ाई 200 मी. तक करने की सिफारिश की। मगर जेडीए ने इस रिपोर्ट को सालों तक ठंडे बस्ते में रखा। इस बीच नाले में अवैध निर्माण होते गए और काॅलोनियाँ बसती चली गईं।

इसके पहले भी सर्वे ऑफ इण्डिया (1865, 1931, 1971) ने अमानीशाह की चौड़ाई 500 मी. तक बताई थी। मगर सरकारी बेरुखी के चलते नाले के डूब क्षेत्र की ज़मीन पर कई व्यक्तियों ने निजी खातेदारी के नाम पर कब्जा जमा लिया। जबकि राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 16 कहती है कि नदी, नाले की ज़मीन न तो बेची, न खरीदी और न ही आवंटित की जा सकती है। प्रावधान के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को नदी, नाले में खातेदारी दे दी गई है तो सरकार उसे तुरन्त निरस्त करे।

आश्चर्य कि राजस्व रिकार्ड में अमानीशाह नाले की ज़मीन पर निजी खातेदारों की भरमार है। मगर सरकार ने उनकी खातेदारियों को निरस्त नहीं किया और आज तक नाले की ज़मीन को नाले के खाते में नहीं लिया। न ही इस सम्बन्ध में सरकार ने कभी गजट नोटिफिकेशन ही जारी किया। हालांकि 18 जून, 2003 को राजस्थान हाईकोर्ट ने अब्दुल रहमान की जनहित याचिका (1536/2003) पर राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह राजस्थान के समस्त नदी, नालों और जलग्रहण क्षेत्रों को 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में लाए। साथ ही उसने जलभराव तथा प्रवाह क्षेत्र में अतिक्रमणों को अवैध घोषित करते हुए तुरन्त कार्रवाई के लिये भी निर्देशित किया।

22 दिसम्बर, 2004 को प्रमुख शासन सचिव (राजस्व) ने इस सम्बन्ध में बैठक ली और यह तय किया कि राजस्थान के सभी जलग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण किया जाएगा। मगर यह बैठक महज औपचारिकता बनकर इसलिये रह गई कि 2005 को जब सूचना के अधिकार के तहत राजस्व, सिंचाई, वन तथा नगरीय विकास विभागों से जलस्रोतों (नदी, नाले, तालाब, कुएँ, बावड़ी तथा बाँध आदि) से जुड़ी सूचनाएँ माँगी गईं तो सम्बन्धित विभागों ने कहा कि उनके पास जलस्रोतों का रिकार्ड ही नहीं है।

हालांकि सर्वे ऑफ इण्डिया द्वारा अपने टोपोशीट (45 एन/13) में द्रव्यवती नदी उर्फ अमानीशाह नाले को साफ तौर पर दर्शाया गया है। अगर नहीं दर्शाया गया है तो राज्य सरकार के राजस्व विभाग के रिकार्ड में। सवाल है कि जब राज्य सरकार के पास अमानीशाह नाले का रिकार्ड ही मौजूद नहीं है तो वह इसका संरक्षण करे भी तो कैसे?

उम्मीद बेमानी


दिसम्बर, 2003 में अतिक्रमण की मार से त्रस्त अमानीशाह के पुराने दिन लौटने की उम्मीद तब बंधी जब राज्य मानव अधिकार आयोग ने नाले के संरक्षण के लिये सरकार को निर्देशित किया और सरकार ने भी इसके संरक्षण के लिये एक योजना तैयार की। योजना के तहत जेडीए ने नाले का सर्वे किया और पुराने आँकड़ों के आधार पर अमानीशाह को चिन्हित करते हुए नाले की चौड़ाई 160 से 200 मी. नियत कर दी।

इस तरह, जेडीए ने नाले के क्षेत्रफल को परिभाषित करने के बाद इसके किनारे पिलर भी लगा दिए। साथ ही आदेश भी जारी किए कि इस क्षेत्रफल के भीतर कोई भी निर्माण वैध नहीं माना जाएगा। मगर चौड़ाई नियत करके पिलर लगाने के पाँच साल बाद 2008 को जेडीए ने यह सीमांकन निरस्त कर दिया और दुबारा सीमांकन करना तय किया।

अमानीशाह नाले को बचाने के अभियान से जुड़े रहे उपेन्द्र शंकर के मुताबिक जेडीए ने यह कभी स्पष्ट नहीं किया कि उसने पहला सीमांकन किन आधारों पर निरस्त किया। हालांकि सर्वे ऑफ इण्डिया की विभिन्न टोपोशीटों में नाले का प्राकृतिक सीमांकन पहले से ही मौजूद है। बावजूद इसके जेडीए ने स्वेच्छाचारी ढंग से सीमांकन पर जोर दिया। उपेन्द्र का आरोप है कि सरकार ने भूमाफिया के दबाव में नाले की चौड़ाई कम करने के लिये ऐसा किया।

1984 से अब तक, 27 साल गुजर जाने के बाद भी सरकार ने राज्य हाईकोर्ट और मानव अधिकार आयोग के निर्देशों को दरकिनार करते हुए पूरे नाले की चौड़ाई निर्धारित नहीं की है। शहर के भूमाफिया ने चौड़ाई निर्धारण में हो रही इस लेटलतीफी का भरपूर फायदा उठाया और सारे नियम-निर्देशों को ताक पर रखते हुए नाले की ज़मीन पर कंक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया। दूसरी तरफ जेडीए मूकदर्शक बना देखता रहा और उसने अवैध निर्माणों के विरुद्ध कभी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की।

राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1959 की धारा 92 के तहत यह नाला नगर निगम के क्षेत्राधिकार में आता है। 30 जून, 2003 को नगर निगम की साधारण-सभा ने सर्वसम्मति से (प्रस्ताव संख्या-6) नाले की चौड़ाई 320 मी. निर्धारित की थी। इसके अन्तर्गत नाले की 320 मी चौड़ाई में निर्माण कार्य को भी प्रतिबन्धित किया गया।

इस प्रस्ताव को लागू करने के लिये राज्य सरकार की ओर से अधिसूचना जारी होनी जरूरी थी। मगर यह अधिसूचना आज तक जारी नहीं हुई है। वहीं नगरीय विकास विभाग के तहत आने वाले जेडीए ने कुछ खास स्थानों में पुराने सर्वे के विपरीत और अपने स्तर पर ही नाले की चौड़ाई तय कर दी। इतना ही नहीं उसने भूखण्ड आवंटित करते हुए कुछ खास व्यक्तियों के लिये निर्माण कार्यों की मंजूरी भी दे दी। जबकि जेडीए अधिनियम की धारा 94 के तहत नगरपालिका के अधीन आने वाली किसी भी ज़मीन पर जेडीए बिना राज्य सरकार की मंजूरी के कोई निर्णय नहीं ले सकता।

1984 से अब तक, 27 साल गुजर जाने के बाद भी सरकार ने राज्य हाईकोर्ट और मानव अधिकार आयोग के निर्देशों को दरकिनार करते हुए पूरे नाले की चौड़ाई निर्धारित नहीं की है। शहर के भूमाफिया ने चौड़ाई निर्धारण में हो रही इस लेटलतीफी का भरपूर फायदा उठाया और सारे नियम-निर्देशों को ताक पर रखते हुए नाले की ज़मीन पर कंक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया। दूसरी तरफ जेडीए मूकदर्शक बना देखता रहा और उसने अवैध निर्माणों के विरुद्ध कभी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की।इसके बावजूद 15 मार्च, 2002 को राजस्थान सरकार ने अमानीशाह नाला क्षेत्र की चौड़ाई 150 फीट तय कर दी। तत्कालीन मन्त्री के इस निर्णय के विरुद्ध पीएन मैंदोला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। मैंदोला के मुताबिक किसी भी राज्य के मन्त्री को अपने स्तर पर राज्य की किसी नदी, नाले की चौड़ाई तय करने का अधिकार नहीं है। इसके बावजूद सरकार ने अमानीशाह नाले की चौड़ाई तय की।

इस दौरान न तो किसी भी प्रावधान का सहारा लिया और न ही नाले का केन्द्रीय बिन्दु, लो-लाईन एरिया तथा तल इत्यादि तय किया। यह निर्णय राजस्थान हाइकोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध है जिसमें उसने राज्य सरकार से राजस्थान के समस्त नदी, नालों और जलग्रहण क्षेत्रों को 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बहाल करने के लिये कहा है।

जयपुर विकास प्राधिकरण (भवन), 1989 तथा नगर निगम (भवन) उपविधि, 1970 में प्रावधान है कि किसी भी जल स्रोत की सीमा से 6 मी दूरी तक किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबन्धित है। इस बारे में एडवोकेट विमल चौधरी का मत है कि अभी तक अमानीशाह की सीमा तय नहीं हुई है। ऐसे में नगरीय विकास मन्त्री द्वारा अमानीशाह नाले के क्षेत्र में निर्माण कार्यों को मंजूर किया जाना प्रावधानों के विरुद्ध है।

3 मार्च, 2006 को तत्कालीन भाजपा सरकार के नगरीय विकास मन्त्री प्रताप सिंह सिंघवी ने भी अपने स्तर पर अमानीशाह नाले के प्रवाह क्षेत्र में सोड़ाला (खसरा नं 320, 321, 322) सुशीलपुरा (खसरा नं 313) और ब्रजलालपुरा (खसरा नं 47) की 23,176 वर्गमीटर ज़मीन मैसर्स मानसरोवर हैरिटेज प्राईवेट लिमिटेड को भवन निर्माण के लिये मंजूर कर दी। इसकी भनक रहवासियों को तब लगी जब कम्पनी के मालिक और भाजपा के वर्तमान विधायक रणवीर पहलवान ने फ्लैट्स बनाने का काम शुरू किया।

अमानीशाह का यह लम्बा चौड़ा नाला भूमाफिया द्वारा बेचा जा चुका है। नाले के विशाल पाट पर अलग-अलग कम्पनियों के बोर्ड लगे हुए हैं। कहीं क्रिकेट अकादमी, कहीं घुड़सवारी तो कहीं रिसोर्टस् बनाने के बोर्ड दिखाई देते हैं। जेडीए ने कुछ जमीनों से कब्जे हटाकर सरकारी सम्पत्ति के बोर्ड लगाए थे, उन्हें भी उखाड़कर गायब कर दिया गया है।

अमानीशाह नाले पर रिहायशी बस्तियाँ, बाजार, बहुमंजिला इमारतें, कारखाने और विवाह स्थलों का घना जाल बिछ गया है। जगह-जगह पर नाला अब एक छोटी नाली में सिमट रहा है। खातीपुरा रोड पर रावलजी बाँध के पास तो 5 फीट का रास्ता भी नहीं छोड़ा गया है।

जयपुर डार्कजोन


दूसरी तरफ केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण ने जयपुर को डार्कजोन घोषित किया है। प्राधिकरण के मुताबिक जयपुर जिले में जल का दोहन पुनर्भरण के मुकाबले 100 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। बीते दो दशकों में यहाँ भूजल 40 से 50 मीटर नीचे चला गया है।

भूजल वैज्ञानिकों ने इस संकट की सबसे बड़ी वजह जयपुर में वर्षा जल संरक्षण और भूजल पुर्नभरण की सम्भावना का धीरे-धीरे समाप्त होते जाना बताया है। राजस्थान ऐसा प्रदेश है जहाँ की जनता पूरी तरह से भूजल पर निर्भर है। जयपुर की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि यहाँ कोई बारहमासी नदी नहीं है। 2000 में रामगढ़ बाँध सूख जाने के बाद शहर को बांध से पानी मिलना बन्द हो गया।

ऐसे में भूजल पुर्नभरण का एकमात्र स्रोत अमानीशाह नाला ही बचा है। इसके तल में 35 और किनारे 126 टयूबवेल हैं, जो शहर को भूजल उपलब्ध करा रहे है। साथ ही जयपुर का भूजल इसी नाले के चलते स्थिर बना हुआ है। मगर इस समय अमानीशाह का यह नाला जयपुर का सबसे बड़ा कचराघर भी बन चुका है। इसमें शहर का सारा ठोस कचरा और आद्यौगिक इकाईयों से निकला रसायन-युक्त जल छोड़ा जा रहा है। अमानीशाह नाले के भूमिगत जल से शहर की बड़ी आबादी के लिये जलापूर्ति होती है।

लिहाजा नाले पर निर्भर यह आबादी जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर से घिर चुकी है। भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक जल में 100 पीपीएम से ज्यादा नाइट्रेट की मात्रा घातक होती है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड कहता है कि जयपुर में नाइट्रेट की मात्रा 100 पीपीएम को पार कर चुकी है। यानी राज्य सरकार ने जयपुर की जीवनधारा से किनारा करके जयपुर के जीवन को ही एक गहरे जल संकट की तरफ धकेल दिया है।

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