लापता तालाब उर्फ जिला नुआपाड़ा


अगर आपसे कहा जाये कि किसी गांव के तालाब गायब हो गये तो शायद आप यकीन न करें. लेकिन नुआपाड़ा जिले के बिरीघाट पंचायत के झारसरम में ऐसा ही हुआ है. सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि गांव में दो साल पहले 1 तालाब खोदा गया है लेकिन गांव के लोग हैरान हैं कि आखिर ये तालाब हैं कहां?

इन दिनों इस तालाब की तलाश चल रही थी. दो साल पहले ही बना यह तालाब कागजों पर तो हैं लेकिन गांव में इसका पता नहीं है.

एक और मामला सुनें. हरि मांझी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन सरकार की मानें तो उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत काम करने के एवज में 607 रुपये का भुगतान किया गया है.

आप माने या ना मानें, सरकारी कागजों के अनुसार पिछले सात सालों से लकवा के कारण बिस्तर में पड़े रहने वाले निरेखा जगत को भी इसी योजना के तहत काम करने के एवज में 900 रुपये का भुगतान किया गया है.

10 साल के स्कूली छात्र निमेश सुनानी को 450 रुपये और टेकमणी बाग को 950 रुपये, 70 साल की आशा जगत को भी 450 रुपये का भुगतान राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत किया गया है. भुगतान को धनेश्वर बाग को भी किया गया है, जिसका नाम गांव वालों ने भी पहली बार सुना है.

>असल में नुआपाड़ा जिले के बिरीघाट पंचायत के झारसरम गाँव के धुशासन के खेत-तालाब का कामरोजगार गारंटी योजना के तहत 2007-08 में शुरु किया गया था. इस काम की लागत कोई 35 हजार रुपये के आसपास थी. लेकिन खेत की खुदाई शुरु हुई और 8 हज़ार रुपये का काम करने के बाद फंड का बहाना बना कर काम रोक दिया गया. उसके बाद काम हुआ ही नहीं. हां, अधिकारियों ने जो मस्टर रोल औऱ बिल तैयार किया उसमें 32,260 रुपये का खर्च दिखाया गया. जाहिर है, हरि मांझी, निरेखा जगत, निमेश सुनानी, आशा जगत, टेकमणी बाग, धनेश्वर बाग जैसों के नाम का इस्तेमाल कर के अधिकारी पैसा डकार गये.

कहानी यहीं खत्म नहीं होती है. खरियार ब्लॉक के कुसमाल गांव में तो इसी तरह के 7 तालाबों की तलाश शुरु हुई है, जिन्हें 2.13 लाख की लागत से बनाया जाना था.

कुसमाल गांव के ही सामाजिक कार्यकर्ता खीरसिन्धु सगरिया ने सूचना के अधिकार के तहत गाँव में हुए नरेगा काम के बारे में जानकारी मांगी तो पता चला कि 2007 से 2009 तक गांव में 7 तालाबों के लिये भुगतान किया गया है. गांव वालों ने इसकी शिकायत विकास अधिकारी औऱ कलेक्टर से की. लेकिन कोई कार्रवाई होने के बजाय इंजिनियर अपने साथ कुछ गुंडों को लेकर गांव में मशीन की सहायता से खुदाई के लिये जा पहुंचा. गांव वालों ने विरोध किया और पुलिस ने फिर हस्तक्षेप कर मशिनों को जप्त किया

खिरसिन्धु कहते हैं- “जब मैंने पहली बार मस्टर रोल देखा तो हतप्रभ रह गया. मुझे मस्टर रोल में चन्दन सगरिया नामक ऐसा आदमी मिला, जिसने एक ही दिन में सभी फार्म पोंड में काम किया था, ऐसा कैसे संभव है ? '

असल में चन्दन सगरिया ग्राम साथी के साले साहब है. ग्राम साथी और ब्लाक इंजिनियर ने गाँव में ऐसे 7-8 लोगों के नाम तय किये, जिनके नाम में उन्होंने पैसा भुगतान किया और वापस पास बुक से निकाल लिया.

इलाके में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता अजित पंडा कहते हैं- 'यह पूरे जिले में हो रहे नरेगा काम में आम बात हो गई है. काम नहीं करने वाले जॉब कार्ड धारकों के नाम मस्टर रोल में शामिल कर लिया जाता है. उनके बैंक अकाउंट में कथित काम के पैसे जमा किये जाते हैं और बाद में ग्राम साथी उन लोगों के साथ बैंक जाते हैं और पैसा निकलने के बाद उनसे लेकर इंजिनियर से लेकर ब्लाक के अधिकारिओं के बीच उस पैसे का बंदर बाँट होता है.”

पंडा का दावा है कि भ्रष्टाचार के इस पूरे खेल की जांच की जाये तो पता चलेगा कि इसमें बीडीओ, सहायक यंत्री, कनिष्ठ यंत्री और यहाँ तक की डीआरडीए के प्रमुख भी शामिल होते हैं.

इलाके में यह आम शिकायत है कि मनरेगा के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है. नरेगा के तहत प्रावधान है कि काम मांगने के 15 दिन के अंदर काम मुहैय्या कराई जाए और काम खत्म होने के 15 दिन के अंदर भुगतान किया जाये. नरेगा के नियमों के तहत कामों की शुरुआत सही समय पर नहीं की जा रही है. भुगतान काफी देरी में किया जा रहा है. लोग काम पाने के लिए और काम करने के बाद भुगतान के लिए दर-दर की ठोकरें खाते घूमते रहते हैं.

सारे नियमों को ताक पर रख कर काम के लिए आवेदन तभी स्वीकार किये जाते हैं, जब डीआरडीए की ओर से काम शुरू करने के लिए निर्देश जारी किये जाते हैं. और भुगतान में देरी तो सभी मामलों में होती ही है.

स्थानीय पत्रकार तपन दास आक्रोश और दुख के साथ कहते हैं-'नुआपाडा जिले में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार योजना के काम में भयावह भ्रष्टाचार है. जिले में 50 प्रतिशत से अधिक काम खेतों में तालाब बनाने के नाम पर खर्च करने की बात कही जा रही है. लेकिन आपको पता चलेगा कि जमीन पर ऐसे तालाब बने ही नहीं हैं. जिले में 10 करोड़ रुपये केतालाब खेतों में बनाने के लिए आंकलन किया गया था और उसमें से 4 करोड़ रुपये खर्च भी किये जा चुके हैं. जाहिर है, इसमें कम से कम 2 करोड़ रुपये अधिकारी डकार चुके हैं.'

भ्रष्टाचार के ऐसे मामलों में आखिर सरकार कार्रवाई क्यों नहीं करती? इसके जवाब में कुसमाल के ग्रामीण बताते हैं कि ये भ्रष्ट अधिकारी अपने इस खेल में गाँव के कुछ लोगों को भी प्रलोभन दे कर अपने साथ कर लेते हैं और गांव दो हिस्सों में बंट जाता है. हम बेवकूफों की तरह आपस में भीड़ जाते हैं, एक दूसरे के खिलाफ कोर्ट-कचहरी चले जाते हैं और परेशान होते हैं जबकि इसका फायद वह भ्रष्ट अधिकारी उठाते हैं.

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को हर वक्त दबाने की कोशिश की जाती है जिसमें जान से मारने तक की धमकी दी जाती है और कानूनी दांव-पेंच से लेकर तरह-तरह से परेशान किया जाता है, जिसमें ठेकेदार, भ्रष्ट अधिकारी और स्थानीय राजनेता भी शामिल होते हैं. भ्रष्ट लोगों का यह गठबंधन इतना मजबूत है कि कोई आम आदमी तो इनके खिलाफ शिकायत करने से भी डरे.

सूचना के अधिकार के तहत मामले की जानकारी निकलवाने वाले खीरसिन्धु को तो पुलिस के साथ मिल कर फंसाने की कोशिश हुई. उनके खिलाफ बलात्कार और मंगलसूत्र छिनने के मामले दर्ज कराये गये.

“मैं इन सब से डरा नहीं क्योंकि मैंने इंसाफ के लिए और लोगों के हक के लिए लड़ाई शुरु की है.' खीरसिन्धु पूरे आत्मविश्वास के साथ ये बात कहते हैं. और इस आत्मविश्वास का कारण भी है.

कुसमाल गांव के लोग एक स्वर में कहते हैं- हम सब खीर सिन्धु के साथ हैं. क्योंकि उन्होंने इस भ्रष्टाचार के बारे में भंडाफोड़ किया और इस व्यवस्था के खिलाफ इन्साफ की लड़ाई लड़ने के लिए सहायता की.

गांव वालों की लड़ाई अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ रही है. राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी जोर लगाया है, जिसके चलते ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसकी जाँच राष्ट्रीय स्तर पर करवाया है. राज्य के पंचायती राज मंत्री कहते हैं- 'इस मामले में डीआरडीए के प्रोजेक्ट डायरेक्टरको भी बख्शा नहीं जाएगा'

नुआपाड़ा के खरियार में हुये भ्रष्टाचार के मामले में दो विकास खंड अधिकारियों, उप विकासखंड अधिकारी, सहायक इंजिनियर को सस्पेंड कर दिया गया है. देखना ये है कि आम जनता की भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरु की गई यह लड़ाई कहां तक पहुंचती है.
 
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