नदियां

Term Path Alias

/regions/rivers

श्रीनगर के लिये अभिशाप बन कर आई है जल विद्युत परियोजना
Posted on 07 Sep, 2010 10:50 AM
कुछ समय पहले तक श्रीनगर से आगे बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाते हुए नदी का विहंगम दृश्य एक अलग तरह का आनंद देता था। लेकिन अब इस पूरे इलाके में सतर्कता बढ़ गई है और शुरू हो गया है हमारे प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने का एक घिनौना खेल। जहाँ कभी हरियाली होती थी वहाँ पर मिट्टी के ढेर और इन ढेरों से झाँकते हुए परियोजना के दौरान उखाड़ फेंके गए पेड़-पौंधे ही दिखाई देते हैं। अब भी लोग अपनी गाड़ियों
सहज चलना सीखें
Posted on 25 Aug, 2010 01:05 PM देश में जहां भी कहीं उद्योग के लिए जमीन ली जा रही है या जल-संसाधनों का दोहन किया जा रहा है, वहां के किसान, गांव वाले जान तक देने पर उतारू हैं। कई ऐसी घटनाएं घट चुकी है जहां आंदोलनकारियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाइयां की गईं। कई लोग घायल हो चुके हैं, आंदोलकारियों के मन में निराशा है। स्थिति इस दिशा की ओर बढ़ चली है कि आज लाखों लोगों का राज्य शासन से और राजकर्ताओं से भरोसा उठ चला है।सिक्किम में पन-बिजली की ग्यारह योजनाओं पर काम चल रहा था। लेकिन लोगों के विरोध के आगे झुकते हुए सरकार ने इन सब पर काम रोक दिया है। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में भी बन रहे बांधों के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड में गंगा पर बनाई जा रही दो जल विद्युत परियोजनाओं को भी स्थगित कर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश में तो बांध इतने बदनाम हो चुके हैं कि वहां पिछले विधान सभा चुनाव में पहली बार प्रत्याशियों को ये वादे करने पड़े कि वे जीत गए तो इन बांधों को नहीं बनने देंगे। इस तरह वहां सचमुच इन्हीं वादों के बल पर चुनाव जीता गया।

देश के और भी कई
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
Posted on 25 Aug, 2010 10:42 AM

नदी, पहाड़, पर्वत श्रेणी और उसके उत्तुंग शिखरों से तथा इन सबसे ऊपर चमकने वाले तारों से परिचय बढ़ाकर हमें भारत-भक्ति में अपने पूर्वजों के साथ होड़ चलानी चाहिए। हमारे पूर्वजों की साधना के कारण गंगा के समान नदियां, हिमालय के समान पहाड़, जगह-जगह फैले हुए हमारे धर्म क्षेत्र, पीपल या बड़ के समान महावृक्ष, तुलसी के समान पौधे, गाय जैसे जानवर, गरुड़ या मोर के जैसे पक्षी, गोपीचंदन या गेरू के जैसी मिट्टी के प्रकार- सब जिस देश में भक्ति और आदर के विषय बन गये हैं, उस देश में संस्कारों की भावनाओं की समृद्धि को बढ़ाना हमारे जमाने का कर्तव्य है। हम अपने प्रिय-पूज्य देश को साहित्य द्वारा और दूसरे अनेक रचनात्मक कामों से सजाएंगे और नयी पीढ़ी को भारत-भक्ति की दीक्षा देंगे” (काका कालेलकर)

जीवन और मृत्यु दोनों में आर्यों का जीवन नदी के साथ जुड़ा है। उनकी मुख्य नदी तो है गंगा। यह केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि स्वर्ग में भी बहती है और पाताल में भी बहती है। इसीलिए वे गंगा को त्रिपथगा कहते हैं।

जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है
भविष्यवाणी जो सुनी नहीं गई
Posted on 12 Aug, 2010 09:02 AM श्री कपिल भट्टाचार्य एक विलक्षण अभियंता थे। उन्होंने फरक्का बैराज और दामोदर घाटी परियोजना का विरोध उस समय किया, जब ज्यादातर वैज्ञानिक, इंजीनियर और बुद्धिजीवी इसके पक्ष में जुटे थे। इसी विरोध के कारण उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। नवंबर 1989 में उपेक्षा और एकांत की पीड़ा झेलते हुए उनका निधन हुआ। यह लेख उन्होंने आज से कोई 40 बरस पहले लिखा था।
दामोदर घाटी परियोजना को बने हुए अनेक वर्ष बीत चुके हैं। जिस समय यह परियोजना बन रही थी, उसी समय मैंने इसके दोषों और इससे होने वाले भयंकर परिणाम की जानकारी सबके सामने रखी थीः इसके कारण पश्चिम बंगाल के पानी को निकालने वाली मुख्य नदी हुगली भी जाएगी और फिर देश में भयानक बाढ़ आएगी। हुगली नदी भरने से कलकत्ता बंदरगाह में आने वाले बड़े समुद्री जहाजों का आना भी संभव नहीं हो सकेगा। मेरे दृढ़ प्रतिवाद और चेतावनी के बावजूद केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेसी और राज्य सरकारों ने मिलजुल कर दामोदर घाटी परियोजना को लागू किया।

दामोदर नदी में साल भर छोटी-छोटी बाढ़ों के कारण जो उपजाऊ मिट्टी जमा होती है, उसे आषाढ़ में आने वाली बड़ी बाढ़ बहाकर समुद्र में पहुंचा देती है। सावन, भादों और अश्विन महीने में
सतलुज की कहानी
Posted on 07 Mar, 2010 03:49 PM

सतलुज का उद्गम राक्षस ताल से हुआ है। राक्षस ताल तिब्बत के पश्चिमी पठार में है। यह सुविख्यात मानसरोवर से कोई दो कि.मी. की दूरी पर है। सतलुज शिप्कीला से भारत के किन्नर लोक में प्रवेश करती है। किन्नर देश में सतलुज को लाने का श्रेय वाणासुर को दिया जाता है जैसे गंगा को लाने का श्रेय भगीरथ को है और इसी कारण गंगा का नाम भागीरथी भी है। किंतु सतलुज का नाम वाणशिवरी नहीं हैं। एक कथा के अनुसार पहले किन्नर दो राज्यों में विभक्त था। एक की राजधानी शोणितपुर (सराहन) थी और दूसरे की कामरू। इन राज्यों में बड़ा बैर था और अक्सर युद्द हुआ करते थे। वाणासुर शोणितपुर में तीन भाई राजकाज करते थे। वाणासुर और उसकी प्रजा को मार डालने के लिए उन तीनों भाइयों ने किन्नर देश में बहने वाली एक नदी में हज़ारों मन ज़हर घोल दिया। इससे हज़ारों लोग, पशु-पक्षी मर गए। भयंकर अकाल पड़ गया।

बुन्देलखण्ड की नदियाँ
Posted on 16 Feb, 2010 07:56 AM

बुन्देलखण्ड का पठारी भाग मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग में 2406’ से 24022’ उत्तरी अक्षांश तथा 77051’ पूर्वी देशांतर से 80020’ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इस पठार के अन्तर्गत छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर और भिण्ड जिलों के कुछ भाग आते हैं। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल मध्यप्रदेश के कुल क्षेत्रफल 23,733 वर्ग किलोमीटर का 5.4 प्रतिशत है। इसके पूर्वोत्तर में उत्तर प्रदेशीय बुन्देलखण्ड के जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर और बाँदा, महोबा, चित्रकूट जिले हैं।

बुन्देलखण्ड का पठार प्रीकेम्बियन युग का है। पत्थर ज्वालामुखी पर्तदार और रवेदार चट्टानों से बना है। इसमें नीस और ग्रेनाइट की अधिकता पायी जाती है। इस पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 150 मीटर उत्तर में और दक्षिण में 400 मीटर है। छोटी पहाड़ियाँ भी इस क्षेत्र में है। इसका ढाल दक्षिण से उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर है।

ये भी पढ़े :-   केन-बेतवा लिंक परियोजना से बदलेगी बुन्देलखण्ड की तस्वीर

ब्रह्मपुत्र नदी के कटाव से असम में जबरदस्त भूक्षरण
Posted on 05 Feb, 2010 04:07 PM


असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तट के इलाके जबरदस्त कटाव से प्रभावित हो रहे हैं। लगातार हो रहे कटाव से राज्य की करीब चार हजार वर्ग किलो मीटर भूमि का क्षरण हो चुका है और इससे करीब 2,500 गांवो में बसे 50 लाख से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में होने वाला यह भूक्षरण करीब 80 वर्ग किलो मीटर प्रतिवर्ष के हिसाब से बढ़ रहा है। इस मामले में राज्य के जल संसाधन विभाग ने 25 संवेदनशील और अति क्षरणीय स्थलों की पहचान की है।

ब्रह्मपुत्र नदी में भूक्षरण
छत्तीसगढ़ में है नदियों का गुम्फन
Posted on 05 Feb, 2010 12:27 PM

हमारी भारतीय संस्कृति में अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह नदियों का भी अपना एक अलग विशेष महत्व है। वेद पुराणों में नदियों की यशोगाथा विद्यमान है। नदियाँ हमारे लिए प्राणदायिनी माँ की तरह हैं। नदियों के साथ हमारे सदैव से भावनात्मक संबंध रहे हैं औऱ हमने नत-मस्तक होकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व आस्था प्रकट की है। नदियाँ केवल जल-प्रदायिनी एवं मोक्षदायिनी ही नहीं हैं, बल्कि संस्कारदायिनी भी हैं। नदियाँ

हिमाचल की तीन नदियों में खनन पर रोक
Posted on 03 Feb, 2010 12:27 AM
हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय के तहत राज्य से होकर बहने वाली तीन नदियों में खनन पर रोक लगा दी है। इन नदियों में कांगड़ा जिले की चक्की एवं न्यूगल नदियां एवं बिलासपुर जिले की सीयर नदी शामिल हैं। इस निर्णय के बाद इन नदियों पर रेत एवं पत्थरों का खनन पूरी तरह प्रतिबंधित हो गया है। राज्य के सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री श्री रविन्द्र रवि का कहना है कि, इन नदियों में खनन पर इसलिए रो
×