महाराष्ट्र

Term Path Alias

/regions/maharashtra-1

स्थायी समस्या
Posted on 13 Feb, 2010 08:16 AM बचे हुए जंगलों और पूरी तरह से उन पर निर्भर लोगों का प्रश्न तो है ही, लेकिन कागज उद्योग के सामने कच्चे माल की जो भयंकर समस्या है, उसे भी नकारा नहीं जा सकता। कागज उद्योग विकास परिषद की कच्चा माल समिति ने हिसाब लगाया है कि सन् 2000 तक अगर प्रति व्यक्ति 4.5 किलोग्राम कागज की खपत के लिए तैयारी करनी हो तो कागज और गत्ते की उत्पादन क्षमता को 42.5 लाख टन तक और न्यूजप्रिंट की उत्पादन क्षमता को 12.89 लाख टन
क्या आप जानते हैं, बड़े जलाशय भूकंप उत्पन्न करते हैं?
Posted on 11 Jan, 2010 09:23 PM

जी हां, बड़े जलाशयों की वजह से भूकंप आते हैं। यह कोई कोरी कल्पना नहीं है बल्कि इस बारे में तमाम वैज्ञानिक तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं। दुनिया भर में विभिन्न जलाशयों से एकत्र किए गए वैज्ञानिक आंकड़ों ने यह साबित किया है कि जलाशयों में पानी भरने और भूकंप के बीच आपसी सम्बंध होते हैं।

 

पहाड़ से घाटी तक
Posted on 22 Dec, 2009 01:04 PM किसी संगठन की सफलता में सही लक्ष्य की पहचान, उस लक्ष्य तक पहुंचने की सही रणनीति और लोगों के जुड़ाव और उनकी प्रतिबद्धता का काफी महत्व होता है। इस मायने में देखें तो महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक गैर सरकारी संगठन वॉटरशेड ऑरगेनाइजेशन ट्रस्ट (डब्ल्यूओटीआर) ने इस क्षेत्र के दर्द को समझा और उसी के मुताबिक इस क्षेत्र के उद्धार के लिए काम करती है। अपने इस प्रयास में डब्ल्यूओटीआर ग्रामीण समुदायों
पोपटराव पवार
Posted on 21 Dec, 2009 03:53 PM पोपटराव पवार हमारे युवा पीढ़ी के सबसे अग्रणी जल योद्धाओं में से एक हैं। वैसे तो पवार का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का हिवरे बाजार गाँव है, लेकिन इनकी शिक्षा पुणे शहर में हुई,जहां के विश्वविद्यालय से उन्होंने एम कॉम की परीक्षा उत्तीर्ण की। किस प्रकार पवार गांव के विकास और समृद्धि के लिए समर्पित हुए, यह भी एक मजेदार घटना है।
सामुदायिक पहल से संकट टला
Posted on 21 Dec, 2009 02:18 PM कोलवान घाटी के किसान एक बात तो अच्छी तरह से जानते हैं कि एक ऐसे क्षेत्र में किस प्रकार से जल संरक्षण और जल संग्रहण करें, जहां बारिश के मामले में टाल-मटोल होता रहता है। पुणे से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुल्शी तालुका के कुछेक गांवों के जल समुदायों ने इस दिशा में एक मिसाल खड़ी की है कि किस प्रकार से यह अपनी समूची आबादी के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित करें और साथ ही इस बहुमूल्य चीज का किस तरह से समान
जल पंढाल से समृद्धि
Posted on 21 Dec, 2009 01:03 PM आखिर पानी ही एक ऐसा अनमोल प्राकृतिक संसाधन है, जो मानव जाति के विकास में अहम् भूमिका निभाता है। पानी न केवल जिंदा रहने के लिए जरूरी है, बल्कि इससे खाद्यान्न सुरक्षा, पर्यावरणीय सुरक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लक्ष्य को हांसिल करने में भी मदद मिलती है। इस प्रकार पानी की किसी भी तरह की कमी से समुदाय का विकास अवरुद्ध होता है। यह कहानी एक सूखाग्रस्त क्षेत्र की है, जहां उपलब्ध संसाधनों के संरक्षण
समृद्धि का रास्ता
Posted on 19 Dec, 2009 01:14 PM ग्राम गौरव प्रतिष्ठान
कोंकण में गोकुल का गौरव
Posted on 10 Dec, 2009 05:08 PM कोंकण महाराष्ट्र का तटीय क्षेत्र है जिसकी एक ओर पश्चिमी घाटों का वन प्रदेश है और दूसरी ओर अरब सागर। यह पट्टीनुमा प्रदेश है जिसकी चौड़ाई कहीं 20 किमी. है तो कहीं 40 किमी.। यहां औसत सालाना बरसात 2,500 से 5,000 मिमी.
farm pond
मुंबई की प्यास
Posted on 03 Oct, 2009 09:33 AM

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पीने के पानी की किल्लत अपने आप में एक बड़ी समस्या है। इसकी मुख्य वजह जरुरत के हिसाब से पानी की आपूर्ति न हो पाना है। हैरानी की बात यह है कि ऊंची इमारतों में रहने वालों के घरों में तो पानी की आपूर्ति ठीक-ठाक हो जाती है लेकिन मुंबई की पहचान चाल और झोपड़पट्टी इलाके में पानी की आपूर्ति की समस्या हमेशा बनी रहती है।

उकाई: हम भी बह गए थे
Posted on 11 Sep, 2009 08:40 PM
न भाखड़ा बांध की तरह प्रसिद्ध, न नर्मदा बांध की तरह बदनाम-उकाई बांध तो गुमनामी में बना था। न किसी को उसको बनाने का समय याद, न यह कि उसने बनने के बाद कितने परिवारों, गांवों को मिटाया था। उकाई बांध कोई बहुत बड़ा नहीं था पर सन् 2006 में वह उसी शहर और उद्योग-नगरी को ले डुबा, जिसके कल्याण के लिए उसे सन् 1964 में बहुत उत्साह से बनाया गया था। लेकिन तब भी एक सज्जन अपनी पुरानी मोटर साइकिल पर इस पूरे इलाके में घूम रहे थे। उस दौर में तो बांधों को नया मंदिर माना जा रहा था। शुरू में तो वे भी इन नए मंदिरों के आगे नतमस्तक ही थे। पर धीरे-धीरे उन्होंने जो देखा और फिर लोगों के बीच उतर कर जो कुछ किया, उसकी उन्हें सबसे भारी कीमत भी चुकानी पड़ी- उन्हें एक सूनी सड़क पर एक ट्रक ने रौंद कर मार डाला था। उनका काम भी कभी सामने नहीं आया पर वह काम खाद बना और फिर उसी खाद से ऐसे विचारों को पोषण मिला। उनका नाम था श्री रमेश देसाई। उकाई नवनिर्माण समिति का भुला दिया गया यह किस्सा रमेश भाई ने अपनी हत्या से कुछ ही पहले सन् 1989 में लिखा था। 
×