कोलवान घाटी के किसान एक बात तो अच्छी तरह से जानते हैं कि एक ऐसे क्षेत्र में किस प्रकार से जल संरक्षण और जल संग्रहण करें, जहां बारिश के मामले में टाल-मटोल होता रहता है। पुणे से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुल्शी तालुका के कुछेक गांवों के जल समुदायों ने इस दिशा में एक मिसाल खड़ी की है कि किस प्रकार से यह अपनी समूची आबादी के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित करें और साथ ही इस बहुमूल्य चीज का किस तरह से समान वितरण सुनिश्चित करे।
ऐसे पहल-प्रयासों को सहयोग देने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम समेत 10 संगठनों ने मिलकर `डायलॉग´ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संघ बनाया। फरवरी में `डायलॉग´ के एक दल ने जल संग्रहण और पारंपरिक खेती पर कुछ सीखने के लिए कोलवान घाटी का भ्रमण किया।
डायलॉग टीम ने अपने विश्लेषण में पाया कि भारत में बदलाव लाने और खाद्यान्न व जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि स्थानीय लोगों द्वारा इस पर पहल-प्रयास किए जाएं। जल, खाद्यान्न और पर्यावरण पर आधारित डायलग का उद्देश्य खाद्यान्न और पर्यावरणीय सुरक्षा के बीच पुल बांधना है। आज डायलॉग इन दोनों क्षेत्रों के बीच समझ बनाने के लिए 20 से ज्यादा देशों में काम कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना था कि “यद्यपि हम मानते हैं कि भारत जैसे विशाल देश में स्थानीय पहल को सीधे लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन हम यह जरूर मानते हैं कि स्थानीय ज्ञान से जल की समस्या का समाधान निकल सकता है और इससे दुनिया के ज्ञान में भी इजाफा होगा” डायलॉग सचिवालय के निदेशक हेन्स वॉल्टर के मुताबिक “भारत में बातचीत की पद्धति काफी अप्रजातांत्रिक है, क्योंकि यहां प्रशासन की मनमर्जी से अपनी बातें लादता है।“ उनका आगे कहना था कि जल और पर्यावरण के प्रबंधन में पारंपरिक ज्ञान के प्रति सरकारी उत्साह की कमी को देखते हुए जरूरी है कि सरकारी विभाग और ग्रामीण समुदाय के बीच वार्ता चलाई जाए।
कोलवान के भालगुड़ी गांव में गैर-सरकारी संगठनों और गांववालों ने मिलकर सरकारी अटकलों को दूर किया और वर्षा ऋतु के पानी का संग्रहण किया। अब यह पानी गांव वालों की धरोहर है, जिन्होंने अपने पैसे, जमीन और श्रम से पानी का संग्रहण किया है।
स्रोत : प्रियमवदा कौशिक, 2002, वॉटर वॉच, द इंडियन एक्सप्रेस, नई दिल्ली, 17 मार्च, 2002
ऐसे पहल-प्रयासों को सहयोग देने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम समेत 10 संगठनों ने मिलकर `डायलॉग´ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संघ बनाया। फरवरी में `डायलॉग´ के एक दल ने जल संग्रहण और पारंपरिक खेती पर कुछ सीखने के लिए कोलवान घाटी का भ्रमण किया।
डायलॉग टीम ने अपने विश्लेषण में पाया कि भारत में बदलाव लाने और खाद्यान्न व जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि स्थानीय लोगों द्वारा इस पर पहल-प्रयास किए जाएं। जल, खाद्यान्न और पर्यावरण पर आधारित डायलग का उद्देश्य खाद्यान्न और पर्यावरणीय सुरक्षा के बीच पुल बांधना है। आज डायलॉग इन दोनों क्षेत्रों के बीच समझ बनाने के लिए 20 से ज्यादा देशों में काम कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना था कि “यद्यपि हम मानते हैं कि भारत जैसे विशाल देश में स्थानीय पहल को सीधे लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन हम यह जरूर मानते हैं कि स्थानीय ज्ञान से जल की समस्या का समाधान निकल सकता है और इससे दुनिया के ज्ञान में भी इजाफा होगा” डायलॉग सचिवालय के निदेशक हेन्स वॉल्टर के मुताबिक “भारत में बातचीत की पद्धति काफी अप्रजातांत्रिक है, क्योंकि यहां प्रशासन की मनमर्जी से अपनी बातें लादता है।“ उनका आगे कहना था कि जल और पर्यावरण के प्रबंधन में पारंपरिक ज्ञान के प्रति सरकारी उत्साह की कमी को देखते हुए जरूरी है कि सरकारी विभाग और ग्रामीण समुदाय के बीच वार्ता चलाई जाए।
कोलवान के भालगुड़ी गांव में गैर-सरकारी संगठनों और गांववालों ने मिलकर सरकारी अटकलों को दूर किया और वर्षा ऋतु के पानी का संग्रहण किया। अब यह पानी गांव वालों की धरोहर है, जिन्होंने अपने पैसे, जमीन और श्रम से पानी का संग्रहण किया है।
स्रोत : प्रियमवदा कौशिक, 2002, वॉटर वॉच, द इंडियन एक्सप्रेस, नई दिल्ली, 17 मार्च, 2002
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