महाराष्ट्र

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भीमकुंड: जहां भीम ने कीचक का वध कर स्नान किया था
Posted on 11 Nov, 2010 10:15 AM
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में बसा अमरावती जिला जहां अपने प्राकृतिक व नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है वहीं यहां कई पौराणिक स्थल भी हैं जो महाभारत काल के हैं। सतपुड़ा पर्वत शृंखला से घिरी इन सुरम्य पहाडिय़ों के मध्य कभी विराट नगर था जहां नदियों व वनों से आच्छादित क्षेत्र थे। आजकल यह क्षेत्र परतवाड़ा जिला कहलाता है। यहीं पर चिखलदरा नामक वन क्षेत्र है। पहाडिय़ों से घिरे इस क्षेत्र में एक दक
सूचना का अधिकार
Posted on 29 Oct, 2010 09:52 AM सूचना के अधिकार पर केंद्रित योजना आयोग को विजन फाऊंडेशन द्वारा सौंपे गए दस्तावेज(२००५) के अनुसार- • संविधान के अनुच्छेद १९ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा में कहा गया है-भारत के सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति और अभिभाषण की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है।
पानी पर गलत बयानी
Posted on 30 Aug, 2010 09:05 AM महाराष्ट्र के जलसंसाधन मंत्री की विदर्भ में ताप विद्युतगृहों के विरुद्ध चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए अमरावती शहर के सीवेज के पानी के इस्तेमाल को लेकर भ्रामक घोषणा से पूरे इलाके में असंतोष व गुस्सा फैल गया है। इस आलेख से यह स्पष्ट होता है कि पानी की जबरदस्त कमी ने अब गंदे पानी की मिल्यिकत प्राप्त करने के भी कई दावेदार खड़े कर दिए हैं। महाराष्ट्र के अमरावती ताप विद्युतगृह का वर्षों से सार्वजनिक विरोध हो रहा है। विदर्भ क्षेत्र के किसानों को डर है कि यह विद्युत संयंत्र अपर-वर्धा सिंचाई परियोजना से पानी लेगा। गत 17 जून को इस विषय में अचानक ही समझौते के आसार नजर आने लगे। राज्य के जलसंसाधन मंत्री अमरावती के नागरिक प्रतिनिधियों और राजनीतिज्ञों से मिले और इस दौरान उन्होंने यह घोषणा कि यह ताप विद्युतगृह अपरवर्धा के पानी को छुएगा भी नहीं और इसके बदले यह अमरावती शहर के सीवरेज के पानी को रिसाइकल कर इस्तेमाल करेगा।

समुद्र में जाना, मगर संभलकर
Posted on 17 Aug, 2010 07:41 AM
मुंबई के समुद्र तट के पास सात अगस्त को दो पनामाई मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा और मर्चेन्ट वेसल खलीजा की टक्कर के बाद एक जहाज में से तेल रिसाव होना शुरू हुआ। जहाजरानी महानिदेशालय द्वारा शुरू की गई प्रारंभिक जांच में पता लगा है कि सम्भवत: दोनों जहाजों के बीच संचालन संबंधी खामी और रेडियो संचार में नाकामी की वजह से यह टक्कर हुई। इसके बाद से हर दिन समुद्र में एक टन तेल गिर रहा है और इस जहाज में करी
बांस बड़े काम की चीज है
Posted on 16 Jul, 2010 03:44 PM
बांस के अंदर दस आश्चर्य समाहित हैं। अगर इन्हें आप अच्छे से जान लें तो आपको समझ में आ जाएगा कि बांस की ताकत क्या है।
प्राकृतिक खेती से पटखनी खाती आधुनिक खेती
Posted on 16 Jul, 2010 03:09 PM
मैं महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में कृषि कार्य करता हूं। वहां 1975 से आज तक मैं खेती कर रहा हूं। 1960 के बाद जो खेती में व्यवस्थाएं प्रारंभ हुईं, वहीं से मैंने शुरुआत की थी। अब तक मुझे कृषि विज्ञान दो स्वरूपों में दिखा है। जब मैंने खेती प्रारंभ की तो उस समय परावलंबन का विज्ञान था।

उस वक्त मैंने रासायनिक खाद, जहरीली दवाईयां और बाहर से बीज लाकर खेती प्रारंभ की थी। परिश्रम करने की मन में अत्यंत इच्छा थी। परिश्रम के बल पर मैंने खेती से बहुत उत्पाद निकाले। 1983 में मुझे कई अवार्ड मिले।
वलनीः छब्बीस बरस की गवाही
Posted on 21 Mar, 2010 08:06 PM यह कहानी है नागपुर तालुका के गांव वलनी के लोगों की। वलनी में उन्नीस एकड़ का एक तालाब है। वलनीवासी 1983 से आज तक वे अपने एक तालाब को बचाने के लिए अहिंसक आंदोलन चला रहे हैं। छब्बीस वर्ष गवाह हैं इसके। न कोई कोर्ट कचहरी, न तोड़ फोड़, न कोई नारेबाजी। तालाब की गाद-साद सब खुद ही साफ करना और तालाब को गांव-समाज को सौंपने की मांग। हर सरकारी दरवाजे पर अपनी मांगों के साथ कर्तव्य भी बखूबी निभा रहा है यह छोटा-सा गांव। योगेश अनेजा, जो अब इस गांव के सुख-दुख से जुड़ गये हैं, वे 26 वर्ष के इस लम्बे दांस्तान को बयान कर रहे हैं

हम सब कलेक्टर के पास अर्जी लेकर गए थे। उन्होंने कहा कि मैं तो यहां नया ही आया हूं। मैं देखता हूं कि मामला क्या है। अर्जी के हाशिए में कोई टिप्पणी लिखकर उसे एस.डी.ओ.
जुलाई महीने में तालाब में बारिश का पानी भरने के बाद
ग्रामविकास की पाठशाला
Posted on 14 Mar, 2010 10:07 AM
तुलसीराम बाला बोरकर 20 साल पहले अपना गांव छोड़कर दूसरे गांव में रोजी रोटी के लिए गये थे। लेकिन आज वो अपने गांव में बागवानी खेती करके नगदी उत्पाद ले रहे हैं। इसी साल दो एकड़ खेती में फूलों की उपज करके तुलसीराम बोरकर ने दो लाख तीस हजार रुपयो का नगद मुनाफा कमाया। बेरोजगार तुलसीराम गांव क्यों वापस आएं, गांव में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ, बेरोजगारी और गरीबी से उठकर वो प्रगतिशील किसान कैसे बने?
स्थायी समस्या
Posted on 13 Feb, 2010 08:16 AM बचे हुए जंगलों और पूरी तरह से उन पर निर्भर लोगों का प्रश्न तो है ही, लेकिन कागज उद्योग के सामने कच्चे माल की जो भयंकर समस्या है, उसे भी नकारा नहीं जा सकता। कागज उद्योग विकास परिषद की कच्चा माल समिति ने हिसाब लगाया है कि सन् 2000 तक अगर प्रति व्यक्ति 4.5 किलोग्राम कागज की खपत के लिए तैयारी करनी हो तो कागज और गत्ते की उत्पादन क्षमता को 42.5 लाख टन तक और न्यूजप्रिंट की उत्पादन क्षमता को 12.89 लाख टन
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