पोपटराव पवार हमारे युवा पीढ़ी के सबसे अग्रणी जल योद्धाओं में से एक हैं। वैसे तो पवार का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का हिवरे बाजार गाँव है, लेकिन इनकी शिक्षा पुणे शहर में हुई,जहां के विश्वविद्यालय से उन्होंने एम कॉम की परीक्षा उत्तीर्ण की। किस प्रकार पवार गांव के विकास और समृद्धि के लिए समर्पित हुए, यह भी एक मजेदार घटना है।
सन् 1972 से पहले तक उनका हिवरे बाजार गांव संपन्न और आत्मनिर्भर था, लेकिन सन् 1972 के सूखे और अकाल की स्थिति बनने से इस गांव का पतन होने लगा। यह स्थिति सन् 1989 तक बनी रही, क्योंकि यहां पेय जल और सिंचाई के जल के अभाव में लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा था। मवेशी मर रहे थे और लोग बाहर काम की तलाश में भटकते रहते थे। पवार का इसी गांव में एक फार्म हाउस है, जहां वे कुछ दिनों के लिए आए हुए थे। उन्हें गांव की स्थिति न देखी गई और फिर उन्होंने गांव के सुधार और विकास को अपने जीवन का मकसद बना लिया और गांववालों के अनुरोध पर सरपंच बने। शुरुआत में उन्होंने गाँव वालों के साथ मिलकर स्कूल और सड़क निर्माण, वृक्षारोपण, जल पंढाल विकास तथा पेय जल की व्यवस्था बनाई। इस समय तक इस गाँव की प्रतिष्ठा का तो ये आलम था कि गैर सरकारी संगठन भी यहां कोई विकास कार्य शुरू करने से कतराते थे, लेकिन पवार ने हिम्मत नहीं हारी और वे अन्ना साहेब हजारे से मिले और उन्होंने हजारे को अपने क्षेत्र के विकास में सहयोग करने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार लिया और फिर हिवरे बाजार गाँव को ‘आदर्श गांव योजना’ के दायरे में ले लिया गया।
इन्होंने अपने आदर्श गांव योजना के तहत वृक्षारोपण के साथ-साथ मिट्टी और पानी को रोकने के काफी सफल प्रयास किए, जिससे देखते ही देखते यह क्षेत्र हरा- भरा हो गया। जंगल फिर से बढ़ने लगा, कृषि का उत्पादन चौगुना बढ़ा। इससे यहां की 300 एकड़ जमीन में सिंचाई होने लगी, जब कि पहले 15 एकड़ जमीन की भी सिंचाई नहीं हो पाती थी। चारे की बढ़त से दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ी। और यह गांव समृद्ध गांवों की श्रेणी में आ गया।
गांव में उनकी इसी कामयाबी के कारण महाराष्ट्र सरकार इस गाँव में एक ऐसा प्रशिक्षण केंद्र खोलने जा रही है, जहां इस राज्य के सभी संरपंचों को प्रशिक्षण दिया जा सके और जहां सरपंच आकर इस गांव में हुए परिवर्तनों को देख सकें।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :
पोपट राव पवार, हिवरे बाजार, अहमद नगर महाराष्ट्र,
फोन : 0241- 68719/407
सन् 1972 से पहले तक उनका हिवरे बाजार गांव संपन्न और आत्मनिर्भर था, लेकिन सन् 1972 के सूखे और अकाल की स्थिति बनने से इस गांव का पतन होने लगा। यह स्थिति सन् 1989 तक बनी रही, क्योंकि यहां पेय जल और सिंचाई के जल के अभाव में लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा था। मवेशी मर रहे थे और लोग बाहर काम की तलाश में भटकते रहते थे। पवार का इसी गांव में एक फार्म हाउस है, जहां वे कुछ दिनों के लिए आए हुए थे। उन्हें गांव की स्थिति न देखी गई और फिर उन्होंने गांव के सुधार और विकास को अपने जीवन का मकसद बना लिया और गांववालों के अनुरोध पर सरपंच बने। शुरुआत में उन्होंने गाँव वालों के साथ मिलकर स्कूल और सड़क निर्माण, वृक्षारोपण, जल पंढाल विकास तथा पेय जल की व्यवस्था बनाई। इस समय तक इस गाँव की प्रतिष्ठा का तो ये आलम था कि गैर सरकारी संगठन भी यहां कोई विकास कार्य शुरू करने से कतराते थे, लेकिन पवार ने हिम्मत नहीं हारी और वे अन्ना साहेब हजारे से मिले और उन्होंने हजारे को अपने क्षेत्र के विकास में सहयोग करने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार लिया और फिर हिवरे बाजार गाँव को ‘आदर्श गांव योजना’ के दायरे में ले लिया गया।
इन्होंने अपने आदर्श गांव योजना के तहत वृक्षारोपण के साथ-साथ मिट्टी और पानी को रोकने के काफी सफल प्रयास किए, जिससे देखते ही देखते यह क्षेत्र हरा- भरा हो गया। जंगल फिर से बढ़ने लगा, कृषि का उत्पादन चौगुना बढ़ा। इससे यहां की 300 एकड़ जमीन में सिंचाई होने लगी, जब कि पहले 15 एकड़ जमीन की भी सिंचाई नहीं हो पाती थी। चारे की बढ़त से दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ी। और यह गांव समृद्ध गांवों की श्रेणी में आ गया।
गांव में उनकी इसी कामयाबी के कारण महाराष्ट्र सरकार इस गाँव में एक ऐसा प्रशिक्षण केंद्र खोलने जा रही है, जहां इस राज्य के सभी संरपंचों को प्रशिक्षण दिया जा सके और जहां सरपंच आकर इस गांव में हुए परिवर्तनों को देख सकें।
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