इंदौर, 29 जुलाई (भाषा)। जबर्दस्त भौगोलिक हलचलों की गवाह रही मध्य प्रदेश स्थित नर्मदा घाटी में खोजकर्ताओं के समूह ने एक प्राचीन नदी के वजूद के निशान ढूंढ निकालने का दावा किया है। खोजकर्ताओं के मुताबिक यह विलुप्त नदी कम से कम 6.5 करोड़ साल पुरानी है।
‘मंगल पंचायत परिषद’ के प्रमुख विशाल वर्मा ने रविवार को बताया कि हमने नजदीकी धार जिले में एक विलुप्त नदी के वजूद के निशान खोज निकाले हैं। यह नदी 8.6 करोड़ साल से 6.5 करोड़ साल पूरानी है। यह नदी पथरीले तल पर बहुत तेजी से बह रही थी और उसका पाट काफी चौड़ा था। उन्होंने बताया कि प्राचीन नदी के तेज प्रवाह ने उसके तट की चट्टानों को तराश-तराश कर उन्हें टापूनुमा उभारों में बदल दिया था। किन्हीं कारणों से जमीन की गहराइयों से बाहर आई ये चट्टानें आज भी देखी जा सकती है। वर्मा का अनुमान है कि कालक्रम में भौगोलिक हलचलों के चलते बैसाल्टिक लावे ने प्राचीन नदी को ढंककर उसे लील लिया। उन्होंने बताया कि हमें प्राचीन नदी के निशानों के ठीक ऊपर बैसाल्टिक चट्टानों का बड़ा जमाव भी मिला है। यह जमाव करोड़ों साल पहले उस स्थान पर बैसाल्टिक लावे की हलचल से नदी का वजूद मिटने की ओर सीधा इशारा करता है।
बहरहाल, खोजकर्ता समूह इस पहलू पर भी अध्ययन कर रहा है कि उसे प्राचीन नदी के जो निशान मिले हैं, उनका नर्मदा के उद्गम के शुरुआती दौर से किसी तरह का जुड़ाव तो नहीं है। वर्मा ने बताया कि हमारे पास इस पहलू पर विचार करने के पर्याप्त कारण हैं। अव्वल तो हमें प्राचीन नदी के निशान नर्मदा के मौजूदा पाट से करीब 10 किलोमीटर दूर समानांतर तौर पर मिले हैं। दूसरे, प्राचीन नदी की बहने की दिशा भी पूर्व से पश्चिम की ओर प्रतीत होती है, जो नर्मदा के प्रवाह की मौजूदा दिशा से मेल खाती है। हालांकि, जैसा कि वे बताते हैं कि हम फिलहाल निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि प्राचीन नदी किसी रूप में नर्मदा का हिस्सा थी या नहीं। लेकिन हमें प्राचीन नदी के जो निशान मिले हैं, वे विस्तृत अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण आधार है और नर्मदा घाटी में नदियों के इतिहास पर नई रोशनी डाल सकते हैं।
‘मंगल पंचायत परिषद’ के प्रमुख विशाल वर्मा ने रविवार को बताया कि हमने नजदीकी धार जिले में एक विलुप्त नदी के वजूद के निशान खोज निकाले हैं। यह नदी 8.6 करोड़ साल से 6.5 करोड़ साल पूरानी है। यह नदी पथरीले तल पर बहुत तेजी से बह रही थी और उसका पाट काफी चौड़ा था। उन्होंने बताया कि प्राचीन नदी के तेज प्रवाह ने उसके तट की चट्टानों को तराश-तराश कर उन्हें टापूनुमा उभारों में बदल दिया था। किन्हीं कारणों से जमीन की गहराइयों से बाहर आई ये चट्टानें आज भी देखी जा सकती है। वर्मा का अनुमान है कि कालक्रम में भौगोलिक हलचलों के चलते बैसाल्टिक लावे ने प्राचीन नदी को ढंककर उसे लील लिया। उन्होंने बताया कि हमें प्राचीन नदी के निशानों के ठीक ऊपर बैसाल्टिक चट्टानों का बड़ा जमाव भी मिला है। यह जमाव करोड़ों साल पहले उस स्थान पर बैसाल्टिक लावे की हलचल से नदी का वजूद मिटने की ओर सीधा इशारा करता है।
बहरहाल, खोजकर्ता समूह इस पहलू पर भी अध्ययन कर रहा है कि उसे प्राचीन नदी के जो निशान मिले हैं, उनका नर्मदा के उद्गम के शुरुआती दौर से किसी तरह का जुड़ाव तो नहीं है। वर्मा ने बताया कि हमारे पास इस पहलू पर विचार करने के पर्याप्त कारण हैं। अव्वल तो हमें प्राचीन नदी के निशान नर्मदा के मौजूदा पाट से करीब 10 किलोमीटर दूर समानांतर तौर पर मिले हैं। दूसरे, प्राचीन नदी की बहने की दिशा भी पूर्व से पश्चिम की ओर प्रतीत होती है, जो नर्मदा के प्रवाह की मौजूदा दिशा से मेल खाती है। हालांकि, जैसा कि वे बताते हैं कि हम फिलहाल निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि प्राचीन नदी किसी रूप में नर्मदा का हिस्सा थी या नहीं। लेकिन हमें प्राचीन नदी के जो निशान मिले हैं, वे विस्तृत अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण आधार है और नर्मदा घाटी में नदियों के इतिहास पर नई रोशनी डाल सकते हैं।
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