बिजुरी- म.प्र.अनूपपुर जिले के कोयलांचल क्षेत्र का प्रमुख नगर बिजुरी लंबे समय से साफ और पर्याप्त पानी की लड़ाई लड़ रहा है। मध्यप्रदेश सरकार एवं कालरी प्रबंधन द्वारा करोड़ों खर्च के बाद भी यहां पेयजल के नाम पर आम आदमी के हिस्से में कोयला खदानों से निकलने वाला काला दूषित बदबूदार पानी ही है।
उल्लेखनीय है कि बिजुरी नगरपालिका का गठन वर्ष 1979-80 के दशक मे बिजुरी से कुछ ग्रामीण वार्डों को जोड़कर किया गया था इसी दशक में बिजुरी में कोयला कंपनी की विभिन्न भूमिगत खदानों का प्रारब्ध भी हुआ इन दोनों ही संस्थाओं का उद्देश्य अपने क्षेत्रांतर्गत बसे 32000 की आबादी को प्राथमिकता के तौर पर बुनियादी सुविधाए देना रहा है और इन सुविधाओं के आधार पर विकास करना रहा है किन्तु 80 के दशक से लेकर अब तक यहां की आबादी बुनियादी सुविधाओं के तौर पर होने वाले विकास को तरस रही है। नगर में बसे लोगों की पहली आवश्यकता पानी की है जिसे देना नगर पालिका बिजुरी का प्रमुख काम है इसके लिए नगरपालिका द्वारा नल व्यवस्था एवं टैंकर की व्यवस्था करके नगर में पानी देने का काम किया जाता है और यह काम बारह माह नगर में जारी रहता है बाजार का वार्ड पूर्णतः नल की व्यवस्था पर ही निर्भर है टैंकर की व्यवस्था नगरपालिका के द्वारा पूरक व्यवस्था के रूप में की गई है कुछ एक नगरपालिका के ग्रामीण वार्डों को छोड़ दिया जाए तो सभी वार्डों में पानी की गंभीर समस्या है। नगर वासियों की माने तो टैंकर का पानी बिजुरी कालरी के फिल्टर प्लांट से लाकर नगरपालिका मुहैया कराती है जो साफ सुथरा रहता है जिसे पीने पूरा नगर ललाइत रहता है पर यह व्यवस्था पानी बांट रहे प्रभारी के मर्जी व नगर के कुछ खास लोगों तक ही सीमित है आम रहवासी इस व्यवस्था में भागीदार नहीं है क्योंकि उनकी पहुंच कमजोर है मसलन एसे रहवासी नल से निकला गंदा काला बदबूदार पानी पीने को मजबूर हैं।
नगर के बाजार क्षेत्र के लोगों ने बताया कि नगर के नलों से काला कोयले से सना कार्बन युक्त बदबू मारता पानी निकलता है जिससे पानी के बर्तन में भी कालापन व बदबू छा जाता है जिसे पीना तो दूर घरेलू कामकाज में उपयोग में भी लाने का मन नहीं करता, पीना तो दूर की बात है यदि किसी जतन से यह पानी छानकर उपयोगी बनाया जाता है तो भी यह अपने असली रंग को नहीं छोड़ पाता है साथ ही फिल्टर को भी जाम कर देता है।
नगर के लोगों ने बताया कि वर्ष 2007-08 में नगर पालिका बिजुरी के द्वारा सत्ताधारी दल के नेता के साफ सुथरी पानी देने की योजना के नाम पर राज्य सरकार व नगरपालिका की राशि से बहेरा बांध भूमिगत खदान के समीप खदान के अंदर से बाहर कनई नदी में फेके जा रहे रॉ वाटर को संचित कर फिल्टर के माध्यम से नगर मे पिलाए जाने के उद्देश्य से कनई नल जल योजना बनी जिसमें फिल्टर प्लांट एवं पाइप लाइन विस्तार पर राज्य शासन व नगरपालिका ने लगभग 1 करोड़ रुपए की राशि लगा दी तथा कालरी प्रबंधन ने सैटलिंग टैंक व बिजली का सहयोग दिया किन्तु यह योजना जिन उद्देश्यों को लेकर अपनी अस्तित्व में आया वह उद्देश्य भावी मार्गदर्शन व तकनीकी कमियों के कारण नगर वासियों के लिए कारगर न हो सका।
कनई जल योजना भले ही नगर के आम आदमी के लिए कारगर साबित न हुई हो किन्तु इस योजना को मूर्त रूप देकर प्रदेश सरकार से नगर पालिका बिजुरी व तत्कालीन पदेन परिषद ने कनई में फेंके जा रहे कोयला खदान के रॉ वाटर को संचित कर उपयोगी बनाए जाने को लेकर प्रदेश में अव्वल स्थान प्राप्त किया तथा अपनी पीठ सरकार से थपथपवाई और सरकार ने भी बिना जमीनी हकीकत देखे ही जलाभिषेक अभियान के तहत इनाम में लाखों रुपए दे दी।
गत दिनों प्रदेश सरकार द्वारा पानी की व्यवस्था को लेकर एक कार्य योजना तैयार की गई जिसमें प्रदेश के उन नगरों को चिन्हित किया गया जहां के रहवासी गंदा पानी पीते हैं। इसमें अनूपपुर जिले के बिजुरी नगरपालिका का नाम नहीं है जबकि नगरपालिका के गठन से लेकर अब तक नगर की जनता कोयला खदानों से निकलने वाली कोयला कार्बन युक्त बदबूदार पानी पी रही है। सरकार की मंशा दूषित पानी पीने वालो को शायद साफ सुथरी पानी पिलाने की है इसके लिए अतिरिक्त बजट की भी व्यवस्था दी जा रही है पर बिजुरी नगर पालिका का नाम न होना शायद यह दर्शाता है कि इस नगर का कथित लाडला सत्ताधारी दल का जननायक को बिजुरी कि दशा नहीं दिख पा रही है या वह अपनी करनी छुपाने यहां के जनता के हितों पर जान बूझ कर उपेक्षा बरत रहा है तथा सारा दोष कालरी प्रबंधन पर मढ़ सरकार से झूठी वाहवाही लेने पर कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है? यदि ऐसा नहीं तो बिजुरी नगर दूषित पानी पीने की सूची से गायब कैसे हो गया।
नगर पालिका की माने तो नगरपालिका के पास खुद का न तो टैंकर और न ही ट्रैक्टर है वह किराए के दो टैंकर व ट्रैक्टर के सहारे रात दिन पानी देने की कवायद करता है ताकि पानी की कमी लोगों को न हो, वहीं नगर पालिका के कई नग टैंकर व ट्रैक्टर स्टोर रूम में कबाड़ की तरह पड़े हैं जिनके बनने के लिए राशि का रोना रोकर किराए की व्यवस्था के आधार पर लाखों रुपए प्रतिवर्ष पानी वितरण के नाम पर पानी की तरह बहाया जा रहा है और उस पानी रूपी पैसे में नगर पालिका के अधिकारी कर्मचारी व स्थानीय जनप्रतिनिधि गोते लगा रहे हैं।
कनई नल जल योजना का पानी पहले से ही नगर के लोगों के लिए रोना बना है किन्तु नगरपालिका कनई के पानी को आम जन को पिलाने के लिए वार्डों में पाईपलाइन विस्तार का कार्य करा रही है। बहरहाल नगर की जनता बूंद-बूंद पानी को मोहताज होकर चुनावी समर में नगर में पहुंचे मुख्यमंत्री के आगे गुहार लगा चुकी है। देखना यह होगा कि इन तमाम प्रयासों से क्या आम आदमी को साफ पानी नसीब हो सकेगा?
उल्लेखनीय है कि बिजुरी नगरपालिका का गठन वर्ष 1979-80 के दशक मे बिजुरी से कुछ ग्रामीण वार्डों को जोड़कर किया गया था इसी दशक में बिजुरी में कोयला कंपनी की विभिन्न भूमिगत खदानों का प्रारब्ध भी हुआ इन दोनों ही संस्थाओं का उद्देश्य अपने क्षेत्रांतर्गत बसे 32000 की आबादी को प्राथमिकता के तौर पर बुनियादी सुविधाए देना रहा है और इन सुविधाओं के आधार पर विकास करना रहा है किन्तु 80 के दशक से लेकर अब तक यहां की आबादी बुनियादी सुविधाओं के तौर पर होने वाले विकास को तरस रही है। नगर में बसे लोगों की पहली आवश्यकता पानी की है जिसे देना नगर पालिका बिजुरी का प्रमुख काम है इसके लिए नगरपालिका द्वारा नल व्यवस्था एवं टैंकर की व्यवस्था करके नगर में पानी देने का काम किया जाता है और यह काम बारह माह नगर में जारी रहता है बाजार का वार्ड पूर्णतः नल की व्यवस्था पर ही निर्भर है टैंकर की व्यवस्था नगरपालिका के द्वारा पूरक व्यवस्था के रूप में की गई है कुछ एक नगरपालिका के ग्रामीण वार्डों को छोड़ दिया जाए तो सभी वार्डों में पानी की गंभीर समस्या है। नगर वासियों की माने तो टैंकर का पानी बिजुरी कालरी के फिल्टर प्लांट से लाकर नगरपालिका मुहैया कराती है जो साफ सुथरा रहता है जिसे पीने पूरा नगर ललाइत रहता है पर यह व्यवस्था पानी बांट रहे प्रभारी के मर्जी व नगर के कुछ खास लोगों तक ही सीमित है आम रहवासी इस व्यवस्था में भागीदार नहीं है क्योंकि उनकी पहुंच कमजोर है मसलन एसे रहवासी नल से निकला गंदा काला बदबूदार पानी पीने को मजबूर हैं।
नल का काला बदबूदार पानी
नगर के बाजार क्षेत्र के लोगों ने बताया कि नगर के नलों से काला कोयले से सना कार्बन युक्त बदबू मारता पानी निकलता है जिससे पानी के बर्तन में भी कालापन व बदबू छा जाता है जिसे पीना तो दूर घरेलू कामकाज में उपयोग में भी लाने का मन नहीं करता, पीना तो दूर की बात है यदि किसी जतन से यह पानी छानकर उपयोगी बनाया जाता है तो भी यह अपने असली रंग को नहीं छोड़ पाता है साथ ही फिल्टर को भी जाम कर देता है।
कनई योजना भी दे रही धोखा
नगर के लोगों ने बताया कि वर्ष 2007-08 में नगर पालिका बिजुरी के द्वारा सत्ताधारी दल के नेता के साफ सुथरी पानी देने की योजना के नाम पर राज्य सरकार व नगरपालिका की राशि से बहेरा बांध भूमिगत खदान के समीप खदान के अंदर से बाहर कनई नदी में फेके जा रहे रॉ वाटर को संचित कर फिल्टर के माध्यम से नगर मे पिलाए जाने के उद्देश्य से कनई नल जल योजना बनी जिसमें फिल्टर प्लांट एवं पाइप लाइन विस्तार पर राज्य शासन व नगरपालिका ने लगभग 1 करोड़ रुपए की राशि लगा दी तथा कालरी प्रबंधन ने सैटलिंग टैंक व बिजली का सहयोग दिया किन्तु यह योजना जिन उद्देश्यों को लेकर अपनी अस्तित्व में आया वह उद्देश्य भावी मार्गदर्शन व तकनीकी कमियों के कारण नगर वासियों के लिए कारगर न हो सका।
जलाभिषेक अभियान में अव्वल
कनई जल योजना भले ही नगर के आम आदमी के लिए कारगर साबित न हुई हो किन्तु इस योजना को मूर्त रूप देकर प्रदेश सरकार से नगर पालिका बिजुरी व तत्कालीन पदेन परिषद ने कनई में फेंके जा रहे कोयला खदान के रॉ वाटर को संचित कर उपयोगी बनाए जाने को लेकर प्रदेश में अव्वल स्थान प्राप्त किया तथा अपनी पीठ सरकार से थपथपवाई और सरकार ने भी बिना जमीनी हकीकत देखे ही जलाभिषेक अभियान के तहत इनाम में लाखों रुपए दे दी।
पानी दूषित पर नगर नहीं
गत दिनों प्रदेश सरकार द्वारा पानी की व्यवस्था को लेकर एक कार्य योजना तैयार की गई जिसमें प्रदेश के उन नगरों को चिन्हित किया गया जहां के रहवासी गंदा पानी पीते हैं। इसमें अनूपपुर जिले के बिजुरी नगरपालिका का नाम नहीं है जबकि नगरपालिका के गठन से लेकर अब तक नगर की जनता कोयला खदानों से निकलने वाली कोयला कार्बन युक्त बदबूदार पानी पी रही है। सरकार की मंशा दूषित पानी पीने वालो को शायद साफ सुथरी पानी पिलाने की है इसके लिए अतिरिक्त बजट की भी व्यवस्था दी जा रही है पर बिजुरी नगर पालिका का नाम न होना शायद यह दर्शाता है कि इस नगर का कथित लाडला सत्ताधारी दल का जननायक को बिजुरी कि दशा नहीं दिख पा रही है या वह अपनी करनी छुपाने यहां के जनता के हितों पर जान बूझ कर उपेक्षा बरत रहा है तथा सारा दोष कालरी प्रबंधन पर मढ़ सरकार से झूठी वाहवाही लेने पर कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है? यदि ऐसा नहीं तो बिजुरी नगर दूषित पानी पीने की सूची से गायब कैसे हो गया।
टैंकर की कमी बनी बाधक
नगर पालिका की माने तो नगरपालिका के पास खुद का न तो टैंकर और न ही ट्रैक्टर है वह किराए के दो टैंकर व ट्रैक्टर के सहारे रात दिन पानी देने की कवायद करता है ताकि पानी की कमी लोगों को न हो, वहीं नगर पालिका के कई नग टैंकर व ट्रैक्टर स्टोर रूम में कबाड़ की तरह पड़े हैं जिनके बनने के लिए राशि का रोना रोकर किराए की व्यवस्था के आधार पर लाखों रुपए प्रतिवर्ष पानी वितरण के नाम पर पानी की तरह बहाया जा रहा है और उस पानी रूपी पैसे में नगर पालिका के अधिकारी कर्मचारी व स्थानीय जनप्रतिनिधि गोते लगा रहे हैं।
बिन पानी पाईपलाइन का विस्तार
कनई नल जल योजना का पानी पहले से ही नगर के लोगों के लिए रोना बना है किन्तु नगरपालिका कनई के पानी को आम जन को पिलाने के लिए वार्डों में पाईपलाइन विस्तार का कार्य करा रही है। बहरहाल नगर की जनता बूंद-बूंद पानी को मोहताज होकर चुनावी समर में नगर में पहुंचे मुख्यमंत्री के आगे गुहार लगा चुकी है। देखना यह होगा कि इन तमाम प्रयासों से क्या आम आदमी को साफ पानी नसीब हो सकेगा?
Path Alias
/articles/kaalae-paanai-sae-maukatai-kae-khailaapha-ladataa-eka-nagara
Post By: Hindi