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मध्य प्रदेश
पानी : बाजार के बीच सेवा का जज्बा
Posted on 25 May, 2015 10:04 AMभारत में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता रहा है। पानी की कमी वाले राजस्थान में फू
नर्मदा प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रयासों का आगाज
Posted on 22 May, 2015 03:33 PMहर्ष का विषय है कि मध्यप्रदेश सरकार, इस साल, नर्मदा के किनारे बसे पाँच विकासखण्डों में जैविक खेती के लिए किसानों को रियायती दरों पर जैविक खाद और कीटनाशक उपलब्ध करावेगी। मध्यप्रदेश सरकार का मानना है कि इससे दो फायदे होंगे। पहला फायदा - नर्मदा का पानी प्रदूषण मुक्त होगा। दूसरा फायदा - जैविक खेती से उत्पादन बढ़ेगा। जैविक फसल के अच्छे दाम मिलने से किसानों की आ
माण्डव : ए लव स्टोरी ऑफ वॉटर
Posted on 12 May, 2015 09:53 AMपानी यात्रा-3 संस्मरण
... मध्य प्रदेश के धार जिले का माण्डव यानि पर्यटन की दुनिया में भारत का सितारा...!
...बादलों के बीच पहाड़ियों, किलों, खण्डहरों से झाँकते इतिहास के इन्द्रधनुषी पृष्ठ...!
... सिटी ऑफ जॉय... आनन्द की नगरी... शादियाबाद!
... माण्डव यानि बाजबहादुर और रानी रूपमति का पवित्र अनुराग...!
... जिसके पीछे है- संगीत के राग...!
कोई लौटा दे वो बीते दिन
Posted on 09 May, 2015 04:10 PMमध्य प्रदेश जंगल, खनिज सम्पदा, प्राकृतिक संसाधनों तथा अन्य मामलों में भी अर्से से 'सम्पन्न’ रहा है। कमोबेश पानी प्रबन्धन की परम्पराओं के मामले में भी इस राज्य का 'भाग्य’ काफी प्रबल रहा है। आखिर ऐसी कौन-सी प्रमुख तकनीक रही है - जो मध्य प्रदेश में नहीं रही होगी। यह इस राज्य के लिये गर्व की बात है कि क्षिप्रा नदी में अभी भी 2300 से 2600 साल पुराने ऐसे सिक्के
बारिश की मार से बेअसर रहे बैगाओं के बीज
Posted on 08 May, 2015 11:19 AMमध्य प्रदेश के बैगा बेल्ट में पचास प्रजातियों के बीज से किसानों की मुस्कुराहट बरकरारअस्तित्त्व के लिये विरोध
Posted on 04 May, 2015 04:11 PMजब प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी गंगा के बेहतरीन उपयोग पर दिल्ली में अहम बैठक कर रहे थे, ठीक उसी समय मालवा क्षेत्र के 30 लोग अपने जीवन का सबसे अहम निर्णय लेने जा रहे थे। इस बात को तीन हफ्ते हो रहे हैं।बंजर पहाड़ी तक पहुँचाया पानी और उगा दिए जंगल
Posted on 04 May, 2015 11:31 AMकहीं सूबे की राजधानी तो कहीं आदिवासी अंचलों में पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं की जीवटता बनी मिसाल।सात साल पहले शुरू हुई यह कोशिश अब हरियाली चादर बनकर साफ़ दिख रही है। तब से यहाँ नीम के अलावा कई नए पौधे लग रहे हैं और उनके लिये खाद, पानी, दीमक ट्रीटमेंट और खरपतवार का काम लगातार जारी है। इन सालों में यहाँ हरियाली ही नहीं दिखती है, बल्कि मोर, तोता और कोयल की आवाजों को भी सुना जा सकता है। जीवों को फलदार घर मिल गए हैं। पहले सुरक्षा न होने से कई पेड़ जल गए थे, पर अब ऐसा नहीं है।
इंसान जहाँ अपने लालच के लिये पानी तक को लूट रहा है और उस पर रहने वाले जंगल, जमीन और जानवरों को भी नहीं छोड़ रहा है, वहीं कई बड़े शहरों और सुदूर गाँवों में ऐसे लोग आज भी हैं जो पानी के जरिए एक सुन्दर संसार को बनाने और उसकी रखवाली में लगे हुए हैं।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक पर्यावरणप्रेमी की जिद बंजर पहाड़ी पर जंगल उगा रही है, वहीं रतलाम जिला मुख्यालय से कई कोस दूर जनजाति बाहुल्य गाँवों में सामूहिक प्रयासों से बंजर ज़मीन इस हद तक हरी बन रही है कि यहाँ पचास हजार से ज्यादा आम के पेड़ लोगों की आजीविका का बड़ा सहारा बन गए हैं। जाहिर है उन्होंने पानी से न केवल जंगल, जमीन और जानवरों को खुशहाल बनाया, बल्कि जल से जीवन के सिद्धान्त को अपनी जीवन शैली में उतारा।
फिर जल-सत्याग्रह
Posted on 01 May, 2015 02:30 PMमध्य प्रदेश के घोघलगाँव में जल सत्याग्रह को आज लेख लिखने तक 20 दिन हो गए। सत्याग्रहियों के पैर गल रहे हैं, लगातार खुजली हो रही है। बुखार की शिकायत लगातार बनी हुई है। खून पैरों से रिसने लगा है। किन्तु ओंकारेश्वर बाँध प्रभावितों में अपने अधिकारों के लिये उत्साह में कमी नहीं हुई। सत्याग्रह स्थल पर एकदा, गोल सैलानी, सकतापुर, टोकी, केलवा, खुर्द, केलवा बुजर्ग, कामनाखेड़ा आदि डूब प्रभावित गाँवों के लोग लगातार पहुँच कर अपना समर्थन व्यक्त कर रहे हैं।घोघलगाँव के जल सत्याग्रहियों को देखने जब सरकारी डॉक्टर्स की टीम पहुँची और उन्होंनेे जल सत्याग्रहियों के स्वास्थ्य की जाँच की। उन्होंने देखा कि जल सत्याग्रहियों के पैर गल गए हैं और खून आ रहा है। सरकारी डॉक्टर्स ने इलाज का आग्रह किया तो सत्यग्रहियों ने कहा कि हमारा इलाज सरकार के पास है वो हमारी माँगे पूरी करे। हमारा इलाज हो जाएगा इसके अलावा हम कोई इलाज नहीं लेंगे। बात सही है। न्यायपूर्ण है।