हिमाचल प्रदेश

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डेढ़ सौ किलोमीटर में दम घुट कर लुप्त हो जाएगी सतलुज
Posted on 08 Feb, 2011 10:10 AM

यदि सतलुज ताल में प्रोजेक्टों के तहत कैट प्लान पर करोड़ों रुपए की राशि वृक्षारोपण पर सही ढंग से सही समय पर खर्च नहीं की गई और वनीकरण तथा संरक्षित क्षेत्र मुहिम समय पर सिरे नहीं चढ़ी, तो सतलुज में गाद की समस्या विकराल रूप ले सकती है…

पानी के लिये जब रानी ने जान दे दी
Posted on 05 Feb, 2011 01:52 PM

चम्बा का सूही मेले एवं त्योहारों के महत्व को समस्त संसार समझता है इसीलिये एक कोने से दूसरे कोने तक मेलों का आयोजन किया जाता रहा है और किया जाता है। अपनी सांस्कृतिक थाती को जितना हम मेलों व त्यौहारों के माध्यम से सुरक्षित रख सकते हैं, उतना शायद ही किसी अन्य माध्यम से रख पाएं।

रहट से ध्यान गया भटक
Posted on 12 Jan, 2011 10:29 AM रहट सिंचाई तकनीक के नाम से शायद अब अधिकांश लोग वाकिफ भी नहीं रहे होंगे। इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे वहीं बिजली और डीजल की बचत भी होती थी। वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। अति सरल और किफायती तकनीक को इस्तेमाल करने में किसान अब बोझ समझने लगे हैं।
हिमालय में भी पड़ेगा सूखा, बीमारियां करेंगी घुसपैठ
Posted on 20 Nov, 2010 07:08 AM
ग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बुरा असर हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। वर्ष 1970 की तुलना में 2030 तक हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में बारिश और सूखा दोनों बढ़ेंगे। यहां का प्रमुख फल सेब भी संकट में घिरा होगा। हालांकि इसमें सिर्फ चार क्षेत्रों, हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि, जल, जंगल और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। इसमें वर्ष 1970 के आंकड़ों को आधार मानकर 2030 तक की स्थिति का आकलन
कहीं झीलों का शहर कहीं लहरों पर घर
Posted on 17 Oct, 2010 08:51 AM सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।

डल लेक

जहां लहरों पर दिखते हैं घर


डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक
पुष्कर लेक
कपूर बावड़ी (Kapoor Baori)
Posted on 20 Sep, 2010 01:20 PM

जिला हमीरपुर के भोटा कस्वे में स्थित यह प्राचीन बावड़ी लगभग 50 वर्ष पुरानी है। लाला कपूर द्वारा निर्मित यह बावड़ी 2016 विक्रमी सम्बत में किया गया था। पेय जल का मुखय स्त्रोत आज सिर्फ नहाने-धोने के ही काम आत है। लबालब जल से भरी यह बावड़ी आज भी 60-70 परिवारों को स्वच्छ पेय जल प्रदान करने में सक्षम है जरूरत है इसे सम्भालने संवारने की।

सरांह बावड़ी (Sarahan Baori)
Posted on 20 Sep, 2010 12:39 PM

जिला सिरमौर में सरांह से 15 किलो मीटर दूर कुमार हट्‌टी की तरफ स्थित यह प्राचीन बावड़ी व साथ में सरांए बयाँ करती है कि कभी यहां राहगीरों के मेले लगा करते थे। तथा सारी थकान मिटाने बाला निर्मल, ठण्डे जल से अपनी मुख प्यास मिटा कर आराम किया जाता होगा। आज राह गीर इसके पास से एक पडाव भी नहीं लेते और न ही इसकी तरफ निहारते हैं। प्राचीन निर्माण कला का विशिष्ट नमूना आज भी नवनिर्मित कला को टक्कर देती है।

थुरल बावड़ी (Bawri at Thural, Kangra)
Posted on 20 Sep, 2010 12:25 PM

थुरल बावड़ी: जिला कांगड़ा के नौण गांव में स्थित एक अन्य बावड़ी जिसकी 10 वर्ष पूर्व पंचायत द्वारा मरम्मत की गई थी। तथा एक व्यवस्था प्रदान की गई ताकि जल देवता की शुद्धि बरकरार रहे। इसके बगल में पूर्वजो के मोहरे आज भी संस्कृति की मजबूती के प्रमाण है।

गौरी शंकर मन्दिर बावड़ी, भिडा, जिला हमीरपुर
Posted on 20 Sep, 2010 11:48 AM

जिला हमीरपुर के भिडा में सडक के किनारे गौरी शंकर मन्दिर के समीप स्थित यह बावड़ी असंखय राहगीरों के साथ-साथ ग्रामीणों को भी पेयजल प्रदान कर सकून का एहसास करवाती है।साल भर जल से लवालव भरी रहने वाली यह बावड़ी लगभग 150 परिवारों को प्रतिदिन प्राणदान देने में सक्षम है।

च्योग बाबड़ी (Chayog Shiv Bawri)
Posted on 20 Sep, 2010 11:24 AM

गांव च्योग जिला सिरमौर में स्थित यह जल बिंदु नीलकंठ महादेव मन्दिर कमेंटी द्वारा हाल ही में पुनः स्थापित किया गया है। नीलकंठ महादेव मन्दिर में आज भी पूजा अर्चना इसी बावड़ी के जल से की जाती है। गांव के 50 परिवारों को आज भी प्राणदान देने में सक्षम है यह बावड़ी ।

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