हिमाचल प्रदेश

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जब तक बांध सुरक्षा कानून नहीं बनेंगे तब तक होते रहेंगे हादसे
Posted on 29 Jun, 2014 12:51 PM

बांधों की सुरक्षा, उनके रख-रखाव और प्रबंधन में खासी लापरवाही के चलते पिछले कुछ वर्षों में जान-म

कैसे मिले ‘डूबते’ को सहारा
Posted on 13 Jun, 2014 04:47 PM हिमाचल प्रदेश में नदी में बहे इंजीनियरिंग छात्रों की घटना ने देश को झकझोर दिया है। देश में हर साल इस तरह की घटनाएं होती हैं। राजनेताओं से लेकर प्रशासन तक, सभी चिंता प्रकट करते हैं। आवश्यक कदम उठाने का विश्वास दिलाते हैं लेकिन घटना की पुनरावृत्ति नहीं रोक पाते। प्रशासन तो लापरवाह है ही, हम भी कम नहीं। बेखौफ नदी, नालों और तालाबों में उतर जाते हैं। आखिर कहां है खामी? कैसे सुधरें हालात?
लापरवाही की लहरों पर मौत
Posted on 13 Jun, 2014 03:33 PM

बरसात में पानी बढ़ते ही बांधों से पानी छोड़ने का सिलसिला तेज हो जाता है। गर्मी और जाड़े में अधि

बांध से सुरक्षा
Posted on 10 Jun, 2014 09:40 AM 18 छात्र और 6 छात्राओं की इस हत्या नें तथाकथित रन आफ द रीवर यानि स
झील में झांकता मिथक
Posted on 02 Apr, 2014 03:51 PM हिमाचल सुरम्य झीलों, नयनाभिराम पर्वतों-जंगलों और मंदिरों-मेलों का प्रदेश है। यहां के सिरमौर में रेणुका झील की सुंदरता निहारते बनती है। इस झील के किनारे बने मंदिरों और वहां हर साल लगने वाले मेले के जरिए हिमाचली लोक-संस्कृति की झलक मिलती है। वहां से लौट कर इस बारे में बता रही हैं जगन सिंह।
परियोजनाओं पर तुरंत प्रतिबंध
Posted on 31 Jan, 2014 03:51 PM पनबिजली विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् आरएल जस्टा से अश्वनी वर्मा की बातचीत

अंधाधुंध परियोजनाओं से क्या नुकसान हो सकते हैं?
सतलुज के पेट में सुरंगे
Posted on 31 Jan, 2014 03:42 PM हिमाचल प्रदेश अपने ठंडे मौसम और कुदरती खूबसूरती के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ समय से इसके कई क्षेत्रों में पनबिजली परियोजनाओं का जाल सा बिछता गया है। इससे वन संपदा और पर्यावरण काफी नुकसान हुआ है। इन परियोजनाओं से संभावित खतरों का आंकलन कर रहे हैं अश्वनी वर्मा।

पर्यावरणविद और परियोजना विशेषज्ञों का मानना है कि सतलुज नदी पर बिजली परियोजनाओं के कारण गंभीर संकट पैदा हो गया है। सतलुज की तीन सौ बीस किलोमीटर की लंबाई में डेढ़ सौ किलोमीटर को बिजली परियोजनाओं की सुरंगे घेर लेंगी। ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि कहीं केदारनाथ जैसी तबाही हिमाचल में भी न घटित हो जाए। किन्नौर जिले में यह आभास होने लगा है। किन्नौर को बचाने के लिए जरूरी है कि उत्तराखंड में उत्तरकाशी से गंगोत्री तक को जिस तरह पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा रहा है, वैसे इस क्षेत्र को भी किया जाए।

यों तो हिमाचल अपने ठंडे मौसम, ठंडे मिजाज, प्राकृतिक सुंदरता और संपदा के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के कुछ सालों से स्थितियाँ बदल रही हैं। इसका प्राकृतिक वैभव नष्ट हो रहा है, नदियों की लूट मची है। अपने भविष्य को लेकर आशंकित सीधे-सादे लोगों का मिजाज गरम हो रहा है। इस सबके पीछे अगर सबसे बड़ी कोई वजह है तो चारों तरफ फैल गई पनबिजली कंपनियां।

पिछले जुलाई में हुई बारिश के वक्त प्रदेश में सौ से अधिक लोगों की मौत हुई, जिसमें अकेले किन्नौर जिले में उनतीस लोग काल के गाल में समा गए। इसके अलावा फसलों और दूसरी तमाम चीजों को भारी क्षति पहुंची। इसकी तुलना उत्तराखंड में हुई तबाही से की गई और माना गया कि इसके पीछे कहीं न कहीं प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन और वनों की कटाई है।

किन्नौर में पनबिजली कंपनियों का जाल फैल गया है। यह स्थिति विस्फोटक है और नागरिकों में इनके खिलाफ गुस्सा भर रहा है। इससे पर्यावरणविदों की नींद उड़ी हुई है।
शिमला में कंक्रीट
Posted on 26 Oct, 2013 04:31 PM अपनी कुदरती खूबसूरती के लिए मशहूर शिमला दिनोंदिन बदहाल होता जा रहा है। जहां-जहां बेतरतीब बन रहे मकानों की वजह से शहर पर दबाव बहुत बढ़ गया है। इस बारे में बता रहे हैं एसआर हरनोट।
शौंग-टौंग – ऊंचे हिमालय क्षेत्र की विवादग्रस्त बांध-परियोजना
Posted on 03 Oct, 2013 12:38 PM सरकार ने तय किया कि यदि 1000 एकड़ एक जगह पर न भी दिया जा सके तो दो
यह बिजली बनेगी कि गिरेगी
Posted on 04 Aug, 2013 02:04 PM हिमाचल का चंबा जिला अपने खूबसूरत पहाड़ों और नदियों के लिए मशहूर है। भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील होने के बावजूद औद्योगिक मानकों को ताक पर रखकर वहां अंधाधुंध पनबिजली परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इससे न केवल प्रकृति बल्कि, इंसान और जीव-जंतुओं के जीवन के लिए खतरा पैदा हो गया है। जनांदोलनों की अनसुनी की जा रही है। इस मामले का जायजा ले रहे हैं प्रवीण कुमार सिंह।
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