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जनता द्वारा, जन हित हेतु : विश्व भर में जल की रक्षा
Posted on 10 Nov, 2010 12:34 PM

मानवाधिकार बनने की बजाय जल बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कमाई का ज़रिया बन गया है

दुनिया भर में ऐसे लोगों के बीच की खाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिनके पास पानी पर्याप्त है और जो पानी को तरस रहे हैं। जल की उपलब्धता बड़ी समस्या है यह तो सभी मानते है पर इस से जुड़ी समस्याओं के हल पर आपसी सहमती और समन्वय न के बराबर है। प्रकृति की नेमत जल जो दरअसल एक मानवाधिकार होना चाहिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कमाई का ज़रिया बन गया है। प्रस्तुत आलेख में अमरीका स्थित “पब्लिक सिटिज़न्स वॉटर फॉर ऑल” नामक अभियान की निर्देशिका वेनोना हॉटर कह रही हैं कि पानी जैसी मूल सेवाओं में निजी निवेशक को नहीं वरन् नागरिकों की सीधी भागीदारी को बढ़ावा मिलना चाहिए।

पानी के बाहर भी रह सकती है ‘मडस्किपर’मछली
Posted on 10 Nov, 2010 10:30 AM
‘मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है, हाथ लगाओ डर जाएगी, बाहर निकालो मर जाएगी’, यह कविता बच्चों के मुख से आपने अवश्य सुनी होगी। दरअसल पानी से बाहर मछली के जीवित रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती किन्तु प्रशान्त महासागर में पाई जाने वाली ‘मडस्किपर’नामक प्रजाति की मछलियां इस मामले में अपवाद हैं। हालांकि पानी से बाहर यह मछली भी सांस नहीं ले सकती किन्तु फिर भी यह पानी से बाहर निकलकर खूब मजे से
प्रदूषण के कारण घट रही है पोलर बीयर की प्रजनन क्षमता
Posted on 10 Nov, 2010 08:59 AM
प्रदूषण ने प्रकृति के मनमोहक स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस कड़ी में अब यह बात सामने आयी है कि ऑर्गेनोहेलोजेन कंपाउंड्स (ओएचसी) नामक प्रदूषक तत्व धुव्रीय भालूओं (नर-मादा) के ऑर्गन साइज को कम कर रही है। यह रिसर्च इनवायरनमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुई है। ओएचसी में डाइऑक्सिन, पोलीक्लोरिनेटेड बाइफेनल्स और अन्य कीटनाशक दवाईयां शामिल है।
समुद्र में तेजी से घट रही सील मछलियों की आबादी
Posted on 09 Nov, 2010 12:59 PM
प्रकृति की खूबसूरती और शालीनता को बिगाड़ने में इंसानी लालच आज भी सुरसा की भांति बढ़ रही है। हालिया सर्वे के मुताबिक दुनियाभर में हर पांचवें पौधे पर विलुप्त होने का खतरा है। पर, अब समुद्री जीवों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। नेशनल ओशीएनिक एंड एटमस्फेरिक एडमिनेस्ट्रेशन ने चेतावनी दी है कि समुद्र में सील मछलियों की संख्या निरंतर कम हो रही है। पर्यावरणविदों को डर है कि यदि इसे तत्काल नहीं
जैव विविधता की रीढ़ को खतरा
Posted on 06 Nov, 2010 08:47 AM [img_assist|nid=25855|title=|desc=|link=none|align=left|width=199|height=88]गत 19 से 29 अक्टूबर को आयोजित संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन में 192 देशों ने भाग लिया।

सम्मेलन में प्रजाति जीव आयोग के अध्यक्ष साइमन स्टुअर्ट ने अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के माध्यम से जानकारी दी कि रीढ़ की हड्डी वाले जीवों पर किये गये अनुसंधानों से पता चलता है कि प्रकृति की रीढ़ खतरे में है। आज दुनिया में अनेक स्तनधारी, पक्षी, उभयचर, सरीसृप और मछलियां समाप्ति के कगार पर हैं। इस संबंध में दुनिया के तीन हजार वैज्ञानिकों ने लाल सूची तैयार की है।
इंसान का 20 फीसदी दम घोंट रहा है मलत्याग
Posted on 06 Nov, 2010 08:40 AM
क्या आपको पता है कि प्रत्येक इंसान मल त्यागने के दौरान साल भर में करीब दो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित करता है? जी हां, स्पेन के शोधकर्ताओं ने एक शोध में बताया है कि खाने के बाद मनुष्यों द्वारा मल त्यागने के कारण 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित होती है। मनुष्यों के मल त्यागने के कारण कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन का तथ्य पहली बार सामने आया है।

प्रमुख शोधकर्ता इवान मुनोज ने बताया कि मनुष्यों के मल से प्रत्येक साल 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है,
परमाणु ऊर्जा से पीछा छुड़ा रहा है अमेरिका
Posted on 04 Nov, 2010 09:41 AM

भारत को देने पर तुला 40 परमाणु संयंत्र

ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ते 'समुद्री रेगिस्तान'
Posted on 03 Nov, 2010 10:38 AM
ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते दुष्प्रभावों से अब धरती का कोई भाग अछूता नहीं है। कहीं गरमी से पिघलते ग्लेशियर, अतिवृष्टि से डूबती तो कभी सूखे से तिड़कती जमीन से लेकर समुद्र भी अब बदलती जलवायु के कहर से कराह रहे हैं।

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण नुकसान सिर्फ जमीन पर ही नहीं बल्कि महासागरों पर भी होने लगा है। हवाई यूनिवर्सिटी और अमेरिका के नेशनल मरीन फिशरीज सर्विस द्वारा समुद्री पारिस्थिकीय तंत्र पर प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है
Glacier
हमारे लिए पीने का पानी बचेगा क्या!
Posted on 03 Nov, 2010 10:25 AM


सालों साल इस धरती पर मीठा पानी बना और अब इसके ख़त्म होने का खतरा पैदा होने लगा है। क्योंकि इसका इस्तेमाल बहुत तेजी से हो रहा है। पूरी धरती पर ढाई फ़ीसदी पानी पीने का है। यही नहीं जो पानी बचा है उसे भी हम गंदा कर रहे हैं।

दम तोड़ती दुनिया की बड़ी नदियां
Posted on 03 Nov, 2010 10:12 AM


दुनिया के बहुत से बड़े शहर नदियों के किनारे ही आबाद है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि साफ और ताजा पानी जीवन के लिए सबसे जरूरी तत्वों में से एक है। लेकिन नदियों का यही गुण उनके विनाश का कारण बन रहा है।

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