दुनिया

Term Path Alias

/regions/world

खरे उतरे जलवायु वैज्ञानिकों के निष्कर्ष
Posted on 09 Jul, 2010 09:13 PM

इंग्लैंड के ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई के निष्कर्षों की स्वतंत्र समीक्षा करने वाली समिति का कहना है कि जलवायु वैज्ञानिकों ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम किया है। समीक्षा समिति का कहना है कि “वैज्ञानिकों के निष्कर्षों में कोई त्रुटि नहीं है लेकिन उन्होंने अपने काम की पूरी जानकारी देने में कोताही बरती है और निष्कर्षों का बचाव करने की कोशिश की है।”

जो सुख में सुमिरन करे
Posted on 26 Jun, 2010 04:46 PM अमेरिका के न्यूमेक्सिको के एक रेगिस्तानी शहर के नागरिकों ने पानी के अनुकूल जीवनशैली में परिवर्तन कर दुनिया के सामने एक उदाहरण रखा है। आवश्यकता इस बात की है कि विकासशील देश अपने संसाधनों को लेकर जागरूक हों और भविष्य की जल योजनाओं पर विचार करें। अमेरिका के राज्य न्यू मेक्सिको के उत्तरी रेगिस्तान में रहने वाली लुईस सप्ताह में सिर्फ तीन बार नहाती हैं, वह भी सैनिकों वाली शैली में कि शरीर को गीला करो, शावर बन्द करो, साबुन लगाओ, थोड़े से पानी से हल्का रगड़ो और बस!!!, लुईस अपने कॉफी और पानी के मग को कई दिनों तक बिना धोये उपयोग करती हैं। खाने की प्लेटों को धोने में लगने वाले पानी को वे पौधों में डाल देती हैं और शावर के बचे हुए ठण्डे पानी का टॉयलेट में उपयोग करती हैं। जहाँ एक अमेरिकी व्यक्ति प्रतिदिन कई सौ गैलन पानी खपाता है, वहीं लुईस मात्र दस गैलन में काम चला लेती हैं। लुईस एक मौसम परिवर्तन समाचार एजेंसी की संपादिका हैं। लुईस का कहना है कि “मैं पानी इसलिये बचाती हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि हमारी पृथ्वी मौत की तरफ बढ़ रही है, और मैं इस पाप में भागीदार नहीं बनना चाहती”।

शायद हम लुईस की तरह एक समर्पित पर्यावरणवादी न बन सकें। पर यह सही है कि सस्ते और पर्याप्त उपलब्ध होने वाले पानी के दिन अब लद गये हैं।
विवाद का पानी
Posted on 23 Jun, 2010 10:37 AM एशिया महाद्वीप में दक्षिण एशिया की राजनीतिक स्थिरता एक महत्वपूर्ण अध्याय है क्योंकि यह क्षे़त्र प्राकृतिक व राजनैतिक रूप से सम्पूर्ण एशिया की धुरी है। इस क्षेत्र में पानी विवाद एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो समय-समय पर उभरकर सामने आता रहता है। एक ओर बढ़ती जनसंख्या और घटते प्राकृतिक संसाधन हैं, दूसरी ओर उचित जल प्रबंध नीति का अभाव है। इस पूरे परिदृश्य में पानी विवाद अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तरों प
पर्यावरण शरणार्थी: एक नई बिरादरी
Posted on 03 Jun, 2010 02:48 PM बांग्लादेश के दक्षिणी तट स्थित कुतुबदिया नामक द्वीप अपने आकार में आज, एक शताब्दी पूर्व का मात्र 20 प्रतिशत रह गया है। इसका कारण है शक्तिशाली व ज्वार की लहरों, एवं समुद्री तूफानों के कारण होने वाला कटाव। समुद्र इस द्वीप में 15 कि.मी.
नेपाल में उठेगा नदियों के प्रदूषण से प्रभावितों का मुददा
Posted on 15 May, 2010 07:31 PM

नीर फाउन्डेशन के रमन त्यागी करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व


नेपाल इंजीनियनिंग कॉलिज द्वारा सेफ ड्रिंकिंग वाटर प्रोजेक्ट व डेवलेपमेंट पार्टनरशिप आफ हायर एजूकेशन प्रोग्राम के तहत एक तीन दिवसीय सेमीनार का आयोजन किया जा रहा है। इसमें करीब 30 देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस सेमीनार का विषय एप्रोप्रियेट वाटर सप्लाई शोल्यूशन फार इंफोरमल सेटिलमेंट एण्ड मारजिनालाइज्ड कम्यूनिटीज रखा गया है। यह सेमीनार 19 से 21 मई, 2010 को नेपाल की राजधानी काठमांडू के होटल हिमालय में आयोजित की जा रही है। इस सेमीनार के लिए पानी की सल्लाई, बर्बादी, देखरेख, स्वास्थ्य, सरकारी जिम्मेदारियां, कानून, पर्यावरण, नए जानकारियां तथा विश्व में सरकारी व गैर सरकारी स्तर
पानी के लिए ...
Posted on 15 May, 2010 07:57 AM

पिछले दिनों जब पश्चिम एशिया की धरती युद्ध की विभीषिका से लहूलुहान हुई थी तभी यह जुमला भी सामने आया था कि आज तो यह लड़ाई तेल के लिए हो रही है, लेकिन कल इससे भी भयावह लड़ाई पानी के लिए होगी। पानी न सिर्फ आदमी के जीने की पहली शर्त है, बल्कि आज वह एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय हथियार भी है। धरती पर से पानी बूँद-बूँद कम होता जा रहा है और आदमी है कि अपने पारंपरिक जलस्रोतों को मिटाता जा रहा है।

पहाड़ों में गर्मियों में एक पक्षी की दर्दभरी आवाज सुनाई पड़ती है- ‘कुकुल दीदी- पान! पान!!’ चील जैसे इस पक्षी को कुमाऊँनी में ‘कुकुल दीदी’ कहते हैं। इसके बारे में एक लोककथा प्रचलित है कि जब सीता की प्यास बुझाने के लिए राम पानी की तलाश में निकले तो उन्होंने कुकुल दीदी से भी पानी के बारे में पूछा। जानबूझ कर कुकुल दीदी ने उन्हें पानी का ठिकाना नहीं बताया। राम ने क्रोध में आकर उसे श्राप दिया कि तुझे धरती में बहता हुआ पानी खून जैसा दिखे और तू पानी के लिए तरसती रहे। कलकल-छलछल बहते पहाड़ी नदी-नालों के बावजूद कुकुल दीदी ‘पान-पान’
जल
पानी साफ करने की आसान और सस्ती तकनीक
Posted on 08 May, 2010 06:58 AM
दुनिया में करोड़ों लोग भूजल का इस्तेमाल पेयजल के रूप में करते हैं। इसमें कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जिसके कारण लोगों को तमाम तरह की जलजनित बीमारियां हो जाती हैं। इन बीमारियों के सबसे ज्यादा शिकार कम उम्र के बच्चे होते हैं। ऐसे में पानी को साफ करने के लिए एक बेहद आसान और कम लागत की तकनीक की जरूरत है। मोरिंगा ओलेफेरा नामक पौधा एक बेशकीमती पौधा है जिसके बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके प
जलवायु परिवर्तन पर सोचिए
Posted on 10 Apr, 2010 08:43 AM
प्रकृति को कार्बन की विषाक्तकारी ताकत की जानकारी पहले ही हो जानी चाहिए थी : यह लाखों वर्षों से गोपनीय तरीके से धरती को विषाक्त करता रहा है। अब इसका उत्सर्जन उस प्राकृतिक निवास को अस्थिर करने लगा है, जिसमें हम सभी को रहना है। विवेकशील लोग कह सकते हैं कि यह उस तेजी से धरती को क्षति नहीं पहुंचा रहा, जितना कि बताया जा रहा है, लेकिन इस बारे में तो कोई मतभेद ही नहीं है कि यह पृथ्वी को नुकसान पहुंच
अब पानी के लिए भारत पर उंगली
Posted on 05 Apr, 2010 11:55 AM पाकिस्तान इन दिनों कश्मीर के अलावा भारत द्वारा पानी की चोरी को एक बड़ा मुद्दा बना रहा है। इसलामाबाद का आरोप है कि भारत से पाकिस्तान की ओर बहने वाली चिनाब, झेलम और सिंधु नदियों पर भारत ने गैरकानूनी ढंग से बांधों का निर्माण कर लिया है और वह नदियों के प्रवाह को मोड़कर पानी अपने प्रयोग में ला रहा है। नतीजतन पाकिस्तान को पीने के पानी के अलावा सिंचाई में भी दिक्कत हो रही है।
संकट में जल
Posted on 03 Apr, 2010 11:00 AM
ताजे पानी की घटती उपलब्धता आज की सबसे बड़ी समस्या है। पानी का संकट अनुमानों की सीमाओं को तोड़ते हुए दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है। जहां एक ओर शहरी आबादी में हो रही वृद्धि से यहां जलसंकट विकराल रूप लेता जा रहा है वही दूसरी ओर आधुनिक कृषि में पानी की बढ़ती मांग स्थितियों को और स्याह बना रही है। आवश्यकता इस बात की है कि पानी को लेकर वैश्विक स्तर पर कारगार नीतियां बने और उन पर अमल भी हो।
×