बिलफिश और ट्यूना मछली की प्रजातियां व्यवसाय और मनोरंजन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन बदलते पर्यावरण और प्रदूषित होते सागर के कारण इन प्रजातियों पर खतरा मंडराने लगा है। जरूरत से अधिक मत्स्यपालन और अन्य हानिकारक गतिविधियों के कारण इन विशेष प्रजाति की मछलियों का आवास समाप्त होता जा रहा है, जिसके कारण ये विनाश झेलने को मजबूर हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी रोसेंसियल स्कूल ऑफ मैरिन के शोधकर्ताओं ने नए अध्ययन के बाद बताया कि अधिक मत्स्यपालन और समुद्री सतह के बढ़ते तापमान के कारण समुद्र में से इन मछलियों का आवास समाप्त होता जा रहा है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. इरिक डी. प्रिंस ने बताया कि समुद्र में ऑक्सीजन का स्तर धीरे-धीरे घटता जा रहा है और लो ऑक्सीजन क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है। इन्हें हाइपोक्सिक जोन कहा जाता है। यह खतरा सबसे अधिक अटलांटिक महासागर में बढ़ रहा है। बिलफिश और ट्यूना मछलियां वहीं रहना पसंद करती हैं, जहां ऑक्सीजन की प्रचूर मात्रा हो। इसके बिना इनका अस्तित्व संभव नहीं है। प्रिंस ने बताया कि अमूमन सतह के करीब ही ऑक्सीजन से भरपूर पानी मौजूद रहता है, जहां ये मछलियां आसानी से पाई जाती हैं, लेकिन अधिकतर मत्स्यपालन के कारण इन मछलियों के ऊपर खतरा मंडरा रहा है।
इसके अतिरिक्त सतह के करीब समुद्री पानी का तापमान बढ़ रहा है, जिसे ये मछलियां झेल नहीं पा रही हैं। बढ़ते तापमान और प्रदूषण के कारण ये इन क्षेत्रों में नहीं रह पा रही हैं। नतीजतन वे मौत की शिकार हो रही हैं। प्रिंस ने बताया कि यदि ऐसा ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब बिलफिश और ट्यना मछलियां विलुप्तप्राय प्राणी की श्रेणी में शामिल हो जाएंगी। यह बहुत चिंतनीय है। उन्होंने बताया कि हाइपोक्सिक जोन बहुत तेजी से अपना विस्तार कर रहा है। पश्चिमी अफ्रीका के अटलांटिक महासागर का लगभग पूरा हिस्सा हाइपोक्सिक जोन का हो चुका है। यहां अब ये मछलियां बहुत कम पाई जाती हैं।
/articles/vailaupatai-kai-kagaara-para-khadai-haain-bailaphaisa-aura-tayauunaa-machalaiyaan