10 साल पहले आम आदमी तो क्या वैज्ञानिकों ने भी कल्पना नहीं की थी कि पृथ्वी पर बर्फ के सबसे बडे भंडार अंटार्कटिक आइस सीट्स के नीचे जीव हो सकते हैं। लेकिन लुसिआना स्टेट यूनिवर्सिटी के बॉयोलॉजिकल साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर ब्रेंट क्रिस्नर ने हाल ही में यह खोज की है कि अंटार्कटिक आइस सीट्स के नीचे जीव (माइक्रोब्स) मौजूद हैं। दरअसल, अभी तक अंटार्कटिक आइस सीट्स के नीचे जीव न होने का अनुमान इस आधार पर लगाया जाता रहा है कि दो मील से ज्यादा मोटी बर्फ की चट्टान के नीचे अत्यंत विपरीत परिस्थिति में जीव की मौजूदगी नामुमकिन है। लेकिन प्रॅफेसर क्रिस्नर ने अनुसार लाखों सालों तक अत्यंत ठंडी बर्फ के बीच में माइक्रोब्स की उपस्थिति की दो वजहें हो सकती हैं। पहली, माइक्रोब्स बर्फ में सुप्तावस्था में लंबे समय तक पडे रहे और उनका रिपेयर मैनेजमेंट काफी प्रभावकारी था। यह रिपेयर मैनेजमेंट तभी सक्रिय होता है, जब ग्रोथ का माहौल मिलता है। इस तरह माइक्रोब्स कठोर परिस्थिति में जीवित बने रहते हैं। वहीं, माइक्रोब्स के जीवित रहने की दूसरी वजह यह हो सकती है कि माइक्रोब्स बर्फ की तहों में दबे होने के बावजूद उनका मेटॉबालिज्म सक्रिय था और उनके सेल्स रिपेयर होते रहते थे। लुसिआना स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार अंटार्कटिका में बर्फ की मोटी सतह के नीचे 150 से ज्यादा झीलों की खोज हो चुकी है और इनका जल कम से कम 1 करोड पचास लाख साल से बर्फ से ढंका है। यहां का वातावरण व अति कोल्ड बॉयोस्फियर पृथ्वी की सतह से काफी भिन्न है और यहां के जीव पृथ्वी के सामान्य जीवों से काफी भिन्न हैं।
रेड टाइड का रहस्य
हाल ही में प्रतिष्ठित अमेरिकी तकनीकी संस्थान एमआईटी के केमिस्टों ने यह खोज की है कि कैसे अति सूक्ष्म समुद्री जीव जहरीले रेड टाइड को उत्पन्न करते हैं। उल्लेखनीय है कि रेड टाइड समय-समय पर डिनोफ्लैग्लैट्स नामक एल्गी से उत्पन्न होता है। यह इतना जहरीला होता है कि इसके प्रभाव से न सिर्फ मछलियां जहरीली हो जाती हैं, बल्कि समुद्री किनारों की गतिविधियां भी ठप्प हो जाती हैं। रेड टाइड की वजह से करोडों डॉलर का नुकसान होता है और समुद्री किनारों पर बसे समुदायों की गतिविधियां बंद हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर 2005 में आए रेड टाइड के कारण न्यूजीलैंड की सेलफिश इंडस्ट्री का करोडों डॉलर नुकसान हुआ और इस साल फ्लोरिडा में 30 दुर्लभ जीवों का खात्मा हो गया। हालांकि, यह अभी तक मालूम नहीं है किन कारणों से डिनोफ्लैग्लैट्स एल्गी, रेड टाइड टॉक्सिन पैदा करता है, लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसा एल्गी के डिफेंस मेकेनिज्म के कारण होता है, जो समुद्री उफानों, तापमान में परिवर्तन व अन्य वातावरणीय दबावों के कारण प्रेरित होता है। दरअसल, 20 साल पहले कोलंबिया के केमिस्ट कोजी नाकानिसी ने रेड टाइड टॉक्सिन को तमाम प्रयोगों के जरिए सिंथेसाइज करने की कोशिश की थी, लेकिन वे काफी प्रयासों के बाद असफल रहे। हालांकि बाद में यह समझा जाने लगा कि नाकानिसी हाइपोथिसिस को प्रमाणित नहीं किया जा सकता। लेकिन एमआईटी के केमिस्ट जेमिसन और विलोटिजेविक ने यह पहली बार साबित किया कि नाकानिसी की हाइपोथिसिस को प्रमाणित करना संभव है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस रिसर्च से प्रभावकारी ड्रग की खोज और तेज होगी तथा रेड टाइड के टॉक्सिन प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।
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