प्रबुद्ध नागरिकों से मुहिम में जुड़ने की अपील, गोष्ठी के जरिए लाएंगे जागरुकता
अब दिल्ली नागरिक परिषद ने यमुना बचाने के लिए दिल्ली के नागरिकों का जनांदोलन खड़ा करने का फैसला किया है। परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी कहते हैं कि यमुना की दुर्दशा खुद नहीं हुई है। अगर इसके नैसर्गिक बहाव को रोका नहीं जाता तो यमुना दिल्ली के साथ कई शहरों की प्यास बुझाती। साथ ही लाखों एकड़ खेतों और जंगलों को आबाद करती। यमुना की यह दशा सरकारों के नाकारापन और स्वार्थ के कारण हुई है। इसलिए केवल सरकारों से यमुना को बचाने की उम्मीद करना गलत होगा। अभी इस अभियान में प्रबुद्ध नागरिकों को जोड़ने के लिए अनेक गोष्ठी आयोजित की जा रही है। इस कड़ी में पिछले महीने एक गोष्ठी हुई और अगले महीने 11 सितंबर को बीपी हाउस में पूरे दिन की गोष्ठी होने वाली है।
यमुना बचाओ अभियान के नाम से एक अपील दिल्ली के प्रबुद्धजनों को भेजा गया है। नागरिक परिषद चौधरी के अलावा पूर्व विधायक मेवाराम आर्य और प्रोफेसर पीके चांदना जैसे वरिष्ठ नागरिकों के सहयोग से स्थायी रूप से चल रहा है। चौधरी कहते हैं कि गोष्ठी में आए सुझावों को भी आमजन तक पहुंचाया जाएगा। पिछली गोष्ठी में सुप्रीम कोर्ट की पहल पर बनी पर्यावरण निगरानी समिति के प्रमुख भूरे लाल, पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाला खुराना, पर्यावरणविद दुनुराय और यमुना जिए अभियान के मनोज मिश्र आदि शामिल हुए।
उस गोष्ठी में आए सुझावों को ही वीरेश प्रताप चौधरी काफी अहम मानते हैं। यमुना से केवल दिल्ली लाभान्वित नहीं थी। अनेक बड़े शहर सालों से यमुना के बूते ही जी रहे थे। सिंचाई के नाम पर पहले ताजेवाला बांध बनाकर यमुना के नैसर्गिक प्रवाह को रोका गया फिर 2002 में उस बांध की अवधि खत्म होने से पहले हथिनी कुंड बांध उससे दोगुणी क्षमता का बना कर यमुना के प्रवाह को पूरी तरह रोककर दो नहर बना दिया गया उसमें एक नहर हरियाणा और दूसरी नहर उत्तर प्रदेश के लिए। दिल्ली को यमुना में दूसरे राज्यों की तरह पानी मिले इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के प्रयास और केंद्र सरकार की हस्तक्षेप से 1994 में एक समझौता हुआ। उसमें हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली को एक नियमित मात्रा में पानी मिलना तय हुआ। उसी में दिल्ली को 724 क्यूसेक पानी दिया जाना था लेकिन उसे पूरा नहीं किया गया। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से वजीराबाद में पानी का स्तर बनाए रखने का प्रयास ही किया जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने तो यमुना की सफाई पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यमुना तो अब केवल गंदा नाला है।
यमुना में साफ पानी आना बंद हो गया और बरसात में हरियाणा पानी संभाल नहीं पाता इसलिए यमुना में दिल्ली की सीमा में पानी दिखता है। दिल्ली के सारे गंदे नाले यमुना में खुलते हैं। उद्योग से निकला रसायन युक्त पानी भी यमुना में पहुंचता है। इतना ही नहीं खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन भी घुलकर यमुना में गिरता है। जिस तरह पिछले कुछ सालों में 1500 करोड़ रुपए यमुना की सफाई के नाम पर पानी में बहा दिए गए उसी तरह 1300 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से इंटीसेप्टर लगाने का प्रयोग भी बेकार साबित होने वाला है। साधारण सी बात है कि दिल्ली को राजधानी बनाते समय अंग्रेजों ने सीवर की नींव डाली थी अब सौ साल में वह सीवर छोटी पड़ने लगी। सीवर में गाद जमकर पत्थर हो गए। इसलिए जिन इलाकों में सीवर हैं भी उनके भी सीवर नालों के बजाए सड़क के रास्ते यमुना में गिर रहे हैं। कुछ साल पहले अदालत के आदेश से ही यमुना में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगे लेकिन सीवर का पानी उन प्लांट में जा नहीं रहा है। दूसरे तब की दिल्ली आज की दिल्ली की 10 फीसद भी नहीं थी। आज जितनी दिल्ली में सीवर प्रणाली है उससे ज्यादा अनधिकृत कालोनी और झुग्गी बस्तियों में सीवर है ही नहीं। इसलिए यमुना में गंदगी जाने से रोकने के लिए सबसे पहले सीवर प्रणाली में सुधार जरूरी है।
कायदे से अभी जो यमुना में पानी दिखता है वह पानी है ही नहीं वह तो सीवर की गंदगी है। यमुना से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है अभी की यमुना तो स्नान या आचमन करना तो दूर खेती के लिए भी नहीं बची है। पहली गोष्ठी में आए दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और उपाध्यक्ष ने भी माना केवल प्लांट लगाना समस्या का समाधान नहीं है। अदालत ने यमुना के किनारे और दिल्ली के पुराने तालाबों को पुनर्जिवित करने के निर्देश दिए थे उस पर अमल नहीं हो पाया। यमुना बचाने की पहली शर्त है कि दिल्ली सरकार केंद्र सरकार से हस्तक्षेप कराकर हरियाणा पर दबाव डाले कि वह यमुना के लिए इतना पानी दे जिससे उसका बहाव न रुके। गंदा नाले यमुना में न जाएं। यमुना में साफ पानी जाए। सीवर के पानी से सिंचाई हो और सिंचाई के लिए जो पानी इस्तेमाल होता है वह यमुना में जाए। यमुना अपने लिए कुछ नहीं रखेगी वह ब्याज समेत अदा कर देगी। दिल्ली में बहने वाली 30 किलोमीटर यमुना को लक्ष्य करके योजना तो बने ही लेकिन इसके साथ बड़ा लक्ष्य पूरे यमुना (करीब 1400 किलोमीटर) को साफ करने का हो।
‘यमुना जिए’ अभियान के मनोज मिश्र ने एक अनोखी जानकारी दी कि यमुना के किनारे बसे सारे शहर यमुना के पश्चिम में ही हैं। दिल्ली में भी पूर्वी दिल्ली में एक भी ऐतिहासिक स्मारक नहीं है। उनकी संस्था ने राष्ट्रमंडल खेल गांव और अक्षरधाम मंदिर के निर्माण के खिलाफ आंदोलन चलाया था। उनके मुताबिक यमुना का पश्चिम तट और और पूर्वी नीचे रहा होगा। अब हम अपनी योजना से उसमें बदलाव ला रहे हैं। इसलिए इससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ेगा और भविष्य में डूब क्षेत्र में भी बदलाव संभव है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि इटावा में यमुना से मिलने वाली चंबल नदी में पक्षी हैं लेकिन यमुना में पक्षी नहीं हैं क्योंकि यमुना को हमने नदी रहने ही नहीं दिया है। इसलिए अब यमुना की सफाई नहीं उसको पुनर्जीवित (रिवाइव) करने की आवश्यकता है।
नागरिक परिषद का यह भी मानना है कि बांधों से दिल्ली को पानी नहीं मिलने वाला है। यमुना को बचाने से दिल्ली को पानी मिलने वाला है। परिषद ने एक पत्र दिल्ली के प्रबुद्ध नागरिकों को भेज कर अपने-अपने तरीके से राजधानी के इस एक फेफड़े को जीवित रखने और पूरी तरह नष्ट होने से रोकने के लिए प्रयास करने की अपील की है। परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी का दावा है कि यह अभियान तब तक चलेगा जब तक इससे ठोस परिणाम सामने नहीं आएंगे। यही लगातार होता रहा है कि सरकारों और उनकी एजेंसियों ने एक दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी डाल कर अपना पल्ला झाड़ लिया और यमुना मैली की मैली ही रह गई और मैली होती गई। जल दिवस, भूमि दिवस और पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाना ही पर्याप्त नहीं है। अपनी विरासत और अपनी आस्था के संरक्षण के लिए सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी। केवल सरकार और उसकी एजेंसियों को दोषी करार देकर अपने कर्तव्य को पूरा मान लेने के बजाए दिल्ली की इस सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए आम जन को सक्रिय करने का लक्ष्य नागरिक परिषद ने लिया है। यमुना की दुर्दशा भी मानव ने ही की है इसलिए उसे बचाकर भविष्य की दिल्ली को बचाने का काम भी मानव ही करेंगे।
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