दिल्ली

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नदियों और वनों को जोड़ना
Posted on 12 Jun, 2015 08:35 PM आज जरूरत वन और पानी के अन्तर्सम्बन्ध को स्थापित करने और जल संकट के
स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता
Posted on 12 Jun, 2015 08:29 PM नीति और कार्यक्रमों के अन्तर्गत विकास के मुद्दों पर एक बार फिर से
जल : प्रथम और अन्तिम सार्वजनिक सम्पदा
Posted on 11 Jun, 2015 09:28 PM जल संकट व्यापारिक कारणों से उत्पन्न एक पारिस्थितिकीय संकट है जिसका कोई बाजारनिष्ठ समाधान नहीं है। बाजारनिष्ठ समाधान धरती को बर्बाद करते हैं और असमानता को बढ़ावा देते हैं। जल संकट को खत्म करने के लिए पारिस्थितिकीय लोकतन्त्र को नई जिन्दगी का आवश्यकता है।

जल के दो आयाम बेहद विवादित हैं- जल की सार्वजनिकता का आयाम और जल के वस्तु होने का आयाम।
पंचायतों के जरिये हो क्रियान्वयन
Posted on 09 Jun, 2015 05:16 PM चुने गए कार्य की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए जिसमें तात्कालिक स्तर पर ल
गरीबी निवारण के लिए रोजगारोन्मुख विकास
Posted on 09 Jun, 2015 05:05 PM सेवाओं में विकास के साथ-साथ रोजगार में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। उसक
वायदों का सच
Posted on 08 Jun, 2015 09:51 PM प्रस्तावित रोजगार गारण्टी अधिनियम को भारत में सामाजिक नीति की बृहत
इक्कीसवीं सदी की चुनौती : स्वच्छ पेयजल
Posted on 07 Jun, 2015 07:47 AM हमारे देश में 1950 में लगभग 5 लाख तालाब थे, जिनमें 36 लाख हेक्टेयर
जल प्रबन्धन : चुनौतियाँ और समाधान
Posted on 06 Jun, 2015 10:22 AM देश में बढ़ती जनसंख्या, बड़े पैमाने पर शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण
ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा
Posted on 05 Jun, 2015 05:34 PM अनुमान है कि वर्तमान में विश्व की 1 अरब 10 करोड़ आबादी को पीने का
हिमालय की पहाड़ियों में आटा चक्कियाँ
Posted on 14 May, 2015 04:29 PM जरा सोचिए हाथ से चलाई जाने वाली उन आटा चक्कियों को, जिनको देखते ही भारत के महान सन्त कबीर के आँखों में आँसू आ गए, क्योंकि उनके मन में इन्हें देखते ही भाव जागा। कुदरत के उस चक्की के दो पाटों का जिन्हें हम धरती व आकाश कहते हैं और जिनके बीच में मानव उसी तरह पिसता है जैसे चक्की के दो पाटों के बीच में अनाज के दाने पिसते हैं। कबीर ने जिस चक्की से कुदरत के इस महान चक्की की परिकल्पना की वह आज भी भारत के ग
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