Posted on 11 Jun, 2015 09:28 PMजल संकट व्यापारिक कारणों से उत्पन्न एक पारिस्थितिकीय संकट है जिसका कोई बाजारनिष्ठ समाधान नहीं है। बाजारनिष्ठ समाधान धरती को बर्बाद करते हैं और असमानता को बढ़ावा देते हैं। जल संकट को खत्म करने के लिए पारिस्थितिकीय लोकतन्त्र को नई जिन्दगी का आवश्यकता है।
जल के दो आयाम बेहद विवादित हैं- जल की सार्वजनिकता का आयाम और जल के वस्तु होने का आयाम।
Posted on 14 May, 2015 04:29 PMजरा सोचिए हाथ से चलाई जाने वाली उन आटा चक्कियों को, जिनको देखते ही भारत के महान सन्त कबीर के आँखों में आँसू आ गए, क्योंकि उनके मन में इन्हें देखते ही भाव जागा। कुदरत के उस चक्की के दो पाटों का जिन्हें हम धरती व आकाश कहते हैं और जिनके बीच में मानव उसी तरह पिसता है जैसे चक्की के दो पाटों के बीच में अनाज के दाने पिसते हैं। कबीर ने जिस चक्की से कुदरत के इस महान चक्की की परिकल्पना की वह आज भी भारत के ग